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तेजी से कम हो रहा नर्मदा का पानी, पिछले तीन सालों में सबसे कम हुआ जलस्तर

नर्मदा का जलस्तर कम होता जा रहा है. पिछले तीन सालों में इस साल जलस्तर सबसे कम है. नर्मदा घाटों से दूर जाती जा रही है.

कम हो रहा नर्मदा का पानी
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Published : Jun 12, 2019, 6:16 PM IST

मंडला। आज गंगा दशहरा मनाया जा रहा है. आज के दिन श्रद्धालु दूर-दूर से गंगा में डुबकी लगाने आते हैं. वहीं माना जाता है कि साल में एक बार दशहरा के दिन वो नर्मदा से मिलने जरूर आएंगी, इसलिए आज के दिन मां नर्मदा की भी महत्वता बढ़ जाती है. लोग नर्मदा में डुबकी लगाने आते हैं. लेकिन, नर्मदा धीरे धीरे घाटों से दूर जाती जा रही हैं. बीते तीन सालों में जून के महीने का यह नर्मदा का सबसे कम जल स्तर है-

कम हो रहा नर्मदा का पानी

⦁ 31 मई 2017 को नर्मदा का जल स्तर 433.000 मीटर
⦁ 31 मई 2018 को 433.000 मीटर
⦁ 31 मई 2019 को 432.440 मीटर
⦁ 10 जून 2017 को 432.960 मीटर
⦁ 10 जून 2018 को 433.100 मीटर
⦁ 10 जून 2019 को 432.390 मीटर दर्ज किया गया

बेतरतीब निर्माण कार्य और कंक्रीट जंगलों को बनाने के लिए प्राकृतिक वनों को काट दिया गया, जिसकी वजह से नर्मदा का जलस्तर लगातार कम हो रहा है. हाइड्रोलॉजिस्ट अजय खोत के मुताबिक रेत की वजह से नदियों का जल सूख रहा है. भूगर्भीय जल स्रोत विशेषज्ञ की सलाह पर अमल कर वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीक अपनाई गई तो शायद यह नर्मदा बच सके, वरना आने वाला भविष्य भी सूखा होगा.

मंडला। आज गंगा दशहरा मनाया जा रहा है. आज के दिन श्रद्धालु दूर-दूर से गंगा में डुबकी लगाने आते हैं. वहीं माना जाता है कि साल में एक बार दशहरा के दिन वो नर्मदा से मिलने जरूर आएंगी, इसलिए आज के दिन मां नर्मदा की भी महत्वता बढ़ जाती है. लोग नर्मदा में डुबकी लगाने आते हैं. लेकिन, नर्मदा धीरे धीरे घाटों से दूर जाती जा रही हैं. बीते तीन सालों में जून के महीने का यह नर्मदा का सबसे कम जल स्तर है-

कम हो रहा नर्मदा का पानी

⦁ 31 मई 2017 को नर्मदा का जल स्तर 433.000 मीटर
⦁ 31 मई 2018 को 433.000 मीटर
⦁ 31 मई 2019 को 432.440 मीटर
⦁ 10 जून 2017 को 432.960 मीटर
⦁ 10 जून 2018 को 433.100 मीटर
⦁ 10 जून 2019 को 432.390 मीटर दर्ज किया गया

बेतरतीब निर्माण कार्य और कंक्रीट जंगलों को बनाने के लिए प्राकृतिक वनों को काट दिया गया, जिसकी वजह से नर्मदा का जलस्तर लगातार कम हो रहा है. हाइड्रोलॉजिस्ट अजय खोत के मुताबिक रेत की वजह से नदियों का जल सूख रहा है. भूगर्भीय जल स्रोत विशेषज्ञ की सलाह पर अमल कर वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीक अपनाई गई तो शायद यह नर्मदा बच सके, वरना आने वाला भविष्य भी सूखा होगा.

