खरगोन। आपने सड़कों के किनारे किसी दीवार पर इन पंक्तियों को तो जरुर पढ़ा होगा. सर्व शिक्षा अभियान, स्कूल चले हम, सब पढ़ सब बढ़े इत्यादि. लेकिन आज भी मध्यप्रदेश के कई शहर, ग्राम और कस्बों की दुर्दशा बेहद ही निंदनीय है. कुछ ऐसे ही हाल खरगोन जिले के भगवानपुर विकासखंड मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर ढाबला गांव का है. यहां स्कूल के लिए भवन तो बने हैं लेकिन उस भवन के कमरों में बच्चों की क्लास नहीं लगती है. अति गरीब माहौल में जी रहे ग्रामीणों के बस में इतना भी नहीं है कि वह अपने बच्चों को किसी अच्छे स्कूल में दाखिला दिला सके. यहां अब भी बच्चों को न तो किताब दी गई हैं और न ही यूनिफार्म. बात यही पर खत्म नहीं होती हैं, आलम यह है कि स्कूल में शिक्षक ही पढ़ाने नहीं आते हैं.
करोड़ों रूपए खर्च फिर भी पटरी पर नहीं लौट रही व्यवस्था
सतपुड़ा की वादियों में बसे आदिवासी विकासखंड भगवानपुर के स्कूल बदहाल और लावारिस नजर आ रहे हैं. स्कूल के कैमरों में कहीं बकरियां विचरण कर रही हैं तो कहीं पर ग्रामीणों ने अपने रहने का ठिकाना निर्धारित बना रखा है. स्कूल के कमरे में बोर्ड तो है लेकिन वहां पढ़ाने वाला शिक्षक नहीं हैं. स्कूल के कमरे में लावारिस की तरह आलमारी खुली पड़ी हैं और पुस्तकों का कोई अता पता नहीं है.
नहीं बंटी किताब और यूनिफार्म
जब ईटीवी भारत ने ग्राउंड पर जाकर ढाबला गांव के स्कूली बच्चों से चर्चा की तो बच्चों ने बताया कि यहां ना तो किताब मिली है और ना ही यूनिफार्म मिली है. कुछ ऐसा ही वाक्या 25 किलोमीटर दूर ग्राम बेडीपुरा के स्कूल में मिला है. स्कूल की इमारत में एक आदिवासी परिवार ने उसे अपना बसेरा बना लिया है. जब आदिवासी परिवार से पूछा गया कि वह यहां पर कितने सालों से रह रहे हैं तो उन्होंने बताया कि वह तीन साल से वहां रह रहे हैं.
437 प्राइमरी तो वहीं 96 मिडिल स्कूल
खरगोन जिले के भगवानपुरा विकासखंड में 437 प्राइमरी और 96 मीडिल स्कूल हैं. जिनमें 25 हजार से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं. लेकिन बदहाल स्कूलों की हालत को देखकर लगता है कि आदिवासी बच्चे कैसे अपने सपनों को साकार करेंगे. जब इस मामले में बीआरसी भगवानपुरा और डीपीसी सर्व शिक्षा अभियान से चर्चा करने की कोशिश की गई तो वो मीटिंग का बहाना बनाकर कन्नी काटते नजर आए.