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परीक्षा की पाठशाला में भविष्य का बागवान, शहरी जिंदगी छोड़ गरीब बच्चों को कर रहा शिक्षित

मंडला जिले के बनियातारा गांव के स्कूल में मुफ्त में पढ़ाने वाले शिक्षक दिलीप केमतानी अन्य शिक्षकों के लिए मिसाल हैं क्योंकि दिलीप ग्रामीण बच्चों को मुफ्त में अंग्रेजी पढ़ाते हैं. जिन्होंने ग्रामीण बच्चों की पढ़ाई का स्तर सुधारने के लिए अपनी सुख सुविधाओं को छोड़ दिया, देखिए परीक्षा की पाठशाला में ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

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भविष्य का बागवान
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Published : Feb 24, 2020, 5:24 PM IST

मंडला। बच्चों को पढ़ाते हुए दिख रहे इस शख्स का नाम दिलीप केमतानी है, जिन्होंने भारत की आत्मा के बच्चों के दिल की आवाज सुनी और सबकुछ छोड़कर गांव के बच्चों का भविष्य मुकम्मल करने लगे, उन्होंने बच्चों के पढ़ाई का स्तर सुधारने के लिए अपनी सारी सुख सुविधाओं को छोड़ दिया, जबलपुर जैसे बड़े शहर में रहने वाले दिलीप केमतानी शहरी भागमभाग से दूर मंडला जिले के एक छोटे से गांव बनियातारा के स्कूल में ग्रामीण बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देते हैं. दिलीप की इस दरियादिली का पूरा गांव कायल है, जिसके चलते लोग उन्हें बाबूजी कहकर बुलाते हैं.

शिक्षक दिलीप केमतानी की कहानी

जबलपुर निवासी दिलीप केमतानी दूध डेयरी चलाते थे, लेकिन उनके मन में हमेशा एक ही बात चलती थी कि इतना पढ़ने-लिखने के बाद भी वे समाज को क्या दे रहे हैं, बस यही सोच उन्हें मंडला जिले के बनियातारा गांव खींच ले गई. जहां के सरकारी स्कूल के प्रधानाचार्य के पास पहुंचे और बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने का प्रस्ताव रखा, प्रधानाचार्य को दिलीप केमतानी जैसे की ही तलाश थी क्योंकि अंग्रेजी पढ़ाने के लिए स्कूल में कोई शिक्षक नहीं था.

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बच्चों को पढ़ाते दिलीप केमतानी

केमतानी पिछले दस साल से बनियातारा गांव और आस-पास के बच्चों को फ्री में अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं. हालांकि, बाद में जब प्रदेश में अतिथि शिक्षकों की शुरुआत हुई तो दिलीप केमतानी को कुछ वेतन मिलने लगा. पर इस वेतन को भी वे गरीब बच्चों पर खर्च कर देते हैं. ईटीवी भारत ने जब दिलीप केमतानी से बात की तो उन्होंने कहा कि वह बच्चों का भविष्य गढ़ने में जुटे हैं. एग्जाम की तैयारियों में जुटे बच्चों को उन्होंने सलाह दी कि परसेंटेज के पीछे भागने की बजाय विद्यार्थियों को अपनी क्षमता का मूल्यांकन करना चाहिए और उसी के हिसाब से बिना तनाव के तैयारी करनी चाहिए.

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दिलीप केमतानी

मजबूत इरादों वाले दिलीप केमतानी कहते हैं कि वे जब तक जिंदा हैं, इन बच्चों को पढ़ाते रहेंगे, ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि मंडला जैसे आदिवासी क्षेत्र के ग्रामीण बच्चों का भविष्य संवारने का योगदान शिक्षा के क्षेत्र में लोगों के लिए प्रेरणादायक है क्योंकि बच्चों को दिन-रात शिक्षा दान करने वाले बाबूजी अपने भविष्य के बारे में न सोचकर इन बच्चों का भविष्य मुकम्मल करने में जुटे हैं.

मंडला। बच्चों को पढ़ाते हुए दिख रहे इस शख्स का नाम दिलीप केमतानी है, जिन्होंने भारत की आत्मा के बच्चों के दिल की आवाज सुनी और सबकुछ छोड़कर गांव के बच्चों का भविष्य मुकम्मल करने लगे, उन्होंने बच्चों के पढ़ाई का स्तर सुधारने के लिए अपनी सारी सुख सुविधाओं को छोड़ दिया, जबलपुर जैसे बड़े शहर में रहने वाले दिलीप केमतानी शहरी भागमभाग से दूर मंडला जिले के एक छोटे से गांव बनियातारा के स्कूल में ग्रामीण बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देते हैं. दिलीप की इस दरियादिली का पूरा गांव कायल है, जिसके चलते लोग उन्हें बाबूजी कहकर बुलाते हैं.

शिक्षक दिलीप केमतानी की कहानी

जबलपुर निवासी दिलीप केमतानी दूध डेयरी चलाते थे, लेकिन उनके मन में हमेशा एक ही बात चलती थी कि इतना पढ़ने-लिखने के बाद भी वे समाज को क्या दे रहे हैं, बस यही सोच उन्हें मंडला जिले के बनियातारा गांव खींच ले गई. जहां के सरकारी स्कूल के प्रधानाचार्य के पास पहुंचे और बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने का प्रस्ताव रखा, प्रधानाचार्य को दिलीप केमतानी जैसे की ही तलाश थी क्योंकि अंग्रेजी पढ़ाने के लिए स्कूल में कोई शिक्षक नहीं था.

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बच्चों को पढ़ाते दिलीप केमतानी

केमतानी पिछले दस साल से बनियातारा गांव और आस-पास के बच्चों को फ्री में अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं. हालांकि, बाद में जब प्रदेश में अतिथि शिक्षकों की शुरुआत हुई तो दिलीप केमतानी को कुछ वेतन मिलने लगा. पर इस वेतन को भी वे गरीब बच्चों पर खर्च कर देते हैं. ईटीवी भारत ने जब दिलीप केमतानी से बात की तो उन्होंने कहा कि वह बच्चों का भविष्य गढ़ने में जुटे हैं. एग्जाम की तैयारियों में जुटे बच्चों को उन्होंने सलाह दी कि परसेंटेज के पीछे भागने की बजाय विद्यार्थियों को अपनी क्षमता का मूल्यांकन करना चाहिए और उसी के हिसाब से बिना तनाव के तैयारी करनी चाहिए.

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दिलीप केमतानी

मजबूत इरादों वाले दिलीप केमतानी कहते हैं कि वे जब तक जिंदा हैं, इन बच्चों को पढ़ाते रहेंगे, ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि मंडला जैसे आदिवासी क्षेत्र के ग्रामीण बच्चों का भविष्य संवारने का योगदान शिक्षा के क्षेत्र में लोगों के लिए प्रेरणादायक है क्योंकि बच्चों को दिन-रात शिक्षा दान करने वाले बाबूजी अपने भविष्य के बारे में न सोचकर इन बच्चों का भविष्य मुकम्मल करने में जुटे हैं.

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