मंदसौर। 2017 में हुए मंदसौर किसान आंदोलन की आज तीसरी बरसी है. खेती को फायदे का धंधा बनाने और फसलों के वाजिब दामों को लेकर प्रदेश में तीन साल पहले हुए भीषण किसान आंदोलन में 6 किसानों की मौत हो गई थी. लेकिन देश के इतिहास में इतनी बड़ी घटना के बावजूद आज भी किसानों की मांगें अधूरी हैं. किसान आंदोलन की तीसरी बरसी पर मंदसौर के किसानों ने एक बार फिर अपनी मांगों पर आंदोलन करने की चेतावनी दी है.
आज भी जिंदा है वो भयावह मंजर
किसान आंदोलन का वो मंजर आज भी यहां के किसानों के जहन में ताजा है. जगह-जगह हाईवे पर ट्रक और निजी संपत्तियों को आग के हवाले किया जा रहा था. किसान अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर थे. सड़कों पर दूध बहाया जा रहा था. फल और सब्जियां जगह-जगह सड़कों पर फेंकी जा रहीं थीं. अन्नदाता अपना खेत छोड़कर सड़कों पर आ गया था. उसी दौरान पुलिस और किसान आमने-सामने आए. टकराहट बढ़ी तो पुलिस ने फायरिंग कर दी. जिसका शिकार हुए अभिषेक पाटीदार, कन्हैयालाल पाटीदार, चैनराम पाटीदार, बब्लू पाटीदार, घनश्याम धाकड़ और सत्यनारायण धनगर. जो हमेशा-हमेशा के लिए मौत के आगोश में चले गए. घटना के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मृतक किसानों के परिजनों से मुलाकात करते हुए उन्हें एक-एक करोड़ रुपए का मुआवजा और परिजनों को सरकारी नौकरी देने के साथ ही उनके आवास और बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाने का आश्वासन दिया था. लेकिन तीन साल बाद भी मृतक के परिजनों की कुछ मांगें आज भी अधूरी हैं. तो किसानों को गोलियों से मार देने वाले पुलिसकर्मियों पर भी आज तक कोई कार्रवाई ना होने से मृतक किसानों के परिजन खासे नाराज हैं. वे आज भी सरकार से न्याय की गुहार लगा रहे हैं.
स्वामीनाथन आयोग की मांगों को लेकर हुआ था आंदोलन
मंदसौर में हुआ किसान आंदोलन स्वामीनाथन आयोग की मांगों पर हुआ था. जिसमें फसलों के वाजिब दाम, महंगाई के हिसाब से सर्मथन मूल्य पर खरीदी, खाद, बीज सहित कई मांगें किसानों ने सरकार से की थीं. लेकिन जब उन पर विचार नहीं हुआ तो एक जून 2017 से मंदसौर के दलोदा में किसानों ने आंदोलन का रास्ता पकड़ते हुए हाईवे पर चक्काजाम कर दिया. किसान नेताओं की अगुवाई में शुरू हुए इस आंदोलन में 3 दिन के भीतर ही जिले के हजारों किसान सड़क पर उतर आए. लेकिन शासन और प्रशासन के अलावा राजनेताओं ने इस दौरान भी उनकी कोई सुनवाई नहीं की. लिहाजा आंदोलन उग्र होने लगा. इसी दौरान मंदसौर की पिपलिया मंडी थाना क्षेत्र में पुलिस से हुई मुठभेड़ में पुलिस ने जवाबी कार्रवाई करते हुए फायरिंग कर दी. जिसमें पांच किसानों की मौत हो गई. इस घटना से आक्रोशित किसानों ने भी हमला करते हुए सड़क पर खड़े कई वाहनों में आग लगा दी. पुलिस पर आरोप लगा कि दालौदा क्षेत्र में पुलिसकर्मियों ने एक किसान को पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया. हिंसा इतनी बढ़ी की मोर्चे पर सीआरपीएफ और सेना को उतारना पड़ा. तब कहीं जाकर हालात काबू हुए.
जमकर हुई थी मंदसौर गोलीकांड पर सियासत
मंदसौर किसान आंदोलन पर सियासत भी जमकर हुई, नेताओं की तरफ से दावों वादों का दौर चला, सरकारें आई और गईं. लेकिन अन्नदाता की आस पूरी नहीं हुई. लिहाजा किसान आज भी अपनी मांगों को पूरा होने का इंतजार कर रहा है. अन्नदाता का कहना है कि चार साल पहले जिस स्वामीनाथन कमेटी की मांगों पर इतना बढ़ा आंदोलन हुआ, वे मांगे आज भी पूरी नहीं हुईं. हालांकि मंदसौर से बीजेपी सांसद सुधीर गुप्ता कहते हैं कि किसान आंदोलन में मारे गए किसान भाइयों के सभी वादे सरकार ने पूरे किए हैं. अगर कुछ खामियां रह गईं होगीं तो उन्हें भी पूरा किया जाएगा. जबकि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर भी विचार चल रहा है. केंद्र और राज्य सरकारों ने किसानों की कई मांगें मान भी ली हैं.
जनप्रतिनिधि कुछ भी कहें, लेकिन मंदसौर के किसानों का कहना है कि तीन साल पहले का वो गोलीकांड आज भी उन्हें याद है. हमने अपने 6 किसान भाइयों को खोया था. जिन्हें आज भी पूरा न्याय नहीं मिला. आंदोलन की तीसरी बरसी पर किसानों ने एक बार फिर सरकार को चेतावनी दी है अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुई तो एक बार फिर आंदोलन किया जाएगा.