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इस बार गोबर के दीए से रोशन होगी दीवाली, ग्रामीणों के लिए बढ़ेगा रोजगार का अवसर

इस बार गोबर के दीए से दीवाली रोशन होगी, जिसका लक्ष्य लोगों को रोजगार से जोड़ने और 'लोकल फॉर वोकल' की तर्ज पर करना होगा. पढ़िए पूरी खबर..

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गोबर के दीए
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Published : Nov 9, 2020, 4:32 AM IST

मंडला। देश को आत्मनिर्भर का पाठ पढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देसी वस्तुओं के इस्तेमाल पर बढ़ावा दिया है. पीएम का मानना है कि, लोकल वस्तु केवल हमारी जरूरत ही नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी है. इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने लोकल के लिए वोकल बनने की जरूरत है. इसी के तहत 'लोकल के लिए वोकल' का नारा दिया गया है, जिसका असर अब त्योहारी सीजन में भी दिखने को मिल रहा है. जाहिर है कि, हर बार दिवाली के मौके पर विदेशी दीप बाजारों में बिका करते थे, जिसके बदले में अब गोबर से बने दीए त्योहार पर रोशन किए जाएंगे.

गोबर के दीए

जिले भर में दीपावाली त्योहार की रोशनी इस बार गोबर से बनने वाले दीए से होगी, जिसका लक्ष्य लोगों को रोजगार से जोड़ने और 'लोकल फॉर वोकल' की तर्ज पर करना होगा. करीब एक दर्जन गांवों में इस नवाचार का लाभ दिलाने की कोशिश की जा रही है. वैसे तो गाय के गोबर से हवन सामग्री, कंडे और खाद के साथ-साथ सिल्लियां भी बनाई जाती है, जिनका अलग-अलग तरह से उपयोग किया जाता है, लेकिन जिले में इस साल दीपावली की रौनक गोबर से बनने वाले दीपक से होगी. इस नवाचार के तहत दर्जनों गांव की महिला-पुरुष गाय के गोबर को दीपक की शक्ल दे रहे हैं.


कैसे आया ख्याल
उप नगरीय क्षेत्र महाराजपुर में रहने वाले डॉक्टर गजेंद्र गुप्ता लंबे समय से समाज सेवा करते आ रहे हैं. उनका कहना है कि, कोरोना काल में लगातार उन्होंने लोगों की बेरोजगारी देखी है. ऐसे में उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के 'लोकल फॉर वोकल' से आइडिया आया कि, लोगों को रोजगार से जोड़ा जाए. इसके लिए उन्होंने काफी सोच-विचार कर निर्णय लिया कि, गोबर से दीए बनाए जाए, जिससे लोगों को आर्थिक तौर पर मदद मिल सके. साथ ही बाहर से आने वाले दीए के मुकाबले ग्राहकों को कम कीमत में गोबर के दीपक उपलब्ध हो सके.

कैसे बनता है गोबर के दीए
डॉक्टर गजेंद्र गुप्ता ने बताया कि, इन दीपों को बनाने के लिए गोबर में गवार पाठा की गोंद को मिलाया जाता है. इसके लिए बाहर से डाई या फाइबर के सांचे खरीदे जाते है, जिनमें गोबर को अच्छी तरह से गूथ कर सांचे की मदद से छोटी-छोटी गोलियों का आकार दिया जाता है. यह दीपक वजन में हल्के और काफी मजबूत होते हैं. इन दीपकों का फायदा यह होता है कि, दीपावली पर्व के बाद इन्हें विसर्जित करने के बजाए जलाया जाता है.

ऑनलाइन बिक्री की है योजना
गोबर से बने दीपों को बाजारों में तो बेचा ही जाएगा. इसके साथ ही ऑनलाइन माध्यम से भी इन्हें लोगों के घरों तक पहुंचाया जाएगा. इस साल लगभग 50 हजार दीपक बनाने का लक्ष्य रखा गया है. जिसमें गांव की महिलाओं को जोड़ा गया है. इन्हें दीपक के अलावा गोबर से बनने वाले अन्य उत्पादों जैसे अगरबत्ती, हवन सामग्री से संबंधित चीजों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाएगा. इन सामाग्रियों की कीमत बड़े कंपनियों के मुकाबले कम होगी, जिन्हें कम कीमत के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता के चलते पसंद किया जाएगा.


घर-घर मिलेगा रोजगार
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक किसान के पास पशुधन जरूर होता है. ऐसे में जो परिवार उत्पाद बनाने में रुचि दिखाएंगे, उन्हें जरूरी सामान उपलब्ध कराया जाएगा या फिर उनसे गीला या सूखा गोबर खरीदा जाएगा. इसके बाद गांवों में यूनिट लगाकर अलग-अलग तरह के उत्पाद तैयार किए जाएंगे.

पशुपालन का बढ़ेगा महत्व
गोबर के उपयोग से बनने वाले उत्पादों के चलते लोगों में पशुपालन को लेकर रुचि बढ़ेगी. साथ ही गोवंश को सम्मान के साथ संरक्षण भी मिलेगा. इसके साथ लोग पशुओं को सड़कों पर छोड़ने के बजाए घरों पर रखना ज्यादा जरूरी समझेंगे.

