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यहां मौजूद है अद्भुत शिलालेख, 10वीं सदी में पटवा वंशजों ने दिया था पहला विज्ञापन - Advertisement to challenge China in Mandsaur

देश आज नहीं हजारों साल पहले ही आत्मनिभरता की राह पर चल रहा था, इसका सबूत मौजूद है मंदसौर के खिलचीपुरा में जहां के सूर्य मंदिर में लगाई गई थी चीन को चुनौती देने का शिलालेख, जानें और क्या है इस शिलालेख में खास...

Story of the Sun Temple at Khilchipur in Mandsaur
अद्भुत शिलालेख
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Published : Aug 19, 2020, 1:52 PM IST

मंदसौर। ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के लिहाज से राजस्थान का सीमावर्ती जिला मंदसौर, इतिहास के नक्शे में काफी अहम स्थान पर मौजूद हैं. इस जिले में एक तरफ सदियों पुरानी बौद्ध गुफाएं और पाषाण के कप मार्क्स मौजूद हैं. वहीं दूसरी तरफ जिला मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर दूर खिलचीपुरा में 1000 साल पुराना सूर्य मंदिर भी मौजूद है, प्राचीन इतिहास के मुताबिक इस धरोहर ने ही देश का पहला विज्ञापन स्थापित किया गया था, जो रेशम उद्योग में पटवा वंशजों की चीन को एक चुनौती के रूप में देखा जाता है.

यहां मौजूद है चीन को चुनौती का सबूत

मंदिर में हैं पहले विज्ञापन की प्रशस्ति

मंदसौर यानी पूर्व के दशपुर नामक शहर के खिलचीपुरा स्थित, सूर्य मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां प्रतिमा के साथ मुख्य दीवार पर एक शिलालेख की प्रशस्ति भी लगाई गई थी, प्रशस्ति के शिलालेख में ब्राह्मी लिपि में देश के रेशम के वस्त्रों के निर्माण और उसके व्यवसायिक प्रचार प्रसार का वर्णन मौजूद है. शिलालेख के श्लोकों के मुताबिक यदि कोई विवाहित स्त्री इस समुदाय द्वारा बनाए गए रेशमी वस्त्रों का जोड़ा धारण नहीं करती तो वह पति के मिलन से वंचित रहती है.

Story of the Sun Temple at Khilchipur in Mandsaur
मंदिर में स्थापित मूर्ति

गुप्तकालीन है मंदिर

खिलचीपुरा में स्थित में 10वीं सदी की यह प्राचीन सूर्य मंदिर को गुप्तकालीन ओलिकर पटवा वंशजों ने बनवाया था. माना जाता है कि इस काल में भगवान सूर्य को शिव के समान पूजा जाता था, लिहाजा व्यापार व्यवसाय और शासक वर्ग से जुड़ी कौम के पटवा वंशजों ने तीज त्योहार पर उनकी पूजा करने के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया था. इस मंदिर के मुख्य द्वार पर पाकिस्तान के मुल्तान और कोणार्क के सूर्य मंदिर की तर्ज पर सूर्य की प्रतिकृति मौजूद है.

Story of the Sun Temple at Khilchipur in Mandsaur
मंदिर में उकेरी गई आकृति

चीन को थी पटवा वंशजों की चुनौती

माना जाता है कि दुनिया में रेशम के वस्त्रों के निर्माण की कला हजारों साल पहले चीन से शुरू हुई थी, जिसे चीन ने वहां से बाहर नहीं निकलने दिया, जिस पर पटवा समुदाय के लोगों ने चुनौती देकर रेशम के वस्त्र बनाना शुरू किया था. उन्हीं रेशमी साड़ियों के प्रचार प्रसार का वर्णन खिलचीपुरा के सूर्य मंदिर में मौजूद शिलालेख में मिलता है.

Story of the Sun Temple at Khilchipur in Mandsaur
मंदिर में स्थापित मूर्ति

शिलालेख ने खुद की ऐसी यात्राएं

वर्तमान में मंदिर का शिलालेख ग्वालियर के गुजरी महल में मौजूद हैं, जिसे आजादी के समय तत्कालीन लोक निर्माण अधिकारी माइकल फिलोज ने मध्य भारत पुरातत्व विभाग को बेच दिया था. बताया जाता है कि इस मंदिर से शिलालेख गायब होने के बाद ब्रिटिश अधिकारी जान फेट फूल फ्लीट ने इसे पुराने पशुपतिनाथ मंदिर की पेढ़ी में लगा हुआ देखा था, जिसे तत्कालीन लोक निर्माण अधिकारी माइकल फिलोज इसे अपने साथ उज्जैन ले गया और भारत की आजादी के समय इस शिलालेख को ग्वालियर स्थित मध्य भारत के पुरातत्व विभाग को बेंच गया.

प्रशासन कर रहा विकास का प्रयास

मंदसौर की इस ऐतिहासिक धरोहर को पर्यटन के नक्शे पर लाने के लिए स्थानीय लोगों लगातार इसके विकास के लिए गुहार लगा रहे हैं. हालांकि 10वीं सदी की इस पुरातात्विक धरोहर को मध्य प्रदेश पर्यटन विकास विभाग ने कुछ ही सालों पहले अपने अधीन कर इसके इर्द-गिर्द के प्रांगण को आरसीसी से पक्का बनवा दिया है. इस संरक्षित स्मारक को पर्यटन के नक्शे पर लाने के लिए जिला प्रशासन ने अब मालवा और मेवाड़ के टूरिज्म सर्किट से जोड़ने का प्रस्ताव भी सरकार को भेजा है.

