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कौमी एकता की मिसाल बनी साब जैन और शेख गुलाम की दोस्ती, अब बच्चे भी निभा रहे हैं याराना

जिले के साब जैन और शेख गुलाम रसूल की दोस्ती कौमी एकता की मिसाल है. इनकी दोस्ती तीन पीढ़ियों से चली आ रही है, जो 47 साल बाद भी कायम है.

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Published : Aug 3, 2019, 3:38 PM IST

कौमी एकता की मिसाल बनी साब जैन और शेख गुलाम की दोस्ती

मंडला। दोस्ती से बड़ा कोई धर्म नहीं होता. कहते हैं कि दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है, जिसे इंसान अपनी मर्जी से चुनता है और उसे निभाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करता है, जो आगे आने वाले पीढ़ी के लिए मिसाल बन जाती है. ऐसा की रिश्ता है साब जैन और शेख गुलाम रसूल का, जो पीढ़ियों से चला आ रही है. इनका यह रिश्ता दोस्ती नहीं बल्कि कौमी एकता का भी संदेश देती है.

कौमी एकता की मिसाल बनी साब जैन और शेख गुलाम की दोस्ती

साब जैन और शेख गुलाम रसूल की दोस्ती की शुरुआत पार्टनरशिप से हुई थी. दरअसल साब जैन और शेख गुलाम रसूल ने एक साथ व्यवसाय करने का सोचा. जिसके बाद जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर पिंडरई में दोनों ने मिलकर एक महावीर किराना स्टोर खोला. लगभग 5 दशक एक ही दुकान पर साथ-साथ बीत जाने के बाद भी इन के बीच कभी कोई कड़वाहट या खटपट जैसी बात नहीं हुई. गुलाम रसूल अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके बेटे शेख मोहर अली गार्ड अंकल यानि साब जैन के साथ पिता-पुत्र का सा रिश्ता निभा रहे हैं. बताया जा रहा है कि 1971 में दोनों की दोस्ती हुई थी, जो 47 साल बाद भी कायम है.

बताया जा रहा है कि पिता की दोस्ती के बाद बेटों ने भी दोस्ती का वही सिलसिला जारी रखा है. मोहम्मद और नवीन जैन की दोस्ती भी उनके पिता जैसी है. ये दोनों भी भाई-भाई की तरह ही रहते हैं. दुकान, रुपए-पैसों और कमाई को लेकर दोनों के बीच कभी कोई तकरार नहीं हुई. इलाके के लोग भी इनकी दोस्ती की मिसाल देते हैं.

मंडला। दोस्ती से बड़ा कोई धर्म नहीं होता. कहते हैं कि दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है, जिसे इंसान अपनी मर्जी से चुनता है और उसे निभाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करता है, जो आगे आने वाले पीढ़ी के लिए मिसाल बन जाती है. ऐसा की रिश्ता है साब जैन और शेख गुलाम रसूल का, जो पीढ़ियों से चला आ रही है. इनका यह रिश्ता दोस्ती नहीं बल्कि कौमी एकता का भी संदेश देती है.

कौमी एकता की मिसाल बनी साब जैन और शेख गुलाम की दोस्ती

साब जैन और शेख गुलाम रसूल की दोस्ती की शुरुआत पार्टनरशिप से हुई थी. दरअसल साब जैन और शेख गुलाम रसूल ने एक साथ व्यवसाय करने का सोचा. जिसके बाद जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर पिंडरई में दोनों ने मिलकर एक महावीर किराना स्टोर खोला. लगभग 5 दशक एक ही दुकान पर साथ-साथ बीत जाने के बाद भी इन के बीच कभी कोई कड़वाहट या खटपट जैसी बात नहीं हुई. गुलाम रसूल अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके बेटे शेख मोहर अली गार्ड अंकल यानि साब जैन के साथ पिता-पुत्र का सा रिश्ता निभा रहे हैं. बताया जा रहा है कि 1971 में दोनों की दोस्ती हुई थी, जो 47 साल बाद भी कायम है.

बताया जा रहा है कि पिता की दोस्ती के बाद बेटों ने भी दोस्ती का वही सिलसिला जारी रखा है. मोहम्मद और नवीन जैन की दोस्ती भी उनके पिता जैसी है. ये दोनों भी भाई-भाई की तरह ही रहते हैं. दुकान, रुपए-पैसों और कमाई को लेकर दोनों के बीच कभी कोई तकरार नहीं हुई. इलाके के लोग भी इनकी दोस्ती की मिसाल देते हैं.

