मंडला। देश कितना भी डिजिटल हो जाए, लेकिन अभी भी देश के कई हिस्सों में अंधविश्वास लोगों पर हावी है. कई ग्रामीण इलाकों में लोग अब भी इलाज के लिए तांत्रिक ओझा पर विश्वास करते हैं तो किसी भी वस्तू पर बनी आकृति को वे भगवान से जोड़कर देखने लगते हैं और पूरा गांव उसकी पूजा-अर्चना करने लगता है. ऐसा ही कुछ नजारा मंडला में देखने मिला, जहां सूरन कांदे के पेड़ की पत्तियों में निकलने वाली आकृति लोगों की आस्था का केंद्र बनी हुआ है.
इससे पहले ये लोग मंडला में महुआ के पेड़ पर महुआ देवी प्रकट होने के चलते पूजा-पाठ, भेंट, चढ़ावा और भंडारा के साथ रात में जगराता तक करते नजर आते थे. वहीं लॉकडाउन के चलते फिलहाल इन सब चीजों पर रोक लगी हुई है, लेकिन लॉकडाउन 4.0 में एक बार फिर लोगों को सूरन कांदे के पौधे की बैंगनी पत्तियों में गणेश जी की आकृति नजर आ रही है, ये लोग धूप-दीप, अगरबत्तियां लेकर इन पौधों की पूजा में तल्लीन हो रहे हैं. वे इस आकृति पर अंधविश्वास कर दिन-रात उसकी पूजा कर रहे हैं. जिसके लिए इन ग्रामीणों ने सोशल डिस्टेंसिंग को भी ताक पर रख दिया है.
ग्रामीणों के बीच अंधविश्वास का आलम ये है कि एक ने कहा और दूसरे ने बिना तर्क वितर्क के मान लिया, फिर चल पड़ा वो सिलसिला, जिसे अब आस्था का नाम दें या फिर अंधविश्वास की पराकाष्ठा. इन ग्रामीणों का कहना है कि गणेश भगवान खुद ही इस पौधे में प्रगट हो रहे हैं और यह बड़े सौभाग्य की बात है.
क्या है सूरन
सूरन एक कंद है, जिसमें बड़े-बड़े पत्ते होते हैं. दूसरे प्रदेशों में इसे जिमी कांदा भी कहा जाता है. छत्तीसगढ़ में इसका काफी महत्व है और दिवाली के दूसरे दिन इसकी हर घर में सब्जी जरूर बनती है. सूरन के कांदे को अमरूद, सीताफल के पत्तों के साथ खूब उबाला जाता है. वरना इसमें इतनी ज्यादा खुजलाहट के गुण होते हैं कि कच्चा रह जाए तो खाने वाले की शामत आ जाए. इसके कंद दो से 5 किलोग्राम तक के होते हैं और अरबी प्रजाति का होता है. जिसकी बरी भी बनाई जाती है. शर्दियों के मौसम में गर्म तासीर के चलते इसकी काफी डिमांड होती है.
ईटीवी भारत अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता...