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Navratri 2020: आदिवासियों के तीर्थ पर ज्योति की उपासना, यहां एक चुटकी भभूत से होती है मन्नत पूरी

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Published : Oct 23, 2020, 4:31 PM IST

Updated : Oct 23, 2020, 5:51 PM IST

चौगान की मढ़िया आदिवासियों का तीर्थ स्थान कहा जाता है, मंडला से 30किमी दूर इस स्थान पर नवरात्रि में विशेष पूजा अर्चना की जाती है, यहां भक्तों की मनोकामना पूरी होती है, लोगों का मानना है कि इस स्थान पर आने से कई बीमारियों से निजात भी मिल जाती है.

Chaugan ki madhiya in mandla district
चौगान की मढ़िया

मंडला। जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर चौगान की मढ़िया आदिवासियों का तीर्थ स्थान कहा जाता है, यहां न केवल मंडला जिला बल्कि दूसरे प्रदेशों से भी हर वर्ग के लोग मन्नत मांगने आते हैं और एक चुटकी भभूत (राख) खाने और दरबार में माथा टेकने से उनकी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. मन्नत पूरी होने के बदले में भक्त को यहां ज्योति कलश की स्थापना कराना जरूरी होता है.

आदिवासियों के तीर्थ पर ज्योति की उपासना

एक चुटकी भभूत और पंडे का चमीटा

इस स्थान पर श्रद्धा रखने वाले लोगों का मानना है कि चौगान की मढ़िया में देवी का वास है और लोग यहां दूर-दूर से आकर अपनी समस्याओं से निजात पाते हैं, यहां आने के बाद सबसे पहले नारियल अगरबत्ती के साथ अपनी मनोकामना देवी से कहनी होती है और पंडा के सामने अर्जी लगानी होती है, पंडा के द्वारा लगातार जलती आ रही धूनी की एक चुटकी भभूत मां के आशीर्वाद के रूप में दी जाती है, जिसे खाने के बाद बीमारियों के दूर होने और कोई भी मनोकामना पूरी होने की बात कही जाती है. यहां के पुजारी ने बताया कि माता लोगों की सूनी गोद भरने के साथ ही बीमारियों को दूर करती है, मानसिक रूप से विक्षिप्त यहां आकर ठीक हो जाते हैं. इसके अलावा कानूनी उलझनों से भी यहां निजात मिलती है.

पढ़ेंः अद्भुत है शहडोल का ये देवी मंदिर, जहां कंकाल रुप में विराजी हैं मां चामुंडा

मनोकामना पूरी होने के बाद ही होती है खास पूजा

जिस किसी की भी यहां मन्नत पूरी होती है, उन्हें इस स्थान पर बांस की टोकरी, मिट्टी का बड़ा दीपक और तेल-बाती लेकर आना होता है, नवरात्रि प्रारंभ के दूसरे दिन खास तरह की मिट्टी सभी को पुजारी के द्वारा बताए स्थान से लानी होती है, जिसके बाद धान के ज्वारे टोकरी में बोए जाते हैं और एक साथ ज्योति प्रज्वलित कर कलशों की स्थापना की जाती है, इस स्थान में मांगी गई मन्नत पूरी होने के बाद ही कलश रखे जाते हैं और ऐसे कलश की संख्या, इन नवरात्रि में लगभग 3000 तो चैत्र के नवरात्रि में 6000 के करीब होती है.

पढ़ेंः जबलपुर में बुंदेली कलाकृतियों वाली दुर्गा प्रतिमाओं का है चलन, अद्भुत आभूषणों से होता है मां का शृंगार

आस्था पर भारी कोरोना

कोरोना काल में चौगान की मढ़िया में सिर्फ 500 कलश की ही स्थापना की गई है, जो दूसरे जिलों या प्रदेशों से आए, जबकि आस-पास के बाकी लोगों को वापस भेज दिया गया क्योंकि शासन प्रशासन की गाइडलाइन इस बात की इजाजत नहीं देती, इस पवित्र देवी स्थान में सोशल डिस्टेंस का पालन किया जा रहा है और भीड़ नहीं बढ़ने दी जा रही है, लेकिन कहीं न कहीं भक्तों के उत्साह में कमी आई है, एक तरफ जहां हजारों लोग कलश स्थापना करने से वंचित रह गए वहीं दूसरी तरफ इस समय जहां तिल रखने की जगह नहीं होती थी वहां वीरानी छाई हुई है.