लिहाजा बिना किसी सरकारी दखल के लोगों को जोड़ने वाला यह कार्य निश्चित ही सराहनीय है. ऐसे नवाचार से लोगों को घर बैठे कमाई का नया जरिया मिलेगा, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी. साथ ही स्थानीय स्तर पर ग्राहकों को कम कीमत पर अच्छे उत्पाद मिलेंगे.

मंडला। देश को आत्मनिर्भर का पाठ पढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देसी वस्तुओं के इस्तेमाल पर बढ़ावा दिया है. पीएम का मानना है कि, लोकल वस्तु केवल हमारी जरूरत ही नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी है. इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने लोकल के लिए वोकल बनने की जरूरत है. इसी के तहत 'लोकल के लिए वोकल' का नारा दिया गया है, जिसका असर अब त्योहारी सीजन में भी दिखने को मिल रहा है. जाहिर है कि, हर बार दिवाली के मौके पर विदेशी दीप बाजारों में बिका करते थे, जिसके बदले में अब गोबर से बने दीए त्योहार पर रोशन किए जाएंगे.

गोबर के दीए

जिले भर में दीपावाली त्योहार की रोशनी इस बार गोबर से बनने वाले दीए से होगी, जिसका लक्ष्य लोगों को रोजगार से जोड़ने और 'लोकल फॉर वोकल' की तर्ज पर करना होगा. करीब एक दर्जन गांवों में इस नवाचार का लाभ दिलाने की कोशिश की जा रही है. वैसे तो गाय के गोबर से हवन सामग्री, कंडे और खाद के साथ-साथ सिल्लियां भी बनाई जाती है, जिनका अलग-अलग तरह से उपयोग किया जाता है, लेकिन जिले में इस साल दीपावली की रौनक गोबर से बनने वाले दीपक से होगी. इस नवाचार के तहत दर्जनों गांव की महिला-पुरुष गाय के गोबर को दीपक की शक्ल दे रहे हैं.


कैसे आया ख्याल
उप नगरीय क्षेत्र महाराजपुर में रहने वाले डॉक्टर गजेंद्र गुप्ता लंबे समय से समाज सेवा करते आ रहे हैं. उनका कहना है कि, कोरोना काल में लगातार उन्होंने लोगों की बेरोजगारी देखी है. ऐसे में उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के 'लोकल फॉर वोकल' से आइडिया आया कि, लोगों को रोजगार से जोड़ा जाए. इसके लिए उन्होंने काफी सोच-विचार कर निर्णय लिया कि, गोबर से दीए बनाए जाए, जिससे लोगों को आर्थिक तौर पर मदद मिल सके. साथ ही बाहर से आने वाले दीए के मुकाबले ग्राहकों को कम कीमत में गोबर के दीपक उपलब्ध हो सके.

कैसे बनता है गोबर के दीए
डॉक्टर गजेंद्र गुप्ता ने बताया कि, इन दीपों को बनाने के लिए गोबर में गवार पाठा की गोंद को मिलाया जाता है. इसके लिए बाहर से डाई या फाइबर के सांचे खरीदे जाते है, जिनमें गोबर को अच्छी तरह से गूथ कर सांचे की मदद से छोटी-छोटी गोलियों का आकार दिया जाता है. यह दीपक वजन में हल्के और काफी मजबूत होते हैं. इन दीपकों का फायदा यह होता है कि, दीपावली पर्व के बाद इन्हें विसर्जित करने के बजाए जलाया जाता है.

ऑनलाइन बिक्री की है योजना
गोबर से बने दीपों को बाजारों में तो बेचा ही जाएगा. इसके साथ ही ऑनलाइन माध्यम से भी इन्हें लोगों के घरों तक पहुंचाया जाएगा. इस साल लगभग 50 हजार दीपक बनाने का लक्ष्य रखा गया है. जिसमें गांव की महिलाओं को जोड़ा गया है. इन्हें दीपक के अलावा गोबर से बनने वाले अन्य उत्पादों जैसे अगरबत्ती, हवन सामग्री से संबंधित चीजों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाएगा. इन सामाग्रियों की कीमत बड़े कंपनियों के मुकाबले कम होगी, जिन्हें कम कीमत के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता के चलते पसंद किया जाएगा.


घर-घर मिलेगा रोजगार
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक किसान के पास पशुधन जरूर होता है. ऐसे में जो परिवार उत्पाद बनाने में रुचि दिखाएंगे, उन्हें जरूरी सामान उपलब्ध कराया जाएगा या फिर उनसे गीला या सूखा गोबर खरीदा जाएगा. इसके बाद गांवों में यूनिट लगाकर अलग-अलग तरह के उत्पाद तैयार किए जाएंगे.

पशुपालन का बढ़ेगा महत्व
गोबर के उपयोग से बनने वाले उत्पादों के चलते लोगों में पशुपालन को लेकर रुचि बढ़ेगी. साथ ही गोवंश को सम्मान के साथ संरक्षण भी मिलेगा. इसके साथ लोग पशुओं को सड़कों पर छोड़ने के बजाए घरों पर रखना ज्यादा जरूरी समझेंगे.

लिहाजा बिना किसी सरकारी दखल के लोगों को जोड़ने वाला यह कार्य निश्चित ही सराहनीय है. ऐसे नवाचार से लोगों को घर बैठे कमाई का नया जरिया मिलेगा, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी. साथ ही स्थानीय स्तर पर ग्राहकों को कम कीमत पर अच्छे उत्पाद मिलेंगे.

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