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ठंड की दस्तक और मांदर की थाप, जानिए आदिवासियों के मांगलिक नृत्य कर्मा की खासियत - आदिवासियों का कर्मा नृत्य

आदिवासियों के सबसे मांगलिक नृत्य कर्मा का आयोजन ठंड की दस्तक आते ही शुरु हो जाता है. यहां आदिवासियों का सबसे मांगलिक नृत्य माना जाता है. जिसे वे हर खुशी के मौके पर करते हैं. कहा जाता कि अगर खुशी के अवसर कर्मा नृत्य का आयोजन नहीं किया तो वह खुशी अधूरी मानी जाती है.

कर्मा नृत्य
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Published : Nov 15, 2019, 11:45 PM IST

मंडला। मांदर की थाप और पेरों में घुंघरुओं की झनकार के साथ एक ही स्वर में गाकर नाचते हुए इन आदिवासी भाई-बहनों को देखकर हर किसी का मन प्रफुल्लित हो जाता है. आदिवासियों की इस कला को लोग कर्मा नृत्य के नाम से जानते हैं. जिसे आदिवासियों का सबसे मांगलिक नृत्य माना जाता है.

आदिवासियों का मांगलिक नृत्य कर्मा

कर्मा नृत्य का आयोजन आदिवासी लोग खासतोर पर खुशी के इजहार के तौर पर करते हैं. चाहे कोई शुभ काम हो या खुशी का मौका. जब तक कर्मा नृत्य का आयोजन न हो तो उसे अधूरा माना जाता है. कर्मा नृत्य सदियों से गोंडवाना लोक-संस्कृति का पर्याय बना हुआ है. जो सतपुड़ा और विंध्य की पर्वत श्रेणियों के बीच बसी आदिवासी लोक संस्कृति में आज भी बिखरा हुआ है.

कर्मा नृत्य करते आदिवासी

आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में तो कर्मा नृत्य का अलग ही नजारा देखने को मिलता है. ठंड की दस्तक शुरु होते ही जिले के लगभग हर गांव में कर्मा का आयोजन होता है. जहां दूर से ही मांदर और टिमकी धाप के बीच आती बांसुरी की कर्ण प्रिय ध्वनि हर किसी को अपनी ओर खींच ले जाती है. फिर लोकसंगीत की शाम ऐसी सजती है कि कब रात की छटा भोर में बदल जाए किसी को पता भी नहीं चलता.

कर्मा नृत्य करते आदिवासी

कर्मा नर्तक रमेश धुर्वे बताते है कि उनकी यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. जहां आदिवासी महिलाएं और पुरुष दल बनाकर कर्मा नृत्य करते हैं. कर्मा नृत्य में खास तरह की ढोलक का इस्तेमाल किया जाता है जिसे मांदर कहा जाता है, मांदर के साथ टिमकी, लकड़ी से बने चुटके, झाँझ, बांसुरी जैसे वाद्यों का इस्तेमाल कर्मा नृत्य में होता है.

कर्मा नृत्य के लिए तैयार आदिवासी
कर्मा नृत्य के लिए तैयार आदिवासी

यूं तो भारतीय संस्कृति की परंपरपराए और कला कदम-कदम पर बदलती हैं. लेकिन आदिवसियों के नृत्य कर्मा की खासियत यही है कि वह आदिवासियों को आपस में जोड़े रखती है. आदिवासियों की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है जिसे देखकर आज भी हर किसी का मन खुशी से भर जाता है.

कर्मा नृत्य के लिए तैयार आदिवासी युवतियां
कर्मा नृत्य के लिए तैयार आदिवासी युवतियां

मंडला। मांदर की थाप और पेरों में घुंघरुओं की झनकार के साथ एक ही स्वर में गाकर नाचते हुए इन आदिवासी भाई-बहनों को देखकर हर किसी का मन प्रफुल्लित हो जाता है. आदिवासियों की इस कला को लोग कर्मा नृत्य के नाम से जानते हैं. जिसे आदिवासियों का सबसे मांगलिक नृत्य माना जाता है.

आदिवासियों का मांगलिक नृत्य कर्मा

कर्मा नृत्य का आयोजन आदिवासी लोग खासतोर पर खुशी के इजहार के तौर पर करते हैं. चाहे कोई शुभ काम हो या खुशी का मौका. जब तक कर्मा नृत्य का आयोजन न हो तो उसे अधूरा माना जाता है. कर्मा नृत्य सदियों से गोंडवाना लोक-संस्कृति का पर्याय बना हुआ है. जो सतपुड़ा और विंध्य की पर्वत श्रेणियों के बीच बसी आदिवासी लोक संस्कृति में आज भी बिखरा हुआ है.

कर्मा नृत्य करते आदिवासी

आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में तो कर्मा नृत्य का अलग ही नजारा देखने को मिलता है. ठंड की दस्तक शुरु होते ही जिले के लगभग हर गांव में कर्मा का आयोजन होता है. जहां दूर से ही मांदर और टिमकी धाप के बीच आती बांसुरी की कर्ण प्रिय ध्वनि हर किसी को अपनी ओर खींच ले जाती है. फिर लोकसंगीत की शाम ऐसी सजती है कि कब रात की छटा भोर में बदल जाए किसी को पता भी नहीं चलता.

