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बाढ़ में बह गई किसानों की मेहनत, सूने पड़े कछार, अन्नदाता के आगे दोहरी समस्या - Trouble of farmers planting vegetables

मंडला में पिछले दिनों हुई बारिश के चलते आई बाढ़ ने न तो कछारों में सब्जियां लगाने का मौका दिया, और न ही ज्यादातर किसानों ने सब्जियों के पौधे लगाए, कुछ किसानों ने फसलें लगाईं भी तो उसे बाढ़ का पानी बहा ले गया. अब किसानों के कछार सूने पड़े हैं और किसानों को इस सीजन में दोहरी समस्या है.

Deserted fields
सूने पड़े कछार
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Published : Nov 7, 2020, 11:09 AM IST

Updated : Nov 7, 2020, 1:08 PM IST

मंडला। खून पसीना एक कर लगाई सब्जियों की अच्छी पैदावार होने की उम्मीदें लगाने वाले हजारों किसानों की मेहनत बेमौसम बारिश में बह गई. जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ है. घाटे की मार झेल रहे मंडला जिले के किसानों को अब समझ नहीं आ रहा है कि आखिर इस सीजन में कैसे अपना घर चलाएंगे. इस साल बरसात के मौसम में जो बाढ़ आई, वह इतनी ज्यादा रही, कि नर्मदा के किनारे स्थित कछारों में जो सब्जियों के बीज रोपे गए थे, उन्हें बाढ़ बहा कर ले गई. भयंकर बाढ़ ने सब्जी के किसानों द्वारा लगाए बीजों और पेड़ पौधों को पूरी तरह से चौपट कर दिया. जिस मौसम में कछारों को सूख जाना चाहिए था, उस समय यहां पानी और कीचड़ रहा. जिसके चलते सही समय पर फिर से किसान सब्जियों को नहीं लगा पाए. यही वजह है कि यह कछार अब तक सूने पड़े हैं, या फिर जो सब्जियां लगी भी हैं उन्हें तैयार होने में अब भी एक से डेढ़ महीने का समय लगेगा.

अन्नदाता के आगे दोहरी समस्या

ठंड की शुरुआत से ही मंडला जिले की सब्जी बाजारों में स्थानीय कछारों की ताजी सब्जियों की रौनक देखी जाती थी, जिसके चलते 40 रुपए किलो बिकने वाला टमाटर 10 रुपये में 3 किलो बिकता था, तो गोभी, बरबटी, बैगन, भिंडी के दाम भी बमुश्किल 10 रुपये प्रति किलो हुआ करते थे, लेकिन लगातार हुई बारिश और बार-बार आने वाली बाढ़ ने कछारों में सब्जियां लगाने का मौका दिया, और जिन किसानों ने सब्जियों के पौधे लगाए भी, वह बाढ़ के पानी में बह गए.

Deserted fields
सूने पड़े कछार


बार-बार बीज लगाने से किसानों की टूटी कमर
सब्जी लगाने वाले किसानों का कहना है कि बरसात के बाद नर्मदा नदी का पानी धीरे-धीरे उतरने लगता है, और इसी मौसम में सब्जियां लगाई जाती हैं, लेकिन इस साल सब्जियों के बीज लगाने के बाद आई बाढ़ सब कुछ बहा कर ले गई, ऐसा तीसरी बार है जब वे सब्जियों को लगा रहे हैं. ऐसे में उन्हें बीज खरीदने से लेकर सब्जियां लगाने तक का भारी नुकसान उठाना पड़ा. वहीं सीजन में सब्जियां तैयार न होने के चलते अब भी उन्हें नुकसान ही उठाना पड़ रहा है.

farmers could not grow vegetables this seasons due to flood
किसानों पर दोहरी मार


क्या कहते हैं थोक व्यापारी
उमाशंकर सिंधिया का कहना है कि इन दिनों जो भी सब्जियां बाजार में आती थी, वह मंडला जिले के स्थानीय कछारों की होती थी. जिसके चलते आम ग्राहक को सब्जियां बहुत कम दामों पर मिलने लगती थी. इस समय जो आलू 50 रुपये किलो बिक रहा है वह 10 से 15 रुपये प्रति किलो दाम पर बिकता था, जबकि टमाटर, गोभी, बैगन,भिंडी,पत्त्ता गोभी,लौकी, शिमला मिर्च, पालक सहित अन्य सब्जियां 10 से 20 रुपये किलो तक के दाम पर उपलब्ध होती थी. जिसका दाम इन दिनों 60 रुपये से लेकर 100 रुपये प्रति किलो तक चल रहा है, जिसकी मुख्य वजह स्थानीय कछारों की सब्जियों का अब तक बाजार में ना आ पाना है.

farmers could not grow vegetables this seasons due to flood
किसानों की नहीं उगी सब्जियां


खाद,कीटनाशक का नहीं होता प्रयोग
नर्मदा नदी की बाढ़ से आने वाली मिट्टी इतनी उपजाऊ होती है, कि इसमें न तो खाद का प्रयोग किया जाता है, और न ही किसी तरह की कीटनाशकों का,प्राकृतिक खाद के साथ ही नर्मदा नदी के साफ जल से तैयार होने वाली सब्जियां विशेष स्वाद के लिए फेमस हैं, जिसकी काफी मांग होती है.

