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किसानों ने बंद की घाटे का सौदा बनी गन्ने की खेती, शक्कर मिलों में लग गए ताले - सरकारी उदासीनता

मण्डला में सरकारी की तरफ से कम समर्थन मूल्य मिलने के कारण गन्ने की खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन गई. इसके कारण किसान गन्ने की खेती छोड़ वापस पारम्परिक खेती कर रहे हैं.

sugar cane field
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Published : Nov 16, 2019, 12:12 AM IST

मण्डला। जिले में दो शक्कर की मिल थीं, जिनमें लोगों को दो-तीन दिन इंतजार के बाद गन्ना बेचने का मौका हाथ आता था. लेकिन सरकारी उदासीनता के बाद आज दोनों मिलें बंद हो चुकी हैं, वहीं किसान भी गन्ने की खेती छोड़ आज पुरानी धान गेंहू की फसल की तरफ लौट रहे हैं. आलम यह है कि गन्ना महज मजबूरी की खेती बन कर रह गया है.

मण्डला में किसानों ने बंद की गन्ने की खेती

पारम्परिक खेती छोड़ अपनाई थी गन्ने की खेती

एक समय था जब मण्डला के किसानों ने पारम्परिक धान और गेहूं की फसल में मुनाफा ना देख गन्ने की खेती अपनाई और जिले में इसका अच्छा उत्पादन भी होने लगा. जिसे देखते हुए दो शुगर मिल भी लग गईं. जिनमें सीजन में रोज ही 400 किविंटल से ज्यादा गन्ना पहुंचने लगा.

किसान को शासन प्रशासन की मदद की दरकार थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और समर्थन मूल्य या सरकारी मदद नहीं मिलने से किसान गन्ना लगा कर लगातार घाटे में जाते रहे. नतीजा यह हुआ कि किसानों को प्रति किविंटल गन्ने का दाम 150 रुपए रह गया जो लागत, मेहनत, मजदूरी और कटाई के बाद मिल तक पहुंचाने में लगने वाली ढुलाई से बहुत कम था.

sugar cane field
गन्ने की खेती

ऐसे में किसानों ने गन्ना लगाना धीरे-धीरे कम कर दिया. शक्कर मिल मालिकों के पास गन्ने की आवक एक चौथाई से भी कम रह गई. आखिर में मिल मालिकों को दोनों शुगर मिलों को बंद करना पड़ा.

मौजूदा समय में पूरे जिले में महज कुछ गांवों के किसान ही गन्ने की खेती कर रहे हैं. शुगर मिल के मालिक का कहना है कि धान और गेहूं को मिलने वाला समर्थन मूल्य ज्यादा होने से गन्ने की पैदावार को लेकर किसानों का रुझान कम हुआ और आखिर में शक्कर मिल में दिन भर में 100 किविंटल तक गन्ना नहीं आ पाने से शुगर मिल में ताला लगाना पड़ा.

किसानों का कहना है कि धान और गेहूं की फसल में फायदा नहीं होने से गन्ने की खेती अपनाई लेकिन इससे किसानों को और भी नुकसान हुआ. अब वे फिर धान और गेहूं की खेती की तरफ लौट आए हैं.

यह सरकारी उदासीनता का ही नतीजा है कि किसानों का गन्ने की खेती से मोहभंग हो गया. घाटा की इस खेती को किसानों ने छोड़ा तो शुगर मिलों में भी ताले लग गए. किसानों के हितों की बात करने वाली सराकरें आखिर कब किसानों से जुड़ी समस्याओं का संज्ञान लेंगी.

मण्डला। जिले में दो शक्कर की मिल थीं, जिनमें लोगों को दो-तीन दिन इंतजार के बाद गन्ना बेचने का मौका हाथ आता था. लेकिन सरकारी उदासीनता के बाद आज दोनों मिलें बंद हो चुकी हैं, वहीं किसान भी गन्ने की खेती छोड़ आज पुरानी धान गेंहू की फसल की तरफ लौट रहे हैं. आलम यह है कि गन्ना महज मजबूरी की खेती बन कर रह गया है.

मण्डला में किसानों ने बंद की गन्ने की खेती

पारम्परिक खेती छोड़ अपनाई थी गन्ने की खेती

एक समय था जब मण्डला के किसानों ने पारम्परिक धान और गेहूं की फसल में मुनाफा ना देख गन्ने की खेती अपनाई और जिले में इसका अच्छा उत्पादन भी होने लगा. जिसे देखते हुए दो शुगर मिल भी लग गईं. जिनमें सीजन में रोज ही 400 किविंटल से ज्यादा गन्ना पहुंचने लगा.

किसान को शासन प्रशासन की मदद की दरकार थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और समर्थन मूल्य या सरकारी मदद नहीं मिलने से किसान गन्ना लगा कर लगातार घाटे में जाते रहे. नतीजा यह हुआ कि किसानों को प्रति किविंटल गन्ने का दाम 150 रुपए रह गया जो लागत, मेहनत, मजदूरी और कटाई के बाद मिल तक पहुंचाने में लगने वाली ढुलाई से बहुत कम था.

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गन्ने की खेती

ऐसे में किसानों ने गन्ना लगाना धीरे-धीरे कम कर दिया. शक्कर मिल मालिकों के पास गन्ने की आवक एक चौथाई से भी कम रह गई. आखिर में मिल मालिकों को दोनों शुगर मिलों को बंद करना पड़ा.