कर्मा नृत्य करते आदिवासी

कर्मा नर्तक रमेश धुर्वे बताते है कि उनकी यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. जहां आदिवासी महिलाएं और पुरुष दल बनाकर कर्मा नृत्य करते हैं. कर्मा नृत्य में खास तरह की ढोलक का इस्तेमाल किया जाता है जिसे मांदर कहा जाता है, मांदर के साथ टिमकी, लकड़ी से बने चुटके, झाँझ, बांसुरी जैसे वाद्यों का इस्तेमाल कर्मा नृत्य में होता है.

कर्मा नृत्य के लिए तैयार आदिवासी
कर्मा नृत्य के लिए तैयार आदिवासी

यूं तो भारतीय संस्कृति की परंपरपराए और कला कदम-कदम पर बदलती हैं. लेकिन आदिवसियों के नृत्य कर्मा की खासियत यही है कि वह आदिवासियों को आपस में जोड़े रखती है. आदिवासियों की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है जिसे देखकर आज भी हर किसी का मन खुशी से भर जाता है.

कर्मा नृत्य के लिए तैयार आदिवासी युवतियां
कर्मा नृत्य के लिए तैयार आदिवासी युवतियां
Intro:मण्डला जिले के वनाच्छादित क्षेत्र में साम का धुँधलका और दूर से आती मांदर, टिमकी, पैजनी, चुटका, बाँसुरी की मिश्रित कर्ण प्रिय ध्वनि के साथ ही राग छेड़ते पारम्परिक लोकगीत हर किसी के मन को आल्हादित कर अपनी ओर खींच ले जाते हैं फिर लोकसंगीत से ऐसी सजती है रात कि कब भोर की दस्तक हो जाए आभास ही नहीं फिर भी मन मे यही मलाल की काश इस सुर लहरियों में फिर गोते लगाने का मौका मिले।


Body:आदिवाशियों की एक पारंपरिक धरोहर कर्मा नृत्य जो खुशियों के इजहार का ऐसा माध्यम की मौका कोई भी हो नर्तकों के साथ ही दर्शकों के मन को प्रफुल्लित कर देता है और दे जाता हैं कभी न भूलने वाली याद जो हर समय आपकी स्मृति में समाई रहती है।हमारे देश मे जहाँ कोश कोश में पानी तो चार कोश में वाणी बदलती है में यही पारम्परिक कलाएँ और संस्कृति हैं जो लोगों को जोड़े रखती हैं,गोंडवाना संस्कृति के साथ ही प्रकृति पुत्र आदिवासी और बैगा जनजाति कर्मा नृत्य बारिश को छोड़ कर हर मौषम में करते हैं,फसल की कटाई के बाद,बच्चे के जन्म,शादी व्याह हो या फिर कोई भी मंगल कार्य बिना कर्मा के अधूरा माना जाता है विशेष आतिथी के सत्कार के लिए इस समूह नृत्य का प्रदर्शन किया जाता हैं,कर्मा एक समूह नृत्य है जिसमें नहिलाएँ और पुरूष दल बना कर शामिल होते हैं जो खास तरह की ढोलक जिसे मांदर कहा जाता है साथ ही चमड़े और मिट्टी की बनी टिमकी की थाप पर होता है,कर्म याने की कार्य और कार्य साधने के बाद अपने आराध्य को धन्यवाद करने के लिए कर्मा नाच की परंपरा पुरातन से चली आ रही है,जिसमें


Conclusion:क्या होता है कर्मा--कर्मा एक समूह नृत्य है जो पारम्परिक भेषभूषा और वाद्य यंत्रों के साथ खुशियों के मौके पर किया जाता जिसमें नृत्य करने वाले कलाकार खुद गाते भी हैं।
कर्मा की वेशभूषा--पुरुष धोती,कुर्ता के ऊपर बंडी पीले रंग की पगड़ी या फिर रंग बिरंगी मोरपंख या रंगीन धागों से बनी कलगी धारण करते हैं पैरों में लोहे की बनी पैजन बांधते हैं जबकि महिलाएं साड़ी को खास तरह से लपेटकर पारंपरिक तरीके से तैयार होती हैं जो हाथ से लेकर बाँह और कमर के साथ ही पैरों पर आभूषण पहनती हैं बालों का जूड़ा बनाया जाता है जो रंग बिरंगी गुरियों की माला के साथ ही धागे से बने फुँदरे से सजाया जाता है यह श्रृंगार खास खुशी के मौके पर ही किया जाता है।
वाधय यंत्र--कर्मा में खास तरह की ढोलक जिसे मांदर कहा जाता है के साथ टिमकी,लकड़ी से बने चुटके, झाँझ,बांसुरी जैसे वाद्यों का प्रयोग किया जाता है।

बाईट--रमेश धुर्वे कर्मा नर्तक मण्डला
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