मण्डला। जिले में दो शक्कर की मिल थीं, जिनमें लोगों को दो-तीन दिन इंतजार के बाद गन्ना बेचने का मौका हाथ आता था. लेकिन सरकारी उदासीनता के बाद आज दोनों मिलें बंद हो चुकी हैं, वहीं किसान भी गन्ने की खेती छोड़ आज पुरानी धान गेंहू की फसल की तरफ लौट रहे हैं. आलम यह है कि गन्ना महज मजबूरी की खेती बन कर रह गया है.
पारम्परिक खेती छोड़ अपनाई थी गन्ने की खेती
एक समय था जब मण्डला के किसानों ने पारम्परिक धान और गेहूं की फसल में मुनाफा ना देख गन्ने की खेती अपनाई और जिले में इसका अच्छा उत्पादन भी होने लगा. जिसे देखते हुए दो शुगर मिल भी लग गईं. जिनमें सीजन में रोज ही 400 किविंटल से ज्यादा गन्ना पहुंचने लगा.
किसान को शासन प्रशासन की मदद की दरकार थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और समर्थन मूल्य या सरकारी मदद नहीं मिलने से किसान गन्ना लगा कर लगातार घाटे में जाते रहे. नतीजा यह हुआ कि किसानों को प्रति किविंटल गन्ने का दाम 150 रुपए रह गया जो लागत, मेहनत, मजदूरी और कटाई के बाद मिल तक पहुंचाने में लगने वाली ढुलाई से बहुत कम था.
ऐसे में किसानों ने गन्ना लगाना धीरे-धीरे कम कर दिया. शक्कर मिल मालिकों के पास गन्ने की आवक एक चौथाई से भी कम रह गई. आखिर में मिल मालिकों को दोनों शुगर मिलों को बंद करना पड़ा.
मौजूदा समय में पूरे जिले में महज कुछ गांवों के किसान ही गन्ने की खेती कर रहे हैं. शुगर मिल के मालिक का कहना है कि धान और गेहूं को मिलने वाला समर्थन मूल्य ज्यादा होने से गन्ने की पैदावार को लेकर किसानों का रुझान कम हुआ और आखिर में शक्कर मिल में दिन भर में 100 किविंटल तक गन्ना नहीं आ पाने से शुगर मिल में ताला लगाना पड़ा.
किसानों का कहना है कि धान और गेहूं की फसल में फायदा नहीं होने से गन्ने की खेती अपनाई लेकिन इससे किसानों को और भी नुकसान हुआ. अब वे फिर धान और गेहूं की खेती की तरफ लौट आए हैं.
यह सरकारी उदासीनता का ही नतीजा है कि किसानों का गन्ने की खेती से मोहभंग हो गया. घाटा की इस खेती को किसानों ने छोड़ा तो शुगर मिलों में भी ताले लग गए. किसानों के हितों की बात करने वाली सराकरें आखिर कब किसानों से जुड़ी समस्याओं का संज्ञान लेंगी.