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आदिवासी इलाकों में प्रसूताओं के लिए सरकारी योजनाएं फेल, हैरान करने वाले हैं मातृत्व के आंकड़े

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Published : Oct 25, 2020, 6:54 AM IST

मंडला जिले में बीते पांच महीनों में 74 डिलेवरी घर पर हुई हैं, ये महिलाएं प्रसव के लिए अस्पताल नहीं पहुंच पाईं. जो ये दर्शाता है कि जिले में प्रसूताएं असुरक्षित प्रसव कराने को मजबूर हैं, क्योंकि सरकारी योजनाएं यहां पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं.

Maternity in mandla
कितना सुरक्षित मातृत्व..?

मंडला। एक महिला पर पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियां होती हैं. एक अच्छे समाज निर्माण के लिए महिलाएं ही मजबूत स्तंभ हैं. एक महिला की शादी के बाद उसका सबसे बड़ा सुख मां बनने के होता है. मां बनना प्रकृति का सबसे बड़ा वरदान माना जाता है लेकिन भारत देश में आज भी प्रसव कुछ महिलाओं के लिए मौत की सजा से कम नहीं है. जानकारी के अभाव में और प्रसूताओं को अच्छी देखभाल नहीं होने के कारण देश में लगातार मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में बढ़ावा हो रहा है. आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला में महिलाओं के सुरक्षित मातृत्व के बीच बीते पांच महीनों में 74 डिलेवरी घर पर हुईं, जो यह बताने के लिए काफी है कि जिले में महिलाओं आज भी कई कारणों से प्रसूति केंद्रों में डिलीवरी के लिए पहुंचने में चूक हो रही है.

असुरक्षित प्रसव

जागरुकता का है अभाव

प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ रूबीना भींगारदबे ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं में माहवारी, शादी और गर्भ धारण से लेकर बच्चे के जन्म को लेकर आज भी जागरूकता का आभाव है. पुरानी परपंराओं और आवागमन की सुविधाओं और जानकारी के आभाव के बीच एक बेटी बहू के बाद मां तक का सफर तय करती है और इस दौरान, कुपोषण से लेकर कई बीमारियां, एनीमिया, बच्चादानी में संक्रमण जैसे कई रोगों से घिर जाती हैं.

मुख्य स्वास्थ्य और चिकित्सा अधिकारी डॉ श्रीनाथ सिंह का कहना है कि प्रसूति केंद्रों में ही महिलाओं की डिलीवरी हो, इसके लिए लगातार कोशिश की जा रहीं हैं, लेकिन कभी आवागमन के साधनों का आभाव तो कभी नेटवर्किंग की समस्या के चलते महिलाओं की डिलीवरी घर पर ही हो जाती है.

क्या कहते हैं आंकड़े

महिला की प्रसूति से सिर्फ महिला ही नहीं बल्कि शिशु का स्वास्थ्य भी जुड़ा होता है, जिसकी सुरक्षित डिलेवरी बहुत प्रभावित करती है वरना बच्चे में कमजोरी या कुपोषण की संभावना बढ़ जाती है. मंडला जिले में मातृ मृत्यु दर 65 है, जिसकी वजह है घरों पर होने वाले डिलीवरी. शासन-प्रशासन प्रसूता जागरूकता के प्रयासों की तारीफ जितनी भी की जाए लेकिन हकीकत की पोल खोलते ये आंकड़े यह बताने को काफी हैं कि सही समय पर आज भी गर्भवती महिला अस्पतलों तक नहीं पहुंच पाती और उनकी डिलीवरी घर पर ही हो जाती है.

