मंडला। जिले में सिकलसेल के मरीजों मौजूद है, जिन्हें हर महीने 30 से 40 यूनिट खून की जरूरत होती है. वहीं इस बीमारी के मरीजों की बात करें तो दो जाति या समुदाय ऐसे हैं, जिनमें यह बीमारी ज्यादा देखी जाती है. यह दोनों मंडला जिले में हैं और इन्हें सिकलसेल एनीमिया है. ऐसे में जिले में सिर्फ एक ब्लड बैंक ही मौजूद होने के कारण माह में खून की उपलब्धता जीरो हो जाती है.
मंडला जिले में सिकल-सेल एनीमिया के मरीजों की संख्या के आधार पर यदि बात करें तो यहां हर महीने 30 से 40 यूनिट ब्लड इन मरीजों को ट्रांसफार्मिंग की जरूरत पड़ती है और हर हफ्ते करीब आधा दर्जन महिला-पुरूष मरीज इस बीमारी के चलते एचबी लेबल कम होने के कारण ब्लड ट्रांसफार्मिंग कराने आते हैं. दूसरी तरफ यह बीमारी मंडला जिले में साहू और पनिका समाज के लोगों में ज्यादा देखी जाती है और इन लोगों के ही मामले सबसे ज्यादा सामने आते हैं.
बीते 6 महीनों की बात करें तो-
- अक्टूबर में कुल 37 में 13 पुरुष, 24 महिला
- नबम्बर में कुल 44 में 19 पुरुष, 25 महिला
- दिसम्बर में कुल 36 में 22 पुरुष, 14 महिला
- जनवरी में कुल 24 में 13 पुरुष, 11 महिला
- फरवरी में कुल 14 में 04 पुरुष, 10 महिला
- मार्च में कुल 32 में 16 पुरुष, 16 महिला
मरीजों को कुल 187 यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ी, जिनमें 87 पुरुष तो 100 महिलाओं का एचबी लेबल कम होने के चलते ब्लड की ट्रांसफार्मिंग करनी पड़ी वहीं सालभर का कुल योग देखें तो यह जरूरत 419 यूनिट ब्लड तक पहुंच जाती है, जिसका सीधा मतलब है कि सालभर में सिकल-सेल एनीमिया रोगियों के लिए लगभग 5 सौ यूनिट खून की जरूरत पड़ती है.
जिले की कुल जनसंख्या करीब 13 लाख के आसपास है और जिला चिकित्सालय ही एक ऐसा स्थान हैं, जहां ब्लड बैंक की सुविधा उपलब्ध है, ऐसे में हर माह कई ऐसा भी दौर आता है जब यहां ब्लड की उपलब्धता शून्य यूनिट रह जाती है. इस लिहाज से समझा जा सकता है कि सिकल-सेल मरीजों के अलावा गर्भवती महिलाओं और दुर्घटनाओं से पीड़ित लोगों तक खून की आपूर्ति करना कितना कठिन काम है.