खंडवा। लॉकडाउन 3.0 जारी है और मजदूरों की पीड़ा भी जारी है. ये तस्वीरें उस देश की है जहां सबसे अधिक किसान और मजबूर हैं. और जो देश कृषि प्रधान देश कहलाता है, ये उस देश के मजदूर हैं. इस महामारी में इनका कोई कसूर नहीं है, लेकिन ये सजा सबसे ज्यादा भोग रहे हैं. अब जब लॉकडाउन में न तो नौकरी बची और न जेब में पैसे तो इन्हें मजबूरन अपनों का रास्ता दिखा, और पैदल ही निकल पड़े अपनी पुस्तैनी विरासत की ओर इस उम्मीद से की घर पहुंचकर शायद कुछ दिन या कुछ साल रोटी नसीब हो सके. लेकिन इनके लिए ये सफर इतना आसान कहां है ?
उम्मीदों का सफर कब होगा पूरा
दरअसल रोजना कमाकर अपना पेट भरने वाले ऐसे लाखों मजदूरों के सड़कों पर निकलने की तस्वीरें केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के दावों की हकीकत साफ तौर बयां कर रही हैं. फिलहल अब आपको बताते हैं मजदूरों के दर्द का सफर... महाराष्ट्र के मुंबई, नासिक,औरंगाबाद और गुजरात के सूरत शहरों में काम करने वाले करीब 90 मजदूर हजारों किलोमीटर का सफर पैदल तय करते हुए खंडवा पहुंचे. खंडवा एसडीएम कार्यालय के बाहर बैठे ये मजदूर प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं. कि उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य की सीमा तक छोड़ दिया जाए. लेकिन इन्हें अंधेरे की इस रोशनी में उम्मीदों के किरण की लकीरें नजर नहीं आ रही है.
सरकार के नियमों से जूझ रहे मजदूर
भीषण गर्मी और जानलेवा तापमान के बीच पैदल चलकर इन मजदूरों का गला सूख चुका है. यह मजदूर उत्तर प्रदेश के लखनऊ,इलाहाबाद, बनारस, कानपुर उन्नाव जिलों के हैं. कई किलोमीटर पैदल चलकर यह मजदूर खंडवा पहुंचे हैं. इस आस में कि खंडवा का प्रशासन उनकी इतनी मदद कर देगा कि उन्हें अपने राज्य उत्तर प्रदेश सीमा तक छोड़ दिया जाएगा. लेकिन खंडवा का प्रशासन इन्हें उत्तर प्रदेश की सीमा तक नही छोड़ सकता हैं. जिला प्रशासन की ओर से कहा गया है कि प्रदेश के अन्य जिलों के मजदूरों को उनके जिले तक पहुंचाने की व्यवस्था फिलहाल है लेकिन दूसरे राज्यों के मजदूरों को छोड़ने के लिए फिलहाल किसी तरह के निर्देश प्राप्त नहीं हुए हैं इसलिए इन मजदूरों को उनके राज्यों तक नहीं छोड़ सकते हैं.
दो वक्त की रोटी का संघर्ष
उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य के मजदूर महाराष्ट्र, गुजरात के अलग अलग शहरों में 2 वक्त की रोटी के लिए काम करते थे. अब जब देश में तीसरे चरण का लॉकडाउन लागू है. ऐसे में भूख इन मजदूरों को अपने घर लौटने पर मजबूर कर रही हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के एक फरमान से इन युवा मजदूरों को पैदल ही आगे का रास्ता भी तय करना पड़ेगा.
कलेक्टर के निर्देश
इधर खंडवा के अपर कलेक्टर नंदा भलावे कुशरे का कहना है कि 'अधिकारियों को अलग-अलग राज्यों में छोड़ने के लिए फिलहाल बातचीत चल रही है, और व्यवस्था होते ही मजदूरों को अपने-अपने राज्यों में छोड़ने का कार्य किया जाएगा. और अभी इन मजदूरों को उनकी राज्य की सीमा तक नहीं छोड़ सकते, यदि मजदूर चाहे तो हम उनके रहने और खाने की व्यवस्था यहीं पर कर सकते हैं'