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निर्मल ने भरी हौसलों की उड़ान, बेजान उंगलियों को बनाया कला का साधन

बीमारी के चलते 18 साल की उम्र में निर्मल की उंगलियों ने विकृत रूप लेना शुरू कर दिया है, लेकिन निर्मल ने हार नहीं मानी और अपनी पढ़ाई और चित्रकारी को आगे बढ़ाया.

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निर्मल ने भरी हौसलों की उड़ान
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Published : Nov 16, 2020, 6:31 AM IST

मण्डला। एक शिक्षक की कलाकारी और पढ़ाने का अंदाज ऐसा है, कि हर कोई देखता रह जाए. लेकिन जब उनकी उंगलियों पर नजर ठहरे तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि कोई इन विकृत उंगलियों के सहारे कोई ऐसी तस्वीर भी बना सकता है. 18 साल की उम्र में निर्मल को ऐसा लगा जैसे उसकी सारी दुनिया ही उजड़ गई. पढ़ाई करने के साथ ही कला को साधने वाला व्यक्ति आखिर अचानक अपने हाथों की उंगलियां खोने के बाद भला और क्या सोचता. लेकिन उसने हार नहीं मानी और बेजान उंगलियों को ही अपनी कला का साधन बनाया.

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बेजान उंगलियों को बनाया कला का साधन

मण्डला जिले के ग्राम बम्हनी में रहने वाले निर्मल हरदहा ने 18 साल की उम्र में आर्थ्राइटिस की बीमारी ने ऐसा घेरा की निर्मल की दोनों हाथों की उंगलियां और अंगूठे पूरी तरह से विकृत होने के साथ ही किसी काम के न रहे, हाथ से कलम के साथ ही रंग पेंट और ब्रश सब कुछ छूट गया और निर्मल को लगा जैसे अब वो न कभी पढ़ाई कर पाएगा, और न ही अपनी चित्रकारी को आगे बढ़ा पाएगा.

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निर्मल ने भरी हौसलों की उड़ान

खुद के हौसले से की नई शुरुआत

अमझर प्राथमिक शाला में पदस्थ शिक्षक निर्मल हरदहा का कहना है कि बीमारी में अपने हाथों की अंगुलियों को खोने के बाद कुछ महीने तो हताशा में बीते. लेकिन दूसरों की हमदर्दी और मदद से आखिर कब तक काम चलाते. यही वजह है कि उन्होंने इन विकृत उंगलियों से ही धीरे-धीरे काम लेना शुरू किया. जिसमें दिक्कत तो बहुत आई, लेकिन उनके हौसले के आगे नियति को भी हार माननी पड़ी. पहले कलम चली फिर इन्हीं बेजान उंगलियों ने फिर से रंग भरना शुरू कर दिया.

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विकृत उंगलियों से कलाकारी

पढ़ाने का अलग है अंदाज

निर्मल जब से शिक्षक बने हैं तभी से उनके पढ़ाने का अंदाज चर्चा में रहा है. 1998 से अमझर स्कूल की कक्षा पढ़ाई सामग्री की पेंटिंग से रंगी हुई है. वहीं खेल खेल में बच्चों को पढ़ाने के लिए वे बहुत से मॉडल, लकड़ी, गत्ते और कार्ड शीट की मदद से तैयार करते हैं. कहानियों और गीतों के माध्यम से मनोरंजन का समावेश उनकी कक्षाओं में देखा जा सकता है.

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विकृत उंगलियों से कलाकारी

सरकारी स्कूल की दीवारों को बना रहे कलात्मक

वैसे तो निर्लम कक्षाओं को सजाए रखने के शौकीन है. लेकिन लॉक डाउन के चलते स्कूलों में बच्चे नहीं आ रहे हैं, और इस खाली समय का सदुपयोग निर्मल हरदहा कक्षाओं को फिर से रंग रोगन कर पढ़ाई से संबंधित पेंटिंग्स बनाने में तो कर ही रहे हैं, वहीं स्कूल की बाउंड्री को भी आदिवासी आर्ट, बैगा आर्ट और मण्डला जिले की शान कान्हा टाईगर रिजर्व, आदिवासी परम्पराओं से सम्बंधित चित्रों से रंगीन कर रहे हैं. जिससे कि सरकारी स्कूल भी किसी प्राइवेट स्कूल से कम न लगे.

निर्मल ने भरी हौसलों की उड़ान

विभाग के भी हैं चहेते

निर्मल के हौसले और कला से उनके अधिकारी भी वाकिफ हैं. डीपीसी हीरेंद्र वर्मा का कहना है कि वह बहुत मेहनती और होनहार शिक्षक होने के साथ ही बेहतरीन कलाकार भी हैं. जब मॉडल स्कूल बनाने की सोच शिक्षा विभाग में आई, तो निर्मल हरदहा के स्कूल का भी ख्याल आया, जिले में बन रहे 90 मॉडल स्कूल में अमझर को भी शामिल किया गया, और निर्मल पूरी तल्लीनता के साथ यहां किसी प्रोफेशनल कलाकार की ही तरह ही कला के रंग बिखेर रहे हैं.

