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मण्डला की शान है ये कलाकार, मां लक्ष्मी ने सपने में दिया था मूर्ति बनाने का आदेश! - art of pottery

मण्डला के महाराजपुर में रहने वाले मूर्तिकार धनेश्वर को प्रदेश में उनकी मूर्ति बनाने की कला ने अलग पहचान दिलाई है. पहले धनेश्वर केवल दिए और मटके बनाया करते थे, मूर्ति बनाने के पीछ भी एक बड़ी रोचक कहानी है.

मण्डला की शान है ये कलाकार
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Published : Oct 24, 2019, 11:07 AM IST

Updated : Oct 24, 2019, 2:50 PM IST

मण्डला। जिले के महाराजपुर में रहने वाले धनेश्वर मिट्टी की मूर्तियां बनाने का काम करते हैं, धनेश्वर का दावा है कि उनको मां लक्ष्मी ने खुद की मुर्ति बानने का आदेश सपने में आकर दिया, जिसके बाद उन्होंने मिट्टी का वर्तन बनाने के साथ- साथ मूर्तियां बनाने का काम भी शुरू कर दिया. भले ही यह एक कहानी ही लगती हो, लेकिन मण्डला के महाराजपुर में रहने वाले धनेश्वर प्रजापति की मूर्तिकला का सफर कुछ ऐसे ही शुरू हुआ है, जहां से साधारण मटके और दिए बनाने वाला एक कुम्हार आज नामी कलाकरों में गिना जाता है. धानेश्वर आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, उन्हें उनकी कला से इलाके में पहचान मिलती है. उन्होंने न केवल मिट्टी बल्कि सीमेंट की भी ऐसी मूर्तियां बनाई हैं, जिनमें बस जान डालना ही शेष रह गया. इनकी मूर्तियां न सिर्फ मण्डला बल्की जिले से बाहर भी काफी डिमांड में रहती हैं.

मण्डला की शान है ये कलाकार

सपने से शुरू हुआ सिलसिला
धानेश्वर प्रजापति बताते हैं कि उनके पुश्तैनी धंधे में एक वक्त ऐसा आया कि, जब मटके और दिए बनाकर इनका गुजारा मुश्किल हो गया था, आर्थिक तंगी और मजबूरी के आगे वह हार मान चुके थे. तभी सपने में माता लक्ष्मी आईं और मूर्ती बनाने का आदेश दिया, जिसके बाद से ही धानेश्वर मूर्तियां बनाने का काम कर रहे हैं. कभी मूर्तिकला के नाम पर ब्रश तक न पकड़ने वाले धानेश्वर ने माता के आदेश पर पहली ही बार मे मां लक्ष्मी की एक सुंदर मूर्ति बनाई थी, जो आज भी इनके घर में मौजूद है.

मूर्तिकला से मिला काफी सम्मान
करीब 20 साल से माटी को गूंथ कर, मटके, दिए, फ्लावर पॉट, गमले और ग्राहकों के मन की कल्पना को उभारने वाले इस कलाकार को राजधानी में भी सम्मान मिल चुका है, इसके अलावा भी मूर्तिकला के लिए धनेश्वर को कई सम्मान मिल चुके हैं. आज बड़े-बड़े मंदिरों में इनकी बनाई मूर्तियों की पूजा होती है वहीं बहुत से चौक-चौराहों की शान भी इनकी बनाई मूर्तियों से बढ़ रहीं हैं.

धानेश्वर अपने काम और मूर्तियों को बनाने की कला को और आगे पहुंचाना चाहते हैं, लेकिन संसाधनों के का आभाव और महंगाई ने उनके हाथ बांध दिए हैं और वह केवल रोजी- रोटी चलाने के लिए ही काम करते हैं. अगर उन्हें उचित मदद मिल जाए तो निश्चित तौर पर उनके हुनर से जिले को नई पहचान मिल सकती है. कलेक्टर डॉ जगदीश चंद्र जाटिया कहते हैं कि जल्द ही जिले के मूर्तिकारों को मंच दिया जाएगा, जिससे इस कला को साधने वालों की मदद हो सके.

मण्डला। जिले के महाराजपुर में रहने वाले धनेश्वर मिट्टी की मूर्तियां बनाने का काम करते हैं, धनेश्वर का दावा है कि उनको मां लक्ष्मी ने खुद की मुर्ति बानने का आदेश सपने में आकर दिया, जिसके बाद उन्होंने मिट्टी का वर्तन बनाने के साथ- साथ मूर्तियां बनाने का काम भी शुरू कर दिया. भले ही यह एक कहानी ही लगती हो, लेकिन मण्डला के महाराजपुर में रहने वाले धनेश्वर प्रजापति की मूर्तिकला का सफर कुछ ऐसे ही शुरू हुआ है, जहां से साधारण मटके और दिए बनाने वाला एक कुम्हार आज नामी कलाकरों में गिना जाता है. धानेश्वर आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, उन्हें उनकी कला से इलाके में पहचान मिलती है. उन्होंने न केवल मिट्टी बल्कि सीमेंट की भी ऐसी मूर्तियां बनाई हैं, जिनमें बस जान डालना ही शेष रह गया. इनकी मूर्तियां न सिर्फ मण्डला बल्की जिले से बाहर भी काफी डिमांड में रहती हैं.

