मंडला। जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर हिरदेनगर को पान की खेती के लिए जाना जाता था. यहां के किसान बड़ी संख्या में पान की खेती करते थे. यहां का पान अपने स्वाद के साथ ही मुंह में आसानी से घुलने के चलते प्रदेश के बाहर भी काफी मशहूर था. लेकिन धीरे धीरे चौरसिया समाज के इस पुस्तैनी धंधे से उनका मोहभंग होता गया और आज यहां सिर्फ एक ही पान का बरेजा है, जिसका कारण है पान की खेती के लिए आवश्यक बांस और मंडप बनाने के लिए मोटी घांस,सन की काड़ी का नहीं मिल पाना. वहीं सालिकराम चौरसिया कहते हैं कि सुविधाओं की कमी के चलते खेती कम होने लगी है.
एक समय में थी मंडला पत्ती की खासी मांग
पान के शौकीन और वरिष्ठ पत्रकार सुधीर उपाध्यक्ष बताते हैं कि एक समय जब मंडला पत्ती की खासी मांग थी और डेढ़ दर्जन से ज्यादा परिवार इस कुटीर उद्योग के सहारे अपना जीवन यापन करते थे. लेकिन सरकार और प्रशासन की अनदेखी के चलते किसानों को मिलने वाला बांस इतना महंगा हो गया कि लागत के मुकाबले मुनाफा बहुत कम रह गया और ये कुटीर उद्योग बंद हो गए.
एक ही पान का बरेजा, है बचा
मंडला जिले ने वो दौर भी देखा है जब पूरे जिले की पान की कमी हिरदेनगर के बारेजों से निकलने वाले पान से पूरी हो जाती थी. लेकिन आज हालात इसके ठीक उलट है. यहां सिर्फ एक ही बरेजा बचा है. और अब पान के शौकीन महाराष्ट्र और कलकत्ता से आने वाली पत्ती से ही काम चला रहे हैं, लेकिन इसमें वो स्वाद और लाली नहीं जो मंडला पत्ती की खाशियत थी.
कभी पूरा जिला होता था गौरवान्वित
हिरदेनगर, बिनेका और मंडला के पान की शान का ये वो इतिहास है जिससे कभी पूरा जिला गौरवान्वित होता था, लेकिन मुनाफे पर लागत हावी हुई तो बाहरी पान के मुकाबले स्थानीय किसानों के बारेजों ने दम तोड़ दिया. ऐसे में कम कीमत के पान ने बाजार पर कब्जा किया और जिले की शान मंडला का पान अब अपनी पहचान खो चुका है, जिसे फिर से पटरी पर लाने के प्रयास भी नहीं हो रहे.