मण्डला। एक शिक्षक की कलाकारी और पढ़ाने का अंदाज ऐसा है, कि हर कोई देखता रह जाए. लेकिन जब उनकी उंगलियों पर नजर ठहरे तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि कोई इन विकृत उंगलियों के सहारे कोई ऐसी तस्वीर भी बना सकता है. 18 साल की उम्र में निर्मल को ऐसा लगा जैसे उसकी सारी दुनिया ही उजड़ गई. पढ़ाई करने के साथ ही कला को साधने वाला व्यक्ति आखिर अचानक अपने हाथों की उंगलियां खोने के बाद भला और क्या सोचता. लेकिन उसने हार नहीं मानी और बेजान उंगलियों को ही अपनी कला का साधन बनाया.

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बेजान उंगलियों को बनाया कला का साधन

मण्डला जिले के ग्राम बम्हनी में रहने वाले निर्मल हरदहा ने 18 साल की उम्र में आर्थ्राइटिस की बीमारी ने ऐसा घेरा की निर्मल की दोनों हाथों की उंगलियां और अंगूठे पूरी तरह से विकृत होने के साथ ही किसी काम के न रहे, हाथ से कलम के साथ ही रंग पेंट और ब्रश सब कुछ छूट गया और निर्मल को लगा जैसे अब वो न कभी पढ़ाई कर पाएगा, और न ही अपनी चित्रकारी को आगे बढ़ा पाएगा.

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निर्मल ने भरी हौसलों की उड़ान

खुद के हौसले से की नई शुरुआत

अमझर प्राथमिक शाला में पदस्थ शिक्षक निर्मल हरदहा का कहना है कि बीमारी में अपने हाथों की अंगुलियों को खोने के बाद कुछ महीने तो हताशा में बीते. लेकिन दूसरों की हमदर्दी और मदद से आखिर कब तक काम चलाते. यही वजह है कि उन्होंने इन विकृत उंगलियों से ही धीरे-धीरे काम लेना शुरू किया. जिसमें दिक्कत तो बहुत आई, लेकिन उनके हौसले के आगे नियति को भी हार माननी पड़ी. पहले कलम चली फिर इन्हीं बेजान उंगलियों ने फिर से रंग भरना शुरू कर दिया.

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विकृत उंगलियों से कलाकारी

पढ़ाने का अलग है अंदाज

निर्मल जब से शिक्षक बने हैं तभी से उनके पढ़ाने का अंदाज चर्चा में रहा है. 1998 से अमझर स्कूल की कक्षा पढ़ाई सामग्री की पेंटिंग से रंगी हुई है. वहीं खेल खेल में बच्चों को पढ़ाने के लिए वे बहुत से मॉडल, लकड़ी, गत्ते और कार्ड शीट की मदद से तैयार करते हैं. कहानियों और गीतों के माध्यम से मनोरंजन का समावेश उनकी कक्षाओं में देखा जा सकता है.

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विकृत उंगलियों से कलाकारी

सरकारी स्कूल की दीवारों को बना रहे कलात्मक

वैसे तो निर्लम कक्षाओं को सजाए रखने के शौकीन है. लेकिन लॉक डाउन के चलते स्कूलों में बच्चे नहीं आ रहे हैं, और इस खाली समय का सदुपयोग निर्मल हरदहा कक्षाओं को फिर से रंग रोगन कर पढ़ाई से संबंधित पेंटिंग्स बनाने में तो कर ही रहे हैं, वहीं स्कूल की बाउंड्री को भी आदिवासी आर्ट, बैगा आर्ट और मण्डला जिले की शान कान्हा टाईगर रिजर्व, आदिवासी परम्पराओं से सम्बंधित चित्रों से रंगीन कर रहे हैं. जिससे कि सरकारी स्कूल भी किसी प्राइवेट स्कूल से कम न लगे.

निर्मल ने भरी हौसलों की उड़ान

विभाग के भी हैं चहेते

निर्मल के हौसले और कला से उनके अधिकारी भी वाकिफ हैं. डीपीसी हीरेंद्र वर्मा का कहना है कि वह बहुत मेहनती और होनहार शिक्षक होने के साथ ही बेहतरीन कलाकार भी हैं. जब मॉडल स्कूल बनाने की सोच शिक्षा विभाग में आई, तो निर्मल हरदहा के स्कूल का भी ख्याल आया, जिले में बन रहे 90 मॉडल स्कूल में अमझर को भी शामिल किया गया, और निर्मल पूरी तल्लीनता के साथ यहां किसी प्रोफेशनल कलाकार की ही तरह ही कला के रंग बिखेर रहे हैं.

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