मंडला। किसी भी काम की शुरुआत हो या फिर शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य. चौगान की मढ़िया में आस्था रखने वाले अपने हर काम का शुभारंभ से पहले और समापन के बाद यहां माथा टेकने जरूर आते थे. जिनमें सबसे ज्यादा तादाद आदिवासी समाज की है. यही वजह है कि इसे आदिवासियों के तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है. लेकिन लॉकडाउन की वजह से यहां सन्नाटा पसरा हुआ है.मान्यता के मुताबिक इस मढ़िया में मां काली के साथ दूसरे देवी-देवताओं की पूजा भी होती है. खासतौर पर ये स्थान झाड़-फूंक के लिए जाने जाना जाता है.
चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व
वैसे तो हर समय ही यहां भक्तों की भीड़ मौजूद रहती है. लेकिन नवरात्रि और शादी-विवाह के सीजन में इस स्थान का महत्व और बढ़ जाता है. चैत्र के नवरात्र में तो यहां श्रद्धालुओं की संख्या 25 हजार पार कर जाती है. इस स्थल पर जवारे और कलश रखा जाता है. लेकिन अब लॉकडाउन की चलते यहां श्रद्धालुओं के आने पर पाबंदी है.
देवी स्थल से जुड़ी हैं ये मान्यताएं
इस स्थान से जुड़ी मान्यताएं भी हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां की भभूति लेने के बाद सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. लेकिन बीते 40 दिनों से लगे लॉकडाउन में अब इस स्थान पर पुजारी ही पूजा करते हैं. पुजारी बताते हैं कि कोरोना संक्रमण के बाद जब से लॉकडाउन लगा है तब से यहां श्रद्धालुओं के आने पर मनाही है. वो खुद यहां पूजा करते हैं और अगर कोई आस-पास व्यक्ति यहां आता तो उसे वापस भेज देते हैं.
चौगान मढ़िया के नवरात्र और यहां लगने वाली मंडाई इतनी मशहूर है कि रामनगर से लेकर चौगान तक करीब 4 किलोमीटर तक पैर रखने की जगह नहीं होती थी. हमेशा श्रद्धालुओं से गुलजार रहने वाला ये पूजा स्थल अब सूना पड़ा है.