अप्रेल महीने से सितंबर तक पांच महीनों में 74 डिलेवरी घर पर हुई-

  • कुल प्रसूति की संख्या- 8708
  • नवजात शिशु(बालक)-4517
  • नवजात शिशु(बालिका)-4118
  • मातृ मृत्यु दर-65 प्रति लाख
  • शिशु मृत्यु दर-247 प्रति हजार
  • जन्म दर-27 प्रति हजार
  • कुपोषण-15 प्रति 100 बच्चे
  • अतिकुपोषण-1.2 प्रति 100 बच्चे

लगभग 13 लाख की जनसंख्या वाले मंडला जिले में कुल प्रसूति घरों की संख्या 44 है, जहां 307 बैड की व्यवस्था हमेशा रहती है. इसके अलावा जिले को 10 प्रसूति रोग विशेषज्ञ की जरूरत हैं जिनमें से 08 खाली हैं. जिला अस्पताल में पांच विशेषज्ञों की आवश्यकता है, जबकि मौजूद सिर्फ दो हैं. वहीं तहसील नैनपुर, बिछिया, नारायणगंज, बीजाडांडी, निवास में एक-एक पद स्वीकृत हैं, जो कि खाली पड़े हैं. जबकि जिले भर में सिर्फ दो प्रसूति रोग विशेषज्ञ हैं.

प्रसव के दौरान हजारों महिलाएं गंवाती हैं अपनी जान

भारत में हर साल जन्म देते समय करीब 45 हजार महिलाएं प्रसव के दौरान अपनी जान गंवा देती हैं. देश में जन्म देते समय प्रति एक लाख महिलाओं में से 167 महिलाएं मौत के मुंह में चली जाती हैं. स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय के मुताबिक भारत में मातृ मृत्‍यु दर में तेजी से कमी आ रही है. वर्ष 2010-12 में मातृ मृत्यु दर 178, 2007-2009 में 212 जबकि 2004-2006 में मातृ मृत्यु दर 254 रही. देश ने 1990 से 2011-13 की अवधि में 47 प्रतिशत की वैश्विक उपलब्धि की तुलना में मातृ मृत्‍यु दर को 65 प्रतिशत से ज्‍यादा घटाने में सफलता हासिल की है.

इंफेक्शन, असुरक्षित गर्भपात या ब्लड प्रेशर है अहम वजह

अशिक्षा, जानकारी की कमी, समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, कुपोषण, कच्ची उम्र में विवाह, बिना तैयारी के गर्भधारण आदि कुछ कारणों की वजह से कई महिलाओं के लिए मां बनने का खूबसूरत अहसास जानलेवा और जोखिम भरा साबित होता है. कई मामलों में मां या नवजात शिशु या दोनों की ही मौत हो जाती है.ज्यादातर मातृ मृत्यु की वजह बच्चे को जन्म देते वक्त अत्यधिक रक्त स्राव के कारण होती है. इसके अलावा इंफेक्शन, असुरक्षित गर्भपात या ब्लड प्रेशर भी अहम वजहें हैं. प्रसव के दौरान लगभग 30 प्रतिशत महिलाओं को आपात सहायता की आवश्यकता होती है.

आशा कार्यकर्ताओं की कमी

गर्भावस्था से जुड़ी दिक्कतों के बारे में सही जानकारी न होने तथा समय पर मेडिकल सुविधाओं के ना मिलने या फिर बिना डॉक्टर की मदद के प्रसव कराने के कारण भी मौतें हो जाती है. जच्चा और बच्चा की सेहत को लेकर आशा कार्यकर्ताओं का अहम रोल होता है लेकिन इनकी कमी से कई महिलाएं प्रसव पूर्व न्यूनतम स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह जाती हैं. समस्त मातृ मौतों में से लगभग 10 प्रतिशत मौतें गर्भपात से संबंधित जटिलताओं के कारण होती हैं.

मंडला जिले में बिछिया, घुघरी, मवई, नारायणगंज के ग्रामीण इलाके दूर वनांचल में बसे हुए हैं. यहां सड़कों की समस्या के साथ ही बारिश के मौसम में आवागमन बिल्कुल बंद हो जाता है. वहीं बिजली और नेटवर्किंग की समस्या के चलते सूचनाएं पहुंच नहीं पाती. इसलिए अगर मातृ मृत्यु दर के साथ ही बाल मृत्यु दर को कम करना है तो सबसे पहले गांव-गांव तक बुनियादी सेवाओं को पहुंचाना जरूरी है वरना सुरक्षित मातृत्व जिले के लिए चुनोतियां ही पैदा करती रहेंगी.