मंदसौर। ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के लिहाज से राजस्थान का सीमावर्ती जिला मंदसौर, इतिहास के नक्शे में काफी अहम स्थान पर मौजूद हैं. इस जिले में एक तरफ सदियों पुरानी बौद्ध गुफाएं और पाषाण के कप मार्क्स मौजूद हैं. वहीं दूसरी तरफ जिला मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर दूर खिलचीपुरा में 1000 साल पुराना सूर्य मंदिर भी मौजूद है, प्राचीन इतिहास के मुताबिक इस धरोहर ने ही देश का पहला विज्ञापन स्थापित किया गया था, जो रेशम उद्योग में पटवा वंशजों की चीन को एक चुनौती के रूप में देखा जाता है.

यहां मौजूद है चीन को चुनौती का सबूत

मंदिर में हैं पहले विज्ञापन की प्रशस्ति

मंदसौर यानी पूर्व के दशपुर नामक शहर के खिलचीपुरा स्थित, सूर्य मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां प्रतिमा के साथ मुख्य दीवार पर एक शिलालेख की प्रशस्ति भी लगाई गई थी, प्रशस्ति के शिलालेख में ब्राह्मी लिपि में देश के रेशम के वस्त्रों के निर्माण और उसके व्यवसायिक प्रचार प्रसार का वर्णन मौजूद है. शिलालेख के श्लोकों के मुताबिक यदि कोई विवाहित स्त्री इस समुदाय द्वारा बनाए गए रेशमी वस्त्रों का जोड़ा धारण नहीं करती तो वह पति के मिलन से वंचित रहती है.

Story of the Sun Temple at Khilchipur in Mandsaur
मंदिर में स्थापित मूर्ति

गुप्तकालीन है मंदिर

खिलचीपुरा में स्थित में 10वीं सदी की यह प्राचीन सूर्य मंदिर को गुप्तकालीन ओलिकर पटवा वंशजों ने बनवाया था. माना जाता है कि इस काल में भगवान सूर्य को शिव के समान पूजा जाता था, लिहाजा व्यापार व्यवसाय और शासक वर्ग से जुड़ी कौम के पटवा वंशजों ने तीज त्योहार पर उनकी पूजा करने के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया था. इस मंदिर के मुख्य द्वार पर पाकिस्तान के मुल्तान और कोणार्क के सूर्य मंदिर की तर्ज पर सूर्य की प्रतिकृति मौजूद है.

Story of the Sun Temple at Khilchipur in Mandsaur
मंदिर में उकेरी गई आकृति

चीन को थी पटवा वंशजों की चुनौती

माना जाता है कि दुनिया में रेशम के वस्त्रों के निर्माण की कला हजारों साल पहले चीन से शुरू हुई थी, जिसे चीन ने वहां से बाहर नहीं निकलने दिया, जिस पर पटवा समुदाय के लोगों ने चुनौती देकर रेशम के वस्त्र बनाना शुरू किया था. उन्हीं रेशमी साड़ियों के प्रचार प्रसार का वर्णन खिलचीपुरा के सूर्य मंदिर में मौजूद शिलालेख में मिलता है.

Story of the Sun Temple at Khilchipur in Mandsaur
मंदिर में स्थापित मूर्ति

शिलालेख ने खुद की ऐसी यात्राएं

वर्तमान में मंदिर का शिलालेख ग्वालियर के गुजरी महल में मौजूद हैं, जिसे आजादी के समय तत्कालीन लोक निर्माण अधिकारी माइकल फिलोज ने मध्य भारत पुरातत्व विभाग को बेच दिया था. बताया जाता है कि इस मंदिर से शिलालेख गायब होने के बाद ब्रिटिश अधिकारी जान फेट फूल फ्लीट ने इसे पुराने पशुपतिनाथ मंदिर की पेढ़ी में लगा हुआ देखा था, जिसे तत्कालीन लोक निर्माण अधिकारी माइकल फिलोज इसे अपने साथ उज्जैन ले गया और भारत की आजादी के समय इस शिलालेख को ग्वालियर स्थित मध्य भारत के पुरातत्व विभाग को बेंच गया.

प्रशासन कर रहा विकास का प्रयास

मंदसौर की इस ऐतिहासिक धरोहर को पर्यटन के नक्शे पर लाने के लिए स्थानीय लोगों लगातार इसके विकास के लिए गुहार लगा रहे हैं. हालांकि 10वीं सदी की इस पुरातात्विक धरोहर को मध्य प्रदेश पर्यटन विकास विभाग ने कुछ ही सालों पहले अपने अधीन कर इसके इर्द-गिर्द के प्रांगण को आरसीसी से पक्का बनवा दिया है. इस संरक्षित स्मारक को पर्यटन के नक्शे पर लाने के लिए जिला प्रशासन ने अब मालवा और मेवाड़ के टूरिज्म सर्किट से जोड़ने का प्रस्ताव भी सरकार को भेजा है.

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