मंडला। लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. सोहन लाल द्विवेदी की लिखी ये फेमस पंक्तियां सुन कर ही हम मोटीवेट हो जाते हैं और कुछ करने का जुनून आ जाता है, सफर खुद व खुद निराशा से आशा की ओर चलने लगता है. इन्हीं लाइनों चरितार्थ करने में लगे हैं मंडला जिले के बड़ी खैरी के ओमप्रकाश धनगर जो अपनी शिक्षा दिक्षा के लिए पिता की पंचर दुकान चलाते हैं और इसी की कमाई से अपनी पढ़ाई का खर्च वहन करने के साथ ही परिवार को भी आर्थिक मदद दे रहे हैं.
क्या हुआ जो माता पिता अमीर नहीं, पढाई की लगन हो और बच्चे ओमप्रकाश धनगर जैसे हो हो तो वे खुद ही अपने सपनों को उडान देते हैं. ओमप्रकाश खुद पंचर बना कर अपने सपनों को साकार करने में जुटे हैं, इतना ही नहीं बीएससी की डिग्री हासिलकर चुके ओमप्रकाश धनगर दर्जन भर बच्चों में भी ज्ञान का प्रकाश फैला रहे हैं. ओमप्रकाश धनगर पंचर बनाने से बचे खाली समय में दुकान में ही कॉपी किताब लेकर बैठ जाते हैं और कुछ न कुछ पढ़ने लगते हैं.
गरीबी को नहीं आने दिया आड़े
मलारा गांव से पिता तुलसीराम धनगर 16 साल पहले रोजी-रोटी की तलाश में इसलिए शहर आ गए क्योंकि उनके पास इतनी जमीन जायजाद नहीं कि परिवार के भरण पोषण और बच्चों की पढ़ाई का बेहतर इंतजाम हो सके, जिसके बाद पिता ने पंचर की दुकान खोल ली लेकिन दिन में बमुश्किल 100 रुपये ही हाथ आते थे. ऐसे में हाई स्कूल की पढ़ाई कंप्लीट करने के बाद से ओमप्रकाश ने पंचर की दुकान संभालनी शुरू कर दी और इसके बाद उनकी आमदनी भी बढ़ गई. मैथ्स से बीएससी कम्प्लीट करने के बाद आज भी 24 साल के ओम प्रकाश धनगर पंचर की दुकान में बैठने के साथ ही लगभग 10 से 12 बच्चों को कोचिंग पढ़ा कर अपनी पढ़ाई का खर्च के साथ परिवार की भी आर्थिक मदद कर रहे हैं.
सरकारी नौकरी पाना है लक्ष्य
ओम प्रकाश धनगर का कहना है कि हमेशा से परिवार ने आर्थिक तंगी का माहौल देखा है. ऐसे में पिता और उनका सपना है कि वे सरकारी नौकरी में जाएं, जिसके लिए 12वीं फर्स्ट डिवीजन पास करने के बाद से ही लगातार पुलिस, रेलवे, आर्मी और वन विभाग के बहुत से एग्जाम दे चुके हैं लेकिन सफलता नहीं मिली, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी. ओमप्रकाश ने अब एकमात्र लक्ष्य बनाकर रखा है कि उन्हें B.Ed करना है और केंद्रीय विद्यालय में शिक्षक की नौकरी पानी है. यही वजह है कि रात में पढ़ाई करने के साथ ही दुकान में भी जो समय मिलता है उसमें लगातार मेहनत करते हैं.
आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना का उदाहरण हैं ओम
ओम प्रकाश न केवल खुद ही अपनी पढ़ाई कर रहे बलिक बच्चों को कोचिंग पढ़ा कर उन लोगों के लिए एक संदेश देने का काम कर रहे हैं जो छोटी सी असफलता के बाद गलत राह पर चले जाते हैं. ओमप्रकाश का कहना है कि मेहनत करते रहना चाहिए एक दिन सफलता जरूर मिलती है. ओमप्रकाश ने इसके पहले परिवार की मदद करने के लिए हायर सेकेंडरी फर्स्ट डिवीजन पास करने के बाद बहुत समय तक अखबार बांटने का भी काम किया है.
हमेशा अव्वल आने
ओमप्रकाश करीब 6 साल से अपनी पढ़ाई का खर्च खुद निकाल कर ऐसे लोगों के लिए एक मिसाल पेश कर रहे जो विपरीत परिस्थितियों के बाद जो कमजोर पड़ जाते हैं. अखबार बांटना, पंचर बनाना हो या फिर कोचिंग पढा कर आत्मनिर्भर होना यह बताता है कि काम कोई छोटा बड़ा नहीं होता बस मन मे कुछ करने का जज्बा होना चाहिए.