मंडला। अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध आदिवासी जिला मंडला कई रहस्यों को अपने अंदर समेटे हुए है. यहां एक चमत्कार का अद्भुत नगीना भी मौजूद है, जो तीन किलोमीटर में फैला है. ये एक ऐसा पहाड़ है, जहां सिर्फ काली चट्टानें हैं. इन काली चट्टानों को देखकर कोई भी बस यही कहेगा कि किसी बेहतरीन कारीगर ने इन चट्टानों को तराशा है और किसी खास मकसद के लिए इन्हें इकट्ठा किया गया है. हालांकि, भौगोलिक परिवर्तन का अध्ययन करने वाले इसकी उत्पत्ति की दूसरी वजह बताते हैं.
मंडला जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर काली शिलाओं का काला पहाड़ अपनी काली चट्टानों के लिए खासा प्रसिद्ध है. इस पहाड़ की खासियत ये है कि पहाड़ के ऊपरी क्षेत्र में एक भी हरा पेड़ या पौधा खोजने से भी नहीं मिलता है, जिसकी वजह है यहां मौजूद काले पत्थरों की लंबी-लंबी शिलाएं.
चट्टानों के 3 किलोमीटर दायरे में फैला ढेर
इन काली चट्टानें को देखकर कोई भी बस यही कहेगा कि किसी बेहतरीन कारीगर ने इन चट्टानों को तराशा है और किसी खास मकसद के लिए इन्हें इकट्ठा किया गया है. हालांकि, भौगोलिक परिवर्तन का अध्ययन करने वाले इसकी उत्पत्ति की दूसरी वजह बताते हैं. तीन किलोमीटर के दायरे में फैले इस पहाड़ की करीब डेढ़ किलोमीटर ऊंची चढ़ाई के बाद जो दृश्य दिखाई देता है, वह लोगों को रोमांच से भर देता है. जिस तरफ नजर घूमे दो फीट से लेकर बिजली के खंबे की लंबाई के एक समान पत्थरों को देख लोग सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि आखिर ये पत्थर आए कहां से. इसके अलावा लोग ये भी सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि कितने लोगों ने मिल कर कितने सालों में इन पत्थरों को इतना बेहतरीन आकार दिया है.
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भोगौलिक परिवर्तन और लावा से बना पहाड़
जानकार बताते हैं कि भौगोलिक परिवर्तन के कारण ये चट्टानें काली हैं. ये कृत्रिम नहीं बल्कि प्राकृतिक हैं. करीब छह से सात करोड़ साल पहले इस क्षेत्र में ज्वालामुखी फटा था और उससे जो लावा निकला, वह ठंडा होकर बड़ी-बड़ी शिलाओं के रूप में ढल गया. चट्टानों में दिखाई देने वाले छिद्र इस बात की गवाही भी देते हैं कि इनसे गैस का रिसाव भी हुआ होगा.
भौगोलिक परिवर्तनों पर अध्ययन करने वाले जानकार प्रशांत श्रीवास्तव ने बताया कि बड़ी मात्रा में निकला हुआ लावा जब सतह पर आया तो वह जिस स्थिति में गिरकर ठंडा हुआ, वैसा ही जम गया और यह प्रकृति का अनमोल उपहार है, जो मंडला जिले के पास है. इन चट्टानों का गहराई से अध्ययन किया जाए तो ज्वालामुखी का मुहाना भी निकल आएगा. चूंकि पृथ्वी की ऊपरी सतह जब ठंडी हो रही थी तब भीतर का पिघला हुआ लावा ज्वालामुखी के रूप में ऐसे से बाहर निकलता था.
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ये हैं भ्रांतियां
काला पहाड़ को लेकर एक बात यह भी प्रचलित है कि जब राजा ह्रदय शाह (जो तंत्र विद्या के बहुत बड़े साधक भी थे) रामनगर में अपने किले का निर्माण करा रहे थे तो उन्होंने यह पत्थर यहां तंत्र विद्या से बुलाए थे, जिन्हें यहां तराशा गया और रामनगर तक ये पत्थर तंत्र विद्या से उड़ाकर ले जाए जाते थे. इन्हीं पत्थर से रामनगर के महल बने हैं. हालांकि विज्ञान इन बातों को नहीं मानता. इस पहाड़ को लेकर बहुत सी धार्मिक कहानियां भी कही जाती हैं और इसे देव मान कर पूजा भी जाता है. लेकिन हकीकत यह कि यहां की हर एक शिलाएं प्रकृति की नक्काशी का बेहतरीन उदाहरण हैं.
दर्शनीय स्थल के रूप में हो विकास
मध्य प्रदेश टूरिज्म ने काला पहाड़ को अपने अधीन तो कर लिया है, लेकिन जिला प्रशासन की भी जिममेदारी है कि इस अद्भुत काले पहाड़ को पर्यटन के लिहाज से विकसित किया जाए. साथ ही शोधार्थियों को इस पर खोज करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए, जिससे की करोड़ों साल पहले उपजी इस अनोखी संरचना के विषय में लोगों को विस्तार से ऐसी जानकारी मिल सके कि वे किस्से-कहानियों की बजाय इसकी हकीकत से परिचित होकर इसके महत्व को समझते हुए इसका दीदार करें.