मंडला। एक महिला पर पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियां होती हैं. एक अच्छे समाज निर्माण के लिए महिलाएं ही मजबूत स्तंभ हैं. एक महिला की शादी के बाद उसका सबसे बड़ा सुख मां बनने के होता है. मां बनना प्रकृति का सबसे बड़ा वरदान माना जाता है लेकिन भारत देश में आज भी प्रसव कुछ महिलाओं के लिए मौत की सजा से कम नहीं है. जानकारी के अभाव में और प्रसूताओं को अच्छी देखभाल नहीं होने के कारण देश में लगातार मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में बढ़ावा हो रहा है. आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला में महिलाओं के सुरक्षित मातृत्व के बीच बीते पांच महीनों में 74 डिलेवरी घर पर हुईं, जो यह बताने के लिए काफी है कि जिले में महिलाओं आज भी कई कारणों से प्रसूति केंद्रों में डिलीवरी के लिए पहुंचने में चूक हो रही है.

असुरक्षित प्रसव

जागरुकता का है अभाव

प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ रूबीना भींगारदबे ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं में माहवारी, शादी और गर्भ धारण से लेकर बच्चे के जन्म को लेकर आज भी जागरूकता का आभाव है. पुरानी परपंराओं और आवागमन की सुविधाओं और जानकारी के आभाव के बीच एक बेटी बहू के बाद मां तक का सफर तय करती है और इस दौरान, कुपोषण से लेकर कई बीमारियां, एनीमिया, बच्चादानी में संक्रमण जैसे कई रोगों से घिर जाती हैं.

मुख्य स्वास्थ्य और चिकित्सा अधिकारी डॉ श्रीनाथ सिंह का कहना है कि प्रसूति केंद्रों में ही महिलाओं की डिलीवरी हो, इसके लिए लगातार कोशिश की जा रहीं हैं, लेकिन कभी आवागमन के साधनों का आभाव तो कभी नेटवर्किंग की समस्या के चलते महिलाओं की डिलीवरी घर पर ही हो जाती है.

क्या कहते हैं आंकड़े

महिला की प्रसूति से सिर्फ महिला ही नहीं बल्कि शिशु का स्वास्थ्य भी जुड़ा होता है, जिसकी सुरक्षित डिलेवरी बहुत प्रभावित करती है वरना बच्चे में कमजोरी या कुपोषण की संभावना बढ़ जाती है. मंडला जिले में मातृ मृत्यु दर 65 है, जिसकी वजह है घरों पर होने वाले डिलीवरी. शासन-प्रशासन प्रसूता जागरूकता के प्रयासों की तारीफ जितनी भी की जाए लेकिन हकीकत की पोल खोलते ये आंकड़े यह बताने को काफी हैं कि सही समय पर आज भी गर्भवती महिला अस्पतलों तक नहीं पहुंच पाती और उनकी डिलीवरी घर पर ही हो जाती है.

अप्रेल महीने से सितंबर तक पांच महीनों में 74 डिलेवरी घर पर हुई-

  • कुल प्रसूति की संख्या- 8708
  • नवजात शिशु(बालक)-4517
  • नवजात शिशु(बालिका)-4118
  • मातृ मृत्यु दर-65 प्रति लाख
  • शिशु मृत्यु दर-247 प्रति हजार
  • जन्म दर-27 प्रति हजार
  • कुपोषण-15 प्रति 100 बच्चे
  • अतिकुपोषण-1.2 प्रति 100 बच्चे

