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वाह रे शिक्षा विभाग ! स्कूल की रौनक बढ़ा रहे भेड़-बकरी...ऐसी तस्वीर जिन्हें देख नहीं होता यकीन

खरगोन की सतपुड़ा की वादियों में शिक्षा व्यवस्था धराशाई हो चुकी है. ईटीवी भारत ने ग्राउंड जीरो पर स्कूलों का जायजा लिया . यहां स्कूल दिखाने के लिए इमारत तो बनी है लेकिन इन कमरों में कहीं बकरियां बंधी हैं तो कहीं लोगों ने उसे अपना बसेरा बना लिया है.

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Published : Nov 13, 2020, 7:32 PM IST

Updated : Nov 13, 2020, 8:36 PM IST

खरगोन। आपने सड़कों के किनारे किसी दीवार पर इन पंक्तियों को तो जरुर पढ़ा होगा. सर्व शिक्षा अभियान, स्कूल चले हम, सब पढ़ सब बढ़े इत्यादि. लेकिन आज भी मध्यप्रदेश के कई शहर, ग्राम और कस्बों की दुर्दशा बेहद ही निंदनीय है. कुछ ऐसे ही हाल खरगोन जिले के भगवानपुर विकासखंड मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर ढाबला गांव का है. यहां स्कूल के लिए भवन तो बने हैं लेकिन उस भवन के कमरों में बच्चों की क्लास नहीं लगती है. अति गरीब माहौल में जी रहे ग्रामीणों के बस में इतना भी नहीं है कि वह अपने बच्चों को किसी अच्छे स्कूल में दाखिला दिला सके. यहां अब भी बच्चों को न तो किताब दी गई हैं और न ही यूनिफार्म. बात यही पर खत्म नहीं होती हैं, आलम यह है कि स्कूल में शिक्षक ही पढ़ाने नहीं आते हैं.

खरगोन का बदहाल शिक्षा का मंदिर

करोड़ों रूपए खर्च फिर भी पटरी पर नहीं लौट रही व्यवस्था

सतपुड़ा की वादियों में बसे आदिवासी विकासखंड भगवानपुर के स्कूल बदहाल और लावारिस नजर आ रहे हैं. स्कूल के कैमरों में कहीं बकरियां विचरण कर रही हैं तो कहीं पर ग्रामीणों ने अपने रहने का ठिकाना निर्धारित बना रखा है. स्कूल के कमरे में बोर्ड तो है लेकिन वहां पढ़ाने वाला शिक्षक नहीं हैं. स्कूल के कमरे में लावारिस की तरह आलमारी खुली पड़ी हैं और पुस्तकों का कोई अता पता नहीं है.

Tied goats in school room
स्कूल के कमरे में बंधी बकरियां

नहीं बंटी किताब और यूनिफार्म

जब ईटीवी भारत ने ग्राउंड पर जाकर ढाबला गांव के स्कूली बच्चों से चर्चा की तो बच्चों ने बताया कि यहां ना तो किताब मिली है और ना ही यूनिफार्म मिली है. कुछ ऐसा ही वाक्या 25 किलोमीटर दूर ग्राम बेडीपुरा के स्कूल में मिला है. स्कूल की इमारत में एक आदिवासी परिवार ने उसे अपना बसेरा बना लिया है. जब आदिवासी परिवार से पूछा गया कि वह यहां पर कितने सालों से रह रहे हैं तो उन्होंने बताया कि वह तीन साल से वहां रह रहे हैं.

437 प्राइमरी तो वहीं 96 मिडिल स्कूल

खरगोन जिले के भगवानपुरा विकासखंड में 437 प्राइमरी और 96 मीडिल स्कूल हैं. जिनमें 25 हजार से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं. लेकिन बदहाल स्कूलों की हालत को देखकर लगता है कि आदिवासी बच्चे कैसे अपने सपनों को साकार करेंगे. जब इस मामले में बीआरसी भगवानपुरा और डीपीसी सर्व शिक्षा अभियान से चर्चा करने की कोशिश की गई तो वो मीटिंग का बहाना बनाकर कन्नी काटते नजर आए.

खरगोन। आपने सड़कों के किनारे किसी दीवार पर इन पंक्तियों को तो जरुर पढ़ा होगा. सर्व शिक्षा अभियान, स्कूल चले हम, सब पढ़ सब बढ़े इत्यादि. लेकिन आज भी मध्यप्रदेश के कई शहर, ग्राम और कस्बों की दुर्दशा बेहद ही निंदनीय है. कुछ ऐसे ही हाल खरगोन जिले के भगवानपुर विकासखंड मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर ढाबला गांव का है. यहां स्कूल के लिए भवन तो बने हैं लेकिन उस भवन के कमरों में बच्चों की क्लास नहीं लगती है. अति गरीब माहौल में जी रहे ग्रामीणों के बस में इतना भी नहीं है कि वह अपने बच्चों को किसी अच्छे स्कूल में दाखिला दिला सके. यहां अब भी बच्चों को न तो किताब दी गई हैं और न ही यूनिफार्म. बात यही पर खत्म नहीं होती हैं, आलम यह है कि स्कूल में शिक्षक ही पढ़ाने नहीं आते हैं.

खरगोन का बदहाल शिक्षा का मंदिर

करोड़ों रूपए खर्च फिर भी पटरी पर नहीं लौट रही व्यवस्था

सतपुड़ा की वादियों में बसे आदिवासी विकासखंड भगवानपुर के स्कूल बदहाल और लावारिस नजर आ रहे हैं. स्कूल के कैमरों में कहीं बकरियां विचरण कर रही हैं तो कहीं पर ग्रामीणों ने अपने रहने का ठिकाना निर्धारित बना रखा है. स्कूल के कमरे में बोर्ड तो है लेकिन वहां पढ़ाने वाला शिक्षक नहीं हैं. स्कूल के कमरे में लावारिस की तरह आलमारी खुली पड़ी हैं और पुस्तकों का कोई अता पता नहीं है.

Tied goats in school room
स्कूल के कमरे में बंधी बकरियां

नहीं बंटी किताब और यूनिफार्म

जब ईटीवी भारत ने ग्राउंड पर जाकर ढाबला गांव के स्कूली बच्चों से चर्चा की तो बच्चों ने बताया कि यहां ना तो किताब मिली है और ना ही यूनिफार्म मिली है. कुछ ऐसा ही वाक्या 25 किलोमीटर दूर ग्राम बेडीपुरा के स्कूल में मिला है. स्कूल की इमारत में एक आदिवासी परिवार ने उसे अपना बसेरा बना लिया है. जब आदिवासी परिवार से पूछा गया कि वह यहां पर कितने सालों से रह रहे हैं तो उन्होंने बताया कि वह तीन साल से वहां रह रहे हैं.

437 प्राइमरी तो वहीं 96 मिडिल स्कूल

खरगोन जिले के भगवानपुरा विकासखंड में 437 प्राइमरी और 96 मीडिल स्कूल हैं. जिनमें 25 हजार से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं. लेकिन बदहाल स्कूलों की हालत को देखकर लगता है कि आदिवासी बच्चे कैसे अपने सपनों को साकार करेंगे. जब इस मामले में बीआरसी भगवानपुरा और डीपीसी सर्व शिक्षा अभियान से चर्चा करने की कोशिश की गई तो वो मीटिंग का बहाना बनाकर कन्नी काटते नजर आए.

Last Updated : Nov 13, 2020, 8:36 PM IST
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