Intro:माँ नर्मदा की उत्पत्ति भगवान शंकर से हुई थी तब इन्हें सभी देवी देवताओं ने चिरयौवन रहने के साथ ही,वरदान दिया था कि नर्मदा के दर्शन मात्र से सारे पाप कट जाएँगे, वहीँ गंगा मैया ने नर्मदा जी से वादा किया था कि साल में एक बार गंगा दशहरा के दिन वो नर्मदा से मिलने जरूर आएँगी,लेकिन मानव जाति में वो ताकत है कि सारे देवी देवताओं के दिये चिरयौवन के वरदान को भी इसने निष्फल कर दिया,वहीं नर्मदा से जीवन दायनी की उपाधि भी छीन ली,आज गंगा तलाश रही है नर्मदा को लेकिन नर्मदा दिखाई ही नहीं देती तो फिर कैसे और कहाँ जाए गंगा अपनी नर्मदा से मिलने।


Body:नर्मदा अपने घाटों से दूर बहुत दूर जा रही है,जहाँ पहले हर मौषम में साफ और निर्मल जल लहराता रहता था वहाँ आज चट्टान ही चट्टान नज़र आ रही हैं,बीते तीन सालों की बात करें तो जून के महीने का यह नर्मदा का सबसे कम जल स्तर है,

31 मई 2017 को नर्मदा का जल स्तर 433.000 मीटर
31 मई 2018 को 433.000 मीटर
31 मई 2019 को 432.440 मीटर रह गया जबकि
10 जून 2017को नर्मदा का जल स्तर 432.960 मीटर
10 जून 2018 को 433.100
10 जून 2019 को 432.390 मीटर दर्ज किया गया

गंगा दशहरा हिंदू आस्था का वो पर्व जिस दिन मान्यता के अनुशार गंगा मैया किये वादे को निभाने हर साल इस रोज नर्मदा से मिलने आती हैं लेकिन अपने पुराने घाटों से बहुत दूर जाती नर्मदा अब शायद गंगा से मिल ही नहीं पाती हों जिसकी वजह है वो इन्शान जिसने बेतरतीब निर्माण कार्य और कांक्रीट जंगलों को बनाने प्राकृतिक वनों को काट डाला ऐसे में कैसे हो भरपूर बारिस और क्यों न सूखें नर्मदा और उसकी सहायक,बंजर,
मटियारी,बुढनेर या फिर खरमेर जैसी बड़ी नदियाँ, मण्डला जिले के हाइड्रोलॉजिस्ट अजय खोत बताते हैं कि अवैध तरीके से हो या किसी भी तरीके से,नदियों से बिना सर्वे निकाली जा रही रेत की वजह से नदियों का जल सूख रहा है क्योंकि जहाँ रेत होती है वहाँ पानी ठहरता है और रेत ही न होगी तो नदियों में पानी कैसे होगा,इसके साथ ही शासन, प्रशासन और आम लोगों के द्वारा प्लांटेशन न करना और पेड़ों की कटाई करते जाना भी सूखे के हालात और सूखते जलाशय के साथ ही कम होते भूगर्भीय जल स्तर के लिए जिम्मेदार है


Conclusion:गंगा दशहरा के पावन पर्व पर लोगों ने घुटने भर बचे खुचे पानी मे डुबकी तो लगा ली लेकिन उन्हें श्रद्धा और आस्था के साथ नर्मदा के उस दर्द को भी महसूस करने की जरूरत है जिसके चलते आज नर्मदा के घाट इतने पीछे रह गए है और यह लगता ही नहीं की कभी नर्मदा जल की लहरें यहाँ हिलोरे मारती थीं, आज जरूरत है भूगर्भीय जल स्रोत विशेषज्ञ की सलाह पर अमल कर वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीकी अपना कर नदियों के सूखते जल स्तर और नीचे जा रहे पानी के स्रोतों को बचाने की वरना आने वाला भविष्य भी सूखा होगा।

बाईट--अजय खोत, हाइड्रोलॉजिस्ट मण्डला
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