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धर्मराजेश्वर मंदिर एक अद्भुत चमत्कार ! - wonderful miracle in Mandsour

जिले के गरोठ क्षेत्र में स्थित भगवान धर्मराजेश्वर का मंदिर जमीन के भीतर बना हुआ है, जिसके बावजूद यहां पर सूर्य की पहली किरण गर्भगृह तक जाती है और सूर्य देव भगवान के दर्शन करते हैं. शिवरात्रि के दिन यहां देशभर से लाखों की संख्या में दर्शनार्थी दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं.

Dharmarajeshwar Temple
धर्मराजेश्वर मंदिर
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Published : Feb 23, 2021, 4:55 PM IST

Updated : Feb 24, 2021, 2:39 PM IST

मंदसौर। जिले के गरोठ क्षेत्र में स्थित भगवान धर्मराजेश्वर का मंदिर दुनिया का पहला ऐसा मंदिर है, जो जमीन के अंदर बना हुआ है. बावजूद इसके यहां सूर्य की पहली किरण गर्भगृह तक पहुंचती है. ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव भगवान के दर्शन करते हैं. इस मंदिर की मान्यता है कि भगवान भास्कर खुद मंदिर में पहली किरण के साथ भगवान शिव और विष्णु के दर्शन के लिए आते हैं. धर्मराजेश्वर मंदिर का निर्माण एक विशाल चट्टान को काटकर किया गया है. ये दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसके मुकुट का पहले निर्माण हुआ और फिर ऊपर से नीचे की ओर निर्माण किया गया.

धर्मराजेश्वर मंदिर

आधुनिक इंजीनियरिंग युग के लिए चुनौती

आज के इस आधुनिक इंजीनियरिंग युग को चुनौती देते हुए ऊपर से नीचे की ओर निर्माण होने वाला यह मंदिर अद्भुत इंजीनियरिंग का प्रतीक है. जब सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह तक जाती है, तब ऐसा लगता है कि सूर्य भगवान स्वयं अपने 7 घोड़ों के रथ पर सवार होकर भगवान शिव और विष्णु के दर्शन करने के लिए मंदिर आए हों.

मंदसौर से धर्मराजेश्वर की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है, यहां आने वाला हर श्रद्धालु इस स्थान को देखकर एक अलग ही आनंद की अनुभूति करता है. मंदिर में छोटी कुईया विद्यमान हैं, मान्यता है कि इसका पानी कभी नहीं सूखता है और यहां के पानी से स्नान करने पर रैबीज की बीमारी को रोका जाता है. साथ ही चर्म रोग, सर्प डंस आदि बीमारियों से राहत मिलती है. विशाल मंदिर और यह देवालय ना सिर्फ भगवान शिव और विष्णु के मंदिर का प्रतीक है, बल्कि यह संसार का अकेला ऐसा मंदिर है, जो जमीन के भीतर होते हुए भी सूर्य की किरणों से सराबोर हैं.

माना जाता है कि द्वापर युग में पांडव जब अपने अज्ञातवास के दौरान इस स्थान पर आए थे, तो भीम ने गंगा के सामने इसी जगह पर शादी का प्रस्ताव रखा था. जबकि गंगा भीम से शादी नहीं करना चाहती थी. इसीलिए गंगा ने भीम के सामने शादी की एक शर्त रखी थी, जिसके मुताबिक भीम को एक ही रात में चट्टान को काटकर इस मंदिर का निर्माण करया था. उसके बाद भीम की शर्त के मुताबिक 6 माह की एक रात बना दी. 6 माह की इस रात्रि में मंदिर का निर्माण किया गया था.

एलोरा के कैलाश मंदिर से तुलना

गरोठ क्षेत्र में स्थित धर्मराजेश्वर का यह मंदिर अजंता एलोरा की गुफाओं के बाद यह दूसरा मंदिर है, जो एक शिला को तराश कर बनाया गया है. इस मंदिर की तुलना एलोरा के कैलाश मंदिर से की जा सकती है, क्योंकि यह कैलाश मंदिर के समान ही एकाश्म शैली का बना है. इस मंदिर को 9 मीटर गहरी चट्टान को खोखला करके बनाया गया है.

मंदिर की लम्बाई 1453 मीटर है जिसमें छोटे-बड़े मंदिर, गुफाएं हैं. यहां पर 7 छोटे और एक बड़ा मंदिर और 200 के लगभग गुफाएं मौजूद हैं. बताया जाता है कि यहां पर एक विशाल गुफा भी है, जो इस मंदिर से उज्जैन निकलती है, जिसे पुरातत्व विभाग द्वारा बंद कर रखा है.