शायद ही ऐसा कोई दरबार होगा, जहां मन्नत पूरी होने के बाद ही कलश रखने प्रथा हो, बावजूद इसके हजारों की संख्या में रखे जाने वाले कलश इस स्थान के महत्व को खुद ही बयां करते हैं, लेकिन जिस तरह की शांति और खालीपन का आलम इस नवरात्रि यहां देखने को मिल रहा ऐसा कभी नहीं हुआ.

नोट- ईटीवी भारत किसी भी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता.

मंडला। जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर चौगान की मढ़िया आदिवासियों का तीर्थ स्थान कहा जाता है, यहां न केवल मंडला जिला बल्कि दूसरे प्रदेशों से भी हर वर्ग के लोग मन्नत मांगने आते हैं और एक चुटकी भभूत (राख) खाने और दरबार में माथा टेकने से उनकी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. मन्नत पूरी होने के बदले में भक्त को यहां ज्योति कलश की स्थापना कराना जरूरी होता है.

आदिवासियों के तीर्थ पर ज्योति की उपासना

एक चुटकी भभूत और पंडे का चमीटा

इस स्थान पर श्रद्धा रखने वाले लोगों का मानना है कि चौगान की मढ़िया में देवी का वास है और लोग यहां दूर-दूर से आकर अपनी समस्याओं से निजात पाते हैं, यहां आने के बाद सबसे पहले नारियल अगरबत्ती के साथ अपनी मनोकामना देवी से कहनी होती है और पंडा के सामने अर्जी लगानी होती है, पंडा के द्वारा लगातार जलती आ रही धूनी की एक चुटकी भभूत मां के आशीर्वाद के रूप में दी जाती है, जिसे खाने के बाद बीमारियों के दूर होने और कोई भी मनोकामना पूरी होने की बात कही जाती है. यहां के पुजारी ने बताया कि माता लोगों की सूनी गोद भरने के साथ ही बीमारियों को दूर करती है, मानसिक रूप से विक्षिप्त यहां आकर ठीक हो जाते हैं. इसके अलावा कानूनी उलझनों से भी यहां निजात मिलती है.

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मनोकामना पूरी होने के बाद ही होती है खास पूजा

जिस किसी की भी यहां मन्नत पूरी होती है, उन्हें इस स्थान पर बांस की टोकरी, मिट्टी का बड़ा दीपक और तेल-बाती लेकर आना होता है, नवरात्रि प्रारंभ के दूसरे दिन खास तरह की मिट्टी सभी को पुजारी के द्वारा बताए स्थान से लानी होती है, जिसके बाद धान के ज्वारे टोकरी में बोए जाते हैं और एक साथ ज्योति प्रज्वलित कर कलशों की स्थापना की जाती है, इस स्थान में मांगी गई मन्नत पूरी होने के बाद ही कलश रखे जाते हैं और ऐसे कलश की संख्या, इन नवरात्रि में लगभग 3000 तो चैत्र के नवरात्रि में 6000 के करीब होती है.

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आस्था पर भारी कोरोना

कोरोना काल में चौगान की मढ़िया में सिर्फ 500 कलश की ही स्थापना की गई है, जो दूसरे जिलों या प्रदेशों से आए, जबकि आस-पास के बाकी लोगों को वापस भेज दिया गया क्योंकि शासन प्रशासन की गाइडलाइन इस बात की इजाजत नहीं देती, इस पवित्र देवी स्थान में सोशल डिस्टेंस का पालन किया जा रहा है और भीड़ नहीं बढ़ने दी जा रही है, लेकिन कहीं न कहीं भक्तों के उत्साह में कमी आई है, एक तरफ जहां हजारों लोग कलश स्थापना करने से वंचित रह गए वहीं दूसरी तरफ इस समय जहां तिल रखने की जगह नहीं होती थी वहां वीरानी छाई हुई है.

शायद ही ऐसा कोई दरबार होगा, जहां मन्नत पूरी होने के बाद ही कलश रखने प्रथा हो, बावजूद इसके हजारों की संख्या में रखे जाने वाले कलश इस स्थान के महत्व को खुद ही बयां करते हैं, लेकिन जिस तरह की शांति और खालीपन का आलम इस नवरात्रि यहां देखने को मिल रहा ऐसा कभी नहीं हुआ.

नोट- ईटीवी भारत किसी भी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता.

Last Updated : Oct 23, 2020, 5:51 PM IST
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