मण्डला की शान है ये कलाकार

सपने से शुरू हुआ सिलसिला
धानेश्वर प्रजापति बताते हैं कि उनके पुश्तैनी धंधे में एक वक्त ऐसा आया कि, जब मटके और दिए बनाकर इनका गुजारा मुश्किल हो गया था, आर्थिक तंगी और मजबूरी के आगे वह हार मान चुके थे. तभी सपने में माता लक्ष्मी आईं और मूर्ती बनाने का आदेश दिया, जिसके बाद से ही धानेश्वर मूर्तियां बनाने का काम कर रहे हैं. कभी मूर्तिकला के नाम पर ब्रश तक न पकड़ने वाले धानेश्वर ने माता के आदेश पर पहली ही बार मे मां लक्ष्मी की एक सुंदर मूर्ति बनाई थी, जो आज भी इनके घर में मौजूद है.

मूर्तिकला से मिला काफी सम्मान
करीब 20 साल से माटी को गूंथ कर, मटके, दिए, फ्लावर पॉट, गमले और ग्राहकों के मन की कल्पना को उभारने वाले इस कलाकार को राजधानी में भी सम्मान मिल चुका है, इसके अलावा भी मूर्तिकला के लिए धनेश्वर को कई सम्मान मिल चुके हैं. आज बड़े-बड़े मंदिरों में इनकी बनाई मूर्तियों की पूजा होती है वहीं बहुत से चौक-चौराहों की शान भी इनकी बनाई मूर्तियों से बढ़ रहीं हैं.

धानेश्वर अपने काम और मूर्तियों को बनाने की कला को और आगे पहुंचाना चाहते हैं, लेकिन संसाधनों के का आभाव और महंगाई ने उनके हाथ बांध दिए हैं और वह केवल रोजी- रोटी चलाने के लिए ही काम करते हैं. अगर उन्हें उचित मदद मिल जाए तो निश्चित तौर पर उनके हुनर से जिले को नई पहचान मिल सकती है. कलेक्टर डॉ जगदीश चंद्र जाटिया कहते हैं कि जल्द ही जिले के मूर्तिकारों को मंच दिया जाएगा, जिससे इस कला को साधने वालों की मदद हो सके.

Intro:( दीपावली स्पेशल )

ये एक कहानी ही लगती है कि सपने में आकर किसी कुम्हार को लक्ष्मी जी ने खुद की मूर्ती बनाने का आदेश दिया हो लेकिन महाराजपुर में रहने वाले धनेश्वर की मूर्तिकला का सफर कुछ ऐसे ही शुरू हुआ और साधारण,दिये और मटके बनाने वाला यह कलाकार आज नामी कलाकरों में गिना जाता है।


Body:मण्डला के उनगरीय क्षेत्र महाराजपुर में रहने वाले मूर्तिकार धानेश्वर आज किसी परिचय के मोहताज नहीं उन्होंने न केवल मिट्टी बलिक सीमेंट ऐसी मूर्तियों को बनाया की बस उनमें जान डालना ही शेष रह गया,मण्डला सहित पूरे जिले और जिले से बाहर भी इनके हाथ से गढ़ी मूर्तियों की खाशी डिमांड है लेकिन इस सफलता की शुरुआत भी काफी अजीबोगरीब है या यूँ कहें कि माता लक्ष्मी ने ही इन्हें सपने में आकर आदेश दिया और आज ये इस मुकाम पर हैं,धानेश्वर प्रजापति बताते हैं कि अपने पुश्तैनी धंधे में एक वक्त ऐसा आया कि जब मटके और दिए बना कर इनका गुजारा मुश्किल हो गया था जिस पर परिवार के साथ ही बुजुर्ग माता पिता की जबाबदारी इकलौती संतान होने के चलते इन्ही पर थी,आर्थिक तंगी और मजबूरी के आगे हार चुके और निराश धानेश्वर के सपने में दीपावली के तीन दिन पहले सपने में लक्ष्मी जी खुद आईं और खुद की मूर्ती बनाने की बात कहीं,कभी मूर्तिकला के नाम पर ब्रश तक न पकड़ने वाले धानेश्वर ने माता के आदेश पर बिना गुरु के ही काम शुरू कर दिया और पहली ही बार मे तैयार कर दी एक सुंदर लक्ष्मी जी की मूर्ति जो आज भी इनके घर मे मौजूद है, इस कलाकार के अनुशार तब से आज तक जो सिलसिला चला आ रहा है वह कभी टूटा नहीं और मूर्तिकला ने उन्हें मानसम्मान भी खूब दिलाया आज बड़े बड़े मंदिरों में उनकी बनाई मूर्तियों की पूजा होती है वहीं बहुत से चौक चौराहे की शान भी इनकी बनाई मूर्तियाँ बन चुकी हैं करीब 20 साल से माटी को गूँथ कर,मटके दिए फ्लावर पॉट,गमले और ग्राहकों के मन की कल्पना को उभारने वाले इस कलाकार को राजधानी में भी सम्मान मिल चुका है।


Conclusion:धानेश्वर अपने काम और मूर्तियों को बनाने की कला को और आगे पहुंचाना चाहते हैं लेकिन उनका कहना है कि संसाधनों के साथ ही जरूरी चीजों का आभाव और महंगाई के साथ ही शासन प्रशासन से न मिलने वाली मदद ने उनके हाथ बांध दिए हैं और अब वे रोजी रोटी चलाने के लिए ही काम करते हैं यदि उन्हें मदद मिले तो वे अपने हुनर से जिले को नई पहचान दिला सकते हैं। वहीं जिले के मुखिया डॉ जगदीश चन्द्र जाटिया का कहना है कि जल्द ही जिले के मूर्तिकारों को मंच दिया जाएगा जिससे इस कला को साधने वालो की मदद हो सके।

बाईट--धानेश्वर प्रजापति,मूर्तिकार मण्डला
बाईट--डॉ जगदीश चंद्र जाटिया कलेक्टर मण्डला
Last Updated : Oct 24, 2019, 2:50 PM IST
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