Intro:1971 से अब तक चला आ रहा इन दो परिवारों का भाईचारा,जैन और मुस्लिम का याराना बना दोस्ती की मिसाल 47 साल के संबंधों को निभा रही तीसरी पीढ़ी,एक किराने की दुकान से चला पार्टनर शिप का सिलसिला दे रहा कौमी एकता का संदेश
Body:
मण्डला /दुनिया के सारे रिश्ते निभाना इंशान की मजबूरी हो सकती है क्योंकि ये सभी रिश्ते भगवान या समाज के द्वारा बनाए होते हैं,लेकिन दोस्ती एक ऐसा पवित्र रिस्ता है जिसे इंशान खुद अपनी मर्जी से चुनता है और उसे खुद ही निभाता भी है,एक ऐसा ही रिस्ता बना आज से करीब 47 साल पहले गार्ड साब जैन और शेख गुलाम रसूल का,जो आज मिसाल बन गया ।दोस्ती के इस रिश्ते की शुरुआत भी अचानक हुई बस दो लोग बैठे उन्होंने सोचा कि रोजी रोटी के लिए मिल कर कुछ साथ साथ किया जाए और फैसला हुआ कि एक किराने की दुकान खोल ली जाए,दुकान खुल भी गयी और व्यवसायिक रिस्ता याराने की एक ऐसी नजीर बन गया जिसकी लोग तरीफ करते नहीं थकते
मण्डला से करीब 40 किलोमीटर दूर पिंडरई में महावीर किराना स्टोर दोस्ती का वो मंदिर है जहाँ लोग आते तो सौदा लेने हैं,लेकिन याराने के खरे सौदे की गवाही की वो कहानियां लेकर जाते हैं जो महज़ किताबों या इतिहास का हिस्सा हो सकती हैं,वो भी ऐसे समय में जब भाई के साथ भाई की पटरी नहीं बैठती और पिता पुत्र में भी व्यवसाय को लेकर मनमुटाव के कई किस्से देखने को मिलते हैं,लेकिन माजाल है जो लगभग 5 दशक का समय एक ही दुकान पर साथ साथ बीत जाने के बाद भी इन के बीच कभी कोई कड़वाहट या खटपट जैसी बात हुई हो, आज रसूल साहब तो नहीं हैं लेकिन उनके बेटे शेख मोहर अली गार्ड अंकल के साथ पिता पुत्र का सा रिस्ता निभा रहे हैं,
सचिन मोहम्मद और नवीन जैन इस दोस्ती की तीसरी पीढ़ी हैं,ये दोनों भी भाई भाई की तरह ही रहते हैं,दुकान को लेकर और रुपये पैसों के हिसाब को लेकर इनमें न कभी लोभ आड़े आया न ही ज्यादा पैसों का लालच,जो भी इस दुकान से कमाई होती है उसमें दोनों का पूरा हक़ और आपस में वो विस्वास भी जिसके सहारे महावीर किराना स्टोर्स की शुरुआत हुई थी,घर मे कोई उत्सव हो या शादी व्याह से लेकर धार्मिक आयोजन एक दूसरे का परिवार पूरे दिल से उसमें शरीक होता है और रिश्तेदारों से बढ़ कर अपनेपन का अहशास भी दिलाता है इस युवा पीढ़ी को भी कोई देख कर यह नहीं कह सकता कि ये सगे भाई नहीं हैं


Conclusion:जब खून के रिश्ते आजकल धोखा दे जाते हों और छोटे छोटे मसलों में धर्म और जाति के नाम पर तलवारें खिंच जाती हों ऐसे हालात में क्या दोस्ती,इन्शानियत और कौमी एकता का पाठ पढ़ाने वाले उन धर्म के ठेकेदारों को यह नज़र नहीं आता कि दोस्ती से बड़ा कोई धर्म नहीं और भाईचारे से बढ़ कर कोई इबादत नहीं,बस जरूरत है उस सोच की जो हर एक के मन में तो होती है लेकिन दूसरों का उदाहरण देने के लिए न कि खुद उस पर अमल करने की।

बाइट पहली--गार्ड साब जैन
बाइट--दूसरी--शेख मोहर अली
बाइटतीसरी--सचिन मोहम्मद

मयंक तिवारी ईटीव्ही भारत मण्डला
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