सब्जी लगाने वाले किसानों की मुसीबत ये है कि इस सीजन में उनके कछार खाली पड़े हैं, वहीं थोक सब्जी के व्यापारी बाहर की सब्जियों के भरोसे बाजार चला रहे हैं,दूसरी तरफ ग्राहकों को इसके चलते महंगाई की मार झेलनी पड़ रही है जो लगभग महीने भर तक और उनकी जेब पर भारी पड़ेगी.

मंडला। खून पसीना एक कर लगाई सब्जियों की अच्छी पैदावार होने की उम्मीदें लगाने वाले हजारों किसानों की मेहनत बेमौसम बारिश में बह गई. जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ है. घाटे की मार झेल रहे मंडला जिले के किसानों को अब समझ नहीं आ रहा है कि आखिर इस सीजन में कैसे अपना घर चलाएंगे. इस साल बरसात के मौसम में जो बाढ़ आई, वह इतनी ज्यादा रही, कि नर्मदा के किनारे स्थित कछारों में जो सब्जियों के बीज रोपे गए थे, उन्हें बाढ़ बहा कर ले गई. भयंकर बाढ़ ने सब्जी के किसानों द्वारा लगाए बीजों और पेड़ पौधों को पूरी तरह से चौपट कर दिया. जिस मौसम में कछारों को सूख जाना चाहिए था, उस समय यहां पानी और कीचड़ रहा. जिसके चलते सही समय पर फिर से किसान सब्जियों को नहीं लगा पाए. यही वजह है कि यह कछार अब तक सूने पड़े हैं, या फिर जो सब्जियां लगी भी हैं उन्हें तैयार होने में अब भी एक से डेढ़ महीने का समय लगेगा.

अन्नदाता के आगे दोहरी समस्या

ठंड की शुरुआत से ही मंडला जिले की सब्जी बाजारों में स्थानीय कछारों की ताजी सब्जियों की रौनक देखी जाती थी, जिसके चलते 40 रुपए किलो बिकने वाला टमाटर 10 रुपये में 3 किलो बिकता था, तो गोभी, बरबटी, बैगन, भिंडी के दाम भी बमुश्किल 10 रुपये प्रति किलो हुआ करते थे, लेकिन लगातार हुई बारिश और बार-बार आने वाली बाढ़ ने कछारों में सब्जियां लगाने का मौका दिया, और जिन किसानों ने सब्जियों के पौधे लगाए भी, वह बाढ़ के पानी में बह गए.

Deserted fields
सूने पड़े कछार


बार-बार बीज लगाने से किसानों की टूटी कमर
सब्जी लगाने वाले किसानों का कहना है कि बरसात के बाद नर्मदा नदी का पानी धीरे-धीरे उतरने लगता है, और इसी मौसम में सब्जियां लगाई जाती हैं, लेकिन इस साल सब्जियों के बीज लगाने के बाद आई बाढ़ सब कुछ बहा कर ले गई, ऐसा तीसरी बार है जब वे सब्जियों को लगा रहे हैं. ऐसे में उन्हें बीज खरीदने से लेकर सब्जियां लगाने तक का भारी नुकसान उठाना पड़ा. वहीं सीजन में सब्जियां तैयार न होने के चलते अब भी उन्हें नुकसान ही उठाना पड़ रहा है.

farmers could not grow vegetables this seasons due to flood
किसानों पर दोहरी मार


क्या कहते हैं थोक व्यापारी
उमाशंकर सिंधिया का कहना है कि इन दिनों जो भी सब्जियां बाजार में आती थी, वह मंडला जिले के स्थानीय कछारों की होती थी. जिसके चलते आम ग्राहक को सब्जियां बहुत कम दामों पर मिलने लगती थी. इस समय जो आलू 50 रुपये किलो बिक रहा है वह 10 से 15 रुपये प्रति किलो दाम पर बिकता था, जबकि टमाटर, गोभी, बैगन,भिंडी,पत्त्ता गोभी,लौकी, शिमला मिर्च, पालक सहित अन्य सब्जियां 10 से 20 रुपये किलो तक के दाम पर उपलब्ध होती थी. जिसका दाम इन दिनों 60 रुपये से लेकर 100 रुपये प्रति किलो तक चल रहा है, जिसकी मुख्य वजह स्थानीय कछारों की सब्जियों का अब तक बाजार में ना आ पाना है.

farmers could not grow vegetables this seasons due to flood
किसानों की नहीं उगी सब्जियां


खाद,कीटनाशक का नहीं होता प्रयोग
नर्मदा नदी की बाढ़ से आने वाली मिट्टी इतनी उपजाऊ होती है, कि इसमें न तो खाद का प्रयोग किया जाता है, और न ही किसी तरह की कीटनाशकों का,प्राकृतिक खाद के साथ ही नर्मदा नदी के साफ जल से तैयार होने वाली सब्जियां विशेष स्वाद के लिए फेमस हैं, जिसकी काफी मांग होती है.

सब्जी लगाने वाले किसानों की मुसीबत ये है कि इस सीजन में उनके कछार खाली पड़े हैं, वहीं थोक सब्जी के व्यापारी बाहर की सब्जियों के भरोसे बाजार चला रहे हैं,दूसरी तरफ ग्राहकों को इसके चलते महंगाई की मार झेलनी पड़ रही है जो लगभग महीने भर तक और उनकी जेब पर भारी पड़ेगी.

Last Updated : Nov 7, 2020, 1:08 PM IST
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