मौजूदा समय में पूरे जिले में महज कुछ गांवों के किसान ही गन्ने की खेती कर रहे हैं. शुगर मिल के मालिक का कहना है कि धान और गेहूं को मिलने वाला समर्थन मूल्य ज्यादा होने से गन्ने की पैदावार को लेकर किसानों का रुझान कम हुआ और आखिर में शक्कर मिल में दिन भर में 100 किविंटल तक गन्ना नहीं आ पाने से शुगर मिल में ताला लगाना पड़ा.

किसानों का कहना है कि धान और गेहूं की फसल में फायदा नहीं होने से गन्ने की खेती अपनाई लेकिन इससे किसानों को और भी नुकसान हुआ. अब वे फिर धान और गेहूं की खेती की तरफ लौट आए हैं.

यह सरकारी उदासीनता का ही नतीजा है कि किसानों का गन्ने की खेती से मोहभंग हो गया. घाटा की इस खेती को किसानों ने छोड़ा तो शुगर मिलों में भी ताले लग गए. किसानों के हितों की बात करने वाली सराकरें आखिर कब किसानों से जुड़ी समस्याओं का संज्ञान लेंगी.

Intro:बात करीब एक दशक पहले की है जब मण्डला जिले में दो शक्कर की मिल थीं और दोनों मिलों में लोगों को दो तीन दिन इंतजार के बाद गन्ना बेचने का मौका हाथ आता था लेकिन सरकारी उदासीनता के बाद आज दोनों मिलें बंद हो चुकी हैं वहीं किसान भी गन्ने की खेती छोड़ आज पुरानी धान गेंहू की फसल की तरफ लौट रहे हैं और आलम यह है कि गन्ना महज मजबूरी की खेती बन कर रह गया है


Body:एक समय था जब मण्डला के किसानों ने पारम्परिक धान और गेँहू की फसल में मुनाफा न देख गन्ने की खेती अपनाई और जिले में इसका अच्छा उत्पादन भी होने लगा जिसे देखते हुए दो शुगर मिल भी लग गईं जिनमे रोज ही 400 किविंटल से ज्यादा गन्ना सीजन मेँ पहुंचने लगा यही वह समय था जब शासन प्रशासन को किसानों की मदद की दरकार थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं और समर्थन मूल्य या सरकारी मदद नहीं मिलने से किसान गन्ना लगा कर लगातार घाटे में जाते रहे और आलम यह हुआ कि किसानों को प्रति किविंटल गन्ने का दाम 150 रुपया रह गया जो लागत,मेहनत,मजदूरी और कटाई के बाद मिल तक पहुंचाने में लगने वाली ढुलाई से बहुत कम था ऐसे में कुछ मौके तो ऐसे आए की गन्ने की खड़ी फसल को किसानों के द्वारा आग के हवाले करने को मजबूर होना पड़ा और इसके बाद किसानों ने गन्ना लगाना धीरे धीरे कम कर दिया जिसके चलते अब शक्कर मिल मालिकों के पास गन्ने की आवक एक चौथाई से भी कम रह गई जिससे करीब आठ साल पहले एक शुगर मिल बंद हुई लेकिन समस्या यहीं खत्म नहीं हुई सरकारी सहायता इसके बाद भी किसानों को मिली और सैकड़ों किसान के लिए यह मजबूरी की खेती बन गया जिसके बाद बीते दो सीजन से दूसरी शक्कर की मिल भी बंद हो गयी हालात यह है कि पूरे जिले में महज कुछ गाँव के किसान ही आज इस खेती को कर रहे हैं जिनके सामने भी बाज़ार की समस्या है और वे मड़ई मेलों में गन्ने बेचने को मजबूर हैं किसानों का कहना है कि जिस सोच के साथ उन्होंने गन्ने की खेती अपनाई थी उसे मजबूरी के साथ छोड़ना पड़ा क्योंकि गन्ना अब उनके लिए कसैला हो चला है


Conclusion:शुगर मिल के मालिक का कहना है कि धान और गेँहू को मिलने वाला समर्थन मूल्य ज्यादा होने से गन्ने की पैदावार को लेकर किसानों का रुझान कम हुआ और आखिर में शक्कर मिल में दिन भर में 100 किविंटल तक गन्ना नहीं आ पाने से शुगर मिल में ताला लगाना पड़ा,वहीं किसानों का कहना है कि धान और गेहूं की फसल में फायदा नहीं होने से गन्ने की खेती अपनाई लेकिन उसने किसानों को और नुकसान कराया और अब वे फिर उसी खेती की तरफ लौट आए हैं जो उन्होंने छोड़ी थी,कुल मिला कर सरकारी उदासीनता का नतीजा ही कहा जाएगा कि आज किसानों के लिए गन्ने की खेती से किसानों का मोहभंग हो रहा है।

बाईट--सूरज ठाकुर किसान
बाईट--विजय ठाकुर किसान
बाईट--बसंत ठाकुर किसान
बाईट--दीपक ठाकुर,मिल में काम करने वाला
बाईट--सुरेंद्र पमनानी, सुगर मिल मालिक
पीटूसी --मयंक तिवारी मण्डला
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