मंडला। पूर्णिमा जो अब पूनम की रात की तरह जर्रे-जर्रे को रोशन कर रही है और अपने बुलंद इरादों के दम पर अपनी मां के सपनों को पूरा कर रही है, साथ ही महिलाओं के लिए भी नजीर साबित हो रही है, पूर्णिमा ने बुशु जैसे कठिन खेल में 15 गोल्ड जीता है, ये उस खिलाड़ी के हुनर का जलवा है, जिसे पूरा देश सलाम कर रहा है. जो महिला सशक्तिकरण की मिसाल है. मंडला की रहने वाली बुशु प्लेयर पूर्णिमा रजक अपने बुलंद इरादों से उन सपनों को पूरा कर रही हैं, जो कभी उसकी मां देखा करती थी.
बुशु गेम, जूड़ो-कराते, ताइक्वांडो का मिक्स चाइनीज गेम है, जिसमें पूर्णिमा को महारत हासिल है. पर उसकी कामयाबी की कहानी उसकी मां से शुरु होती है, जिसने अपना सबकुछ दांव पर लगाकर पूर्णिमा को इस मुकाम तक पहुंचाया. पूर्णिमा की मां को बचपन से ही कबड्डी का शौक था. लेकिन आर्थिक तंगी के चलते वो अपने सपनों को तो उड़ान नहीं दे पाई, लेकिन अपनी बेटी को इस कदर तराशा कि सारे सपने हकीकत में बदल गए.
पूर्णिमा की मां ने उसे बुशु खेल की ट्रेनिंग दिलाई. पूर्णिमा ने भी दिन रात मेहनत कर मां के सपनों को पूरा करने के लिए जमकर मेहनत की. खास बात ये है कि जब पूर्णिमा को पहली बार हिमाचल में आयोजित नेशनल गेम में खेलने का मौका मिला, तब उसके पास जाने तक के पैसे नहीं थे. तब पूर्णिमा की मां ने अपना मंगलसूत्र गिरवी रखकर उसे खेलने भेजा था. जहां से पहली ही बार में ही पूर्णिमा गिरवी रखे सोने के बदले सोना लेकर लौटी थी.
नेशनल गेम्स में मेडल जीतने का सफर अब तक जारी है
- 2011 झारखंड नेशनल गेम्स में 2 गोल्ड
- 2012 पटना नेशनल गेम्स में 2 गोल्ड
- 2013 मणिपुर नेशनल गेम्स में 2 गोल्ड
- 2014 छत्तीसगढ़ नेशनल गेम्स में 4 गोल्ड
- 2016 झारखंड नेशनल गेम्स में सिल्वर मेडल
- 2017 असम नेशनल गेम्स में सिल्वर
- 2017 ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी हरियाणा गेम्स में गोल्ड
- 2018 नेशनल गेम्स में गोल्ड मेडल
- 2018 ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी चंड़ीगढ़ गेम्स में गोल्ड
- 2019 जम्मू नेशनल गेम्स में 2 गोल्ड मेडल जीत चुकी है.
पूर्णिमा के पास उपहारों, सम्मान पत्रों, सील्ड, कप की तो गिनती भी नहीं है. पूर्णिमा के नाम दो नेशनल कैम्प भी हैं, वह कलर्स टीवी के शो इंडिया बनेगा मंच का हिस्सा भी बन चुकी हैं, पूर्णिमा के अब तक का सफर शानदार रहा है, लेकिन आर्थिक तंगी और सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलने की वजह से वह अपने खेल को आगे बढ़ाने में उसे परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
पूर्णिमा मंडला में बच्चों को बुशु की ट्रेनिंग भी देती हैं, पूर्णिमा के तरासे हीरे भी राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में अपनी चमक बिखेर रहे हैं. कहीं न कहीं मलाल बस इस बात का रह जाता है कि देश को ओलंपिक में गोल्ड मेडल तो चाहिए. लेकिन टैलेंट को उस मुकाम तक पहुंचने का मौका ही नहीं मिल पाता है, जिसका वह हकदार होता है. पूर्णिमा महिलाओं के लिए मिसाल हैं कि बेटियां किसी भी क्षेत्र में बेटों से कम नहीं हैं, बस सपनों को मंजिल तक पहुंचाने की भूख होनी चाहिए.