लगभग 13 लाख की जनसंख्या वाले मंडला जिले में कुल प्रसूति घरों की संख्या 44 है, जहां 307 बैड की व्यवस्था हमेशा रहती है. इसके अलावा जिले को 10 प्रसूति रोग विशेषज्ञ की जरूरत हैं जिनमें से 08 खाली हैं. जिला अस्पताल में पांच विशेषज्ञों की आवश्यकता है, जबकि मौजूद सिर्फ दो हैं. वहीं तहसील नैनपुर, बिछिया, नारायणगंज, बीजाडांडी, निवास में एक-एक पद स्वीकृत हैं, जो कि खाली पड़े हैं. जबकि जिले भर में सिर्फ दो प्रसूति रोग विशेषज्ञ हैं.

प्रसव के दौरान हजारों महिलाएं गंवाती हैं अपनी जान

भारत में हर साल जन्म देते समय करीब 45 हजार महिलाएं प्रसव के दौरान अपनी जान गंवा देती हैं. देश में जन्म देते समय प्रति एक लाख महिलाओं में से 167 महिलाएं मौत के मुंह में चली जाती हैं. स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय के मुताबिक भारत में मातृ मृत्‍यु दर में तेजी से कमी आ रही है. वर्ष 2010-12 में मातृ मृत्यु दर 178, 2007-2009 में 212 जबकि 2004-2006 में मातृ मृत्यु दर 254 रही. देश ने 1990 से 2011-13 की अवधि में 47 प्रतिशत की वैश्विक उपलब्धि की तुलना में मातृ मृत्‍यु दर को 65 प्रतिशत से ज्‍यादा घटाने में सफलता हासिल की है.

इंफेक्शन, असुरक्षित गर्भपात या ब्लड प्रेशर है अहम वजह

अशिक्षा, जानकारी की कमी, समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, कुपोषण, कच्ची उम्र में विवाह, बिना तैयारी के गर्भधारण आदि कुछ कारणों की वजह से कई महिलाओं के लिए मां बनने का खूबसूरत अहसास जानलेवा और जोखिम भरा साबित होता है. कई मामलों में मां या नवजात शिशु या दोनों की ही मौत हो जाती है.ज्यादातर मातृ मृत्यु की वजह बच्चे को जन्म देते वक्त अत्यधिक रक्त स्राव के कारण होती है. इसके अलावा इंफेक्शन, असुरक्षित गर्भपात या ब्लड प्रेशर भी अहम वजहें हैं. प्रसव के दौरान लगभग 30 प्रतिशत महिलाओं को आपात सहायता की आवश्यकता होती है.

आशा कार्यकर्ताओं की कमी

गर्भावस्था से जुड़ी दिक्कतों के बारे में सही जानकारी न होने तथा समय पर मेडिकल सुविधाओं के ना मिलने या फिर बिना डॉक्टर की मदद के प्रसव कराने के कारण भी मौतें हो जाती है. जच्चा और बच्चा की सेहत को लेकर आशा कार्यकर्ताओं का अहम रोल होता है लेकिन इनकी कमी से कई महिलाएं प्रसव पूर्व न्यूनतम स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह जाती हैं. समस्त मातृ मौतों में से लगभग 10 प्रतिशत मौतें गर्भपात से संबंधित जटिलताओं के कारण होती हैं.

मंडला जिले में बिछिया, घुघरी, मवई, नारायणगंज के ग्रामीण इलाके दूर वनांचल में बसे हुए हैं. यहां सड़कों की समस्या के साथ ही बारिश के मौसम में आवागमन बिल्कुल बंद हो जाता है. वहीं बिजली और नेटवर्किंग की समस्या के चलते सूचनाएं पहुंच नहीं पाती. इसलिए अगर मातृ मृत्यु दर के साथ ही बाल मृत्यु दर को कम करना है तो सबसे पहले गांव-गांव तक बुनियादी सेवाओं को पहुंचाना जरूरी है वरना सुरक्षित मातृत्व जिले के लिए चुनोतियां ही पैदा करती रहेंगी.

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