शिवरात्रि के दिन आते हैं लाखों भक्त

शिवरात्रि के दिन यहां देशभर से लाखों की संख्या में दर्शनार्थी दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति यहां रात गुजारेगा, उसका एक भोग तर जाएगा. कहा जाता है कि यहां मोक्ष की प्राप्ति होती है. भगवान अगर पत्थर में विराजते हैं तो धर्मराजेश्वर उसका एक जीता जागता उदाहरण है. इतिहासकारों में इस मंदिर की संरचना को लेकर विभिन्न मतभेद विद्यमान है. चट्टानों से तराशे गए इस भव्य धमराजेशवर मंदिर में आज भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

मंदसौर। जिले के गरोठ क्षेत्र में स्थित भगवान धर्मराजेश्वर का मंदिर दुनिया का पहला ऐसा मंदिर है, जो जमीन के अंदर बना हुआ है. बावजूद इसके यहां सूर्य की पहली किरण गर्भगृह तक पहुंचती है. ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव भगवान के दर्शन करते हैं. इस मंदिर की मान्यता है कि भगवान भास्कर खुद मंदिर में पहली किरण के साथ भगवान शिव और विष्णु के दर्शन के लिए आते हैं. धर्मराजेश्वर मंदिर का निर्माण एक विशाल चट्टान को काटकर किया गया है. ये दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसके मुकुट का पहले निर्माण हुआ और फिर ऊपर से नीचे की ओर निर्माण किया गया.

धर्मराजेश्वर मंदिर

आधुनिक इंजीनियरिंग युग के लिए चुनौती

आज के इस आधुनिक इंजीनियरिंग युग को चुनौती देते हुए ऊपर से नीचे की ओर निर्माण होने वाला यह मंदिर अद्भुत इंजीनियरिंग का प्रतीक है. जब सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह तक जाती है, तब ऐसा लगता है कि सूर्य भगवान स्वयं अपने 7 घोड़ों के रथ पर सवार होकर भगवान शिव और विष्णु के दर्शन करने के लिए मंदिर आए हों.

मंदसौर से धर्मराजेश्वर की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है, यहां आने वाला हर श्रद्धालु इस स्थान को देखकर एक अलग ही आनंद की अनुभूति करता है. मंदिर में छोटी कुईया विद्यमान हैं, मान्यता है कि इसका पानी कभी नहीं सूखता है और यहां के पानी से स्नान करने पर रैबीज की बीमारी को रोका जाता है. साथ ही चर्म रोग, सर्प डंस आदि बीमारियों से राहत मिलती है. विशाल मंदिर और यह देवालय ना सिर्फ भगवान शिव और विष्णु के मंदिर का प्रतीक है, बल्कि यह संसार का अकेला ऐसा मंदिर है, जो जमीन के भीतर होते हुए भी सूर्य की किरणों से सराबोर हैं.

माना जाता है कि द्वापर युग में पांडव जब अपने अज्ञातवास के दौरान इस स्थान पर आए थे, तो भीम ने गंगा के सामने इसी जगह पर शादी का प्रस्ताव रखा था. जबकि गंगा भीम से शादी नहीं करना चाहती थी. इसीलिए गंगा ने भीम के सामने शादी की एक शर्त रखी थी, जिसके मुताबिक भीम को एक ही रात में चट्टान को काटकर इस मंदिर का निर्माण करया था. उसके बाद भीम की शर्त के मुताबिक 6 माह की एक रात बना दी. 6 माह की इस रात्रि में मंदिर का निर्माण किया गया था.

एलोरा के कैलाश मंदिर से तुलना

गरोठ क्षेत्र में स्थित धर्मराजेश्वर का यह मंदिर अजंता एलोरा की गुफाओं के बाद यह दूसरा मंदिर है, जो एक शिला को तराश कर बनाया गया है. इस मंदिर की तुलना एलोरा के कैलाश मंदिर से की जा सकती है, क्योंकि यह कैलाश मंदिर के समान ही एकाश्म शैली का बना है. इस मंदिर को 9 मीटर गहरी चट्टान को खोखला करके बनाया गया है.

मंदिर की लम्बाई 1453 मीटर है जिसमें छोटे-बड़े मंदिर, गुफाएं हैं. यहां पर 7 छोटे और एक बड़ा मंदिर और 200 के लगभग गुफाएं मौजूद हैं. बताया जाता है कि यहां पर एक विशाल गुफा भी है, जो इस मंदिर से उज्जैन निकलती है, जिसे पुरातत्व विभाग द्वारा बंद कर रखा है.

शिवरात्रि के दिन आते हैं लाखों भक्त

शिवरात्रि के दिन यहां देशभर से लाखों की संख्या में दर्शनार्थी दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति यहां रात गुजारेगा, उसका एक भोग तर जाएगा. कहा जाता है कि यहां मोक्ष की प्राप्ति होती है. भगवान अगर पत्थर में विराजते हैं तो धर्मराजेश्वर उसका एक जीता जागता उदाहरण है. इतिहासकारों में इस मंदिर की संरचना को लेकर विभिन्न मतभेद विद्यमान है. चट्टानों से तराशे गए इस भव्य धमराजेशवर मंदिर में आज भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

Last Updated : Feb 24, 2021, 2:39 PM IST
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