खंडवा। जिले का प्रसिद्ध तुलजा भवानी का मंदिर खंडवा की धार्मिक एवं पुरातत्व धरोहर में से एक हैं. इस मंदिर में मां भवानी की स्वयंभू मूर्ति विराजित हैं. जो दिन के तीन पहर में अलग-अलग रूप धारण करती हैं. सुबह के समय बाल्यावस्था, दोपहर में युवावस्था, वहीं शाम के समय वृद्धावस्था में दिखाई देती हैं. भवानी माता मंदिर भक्तों की आस्था और विश्वास को अपने में समेटे हुए है. मंदिर के विषय में धार्मिक पौराणिक उल्लेख मिलते हैं, जिसमें इस मंदिर का महत्व बेहद प्रगाढ़ रूप से मिलता है. मंदिर के साथ जुड़ी मान्यताएं और किंवदंतियों श्रद्धालुओं में बहुत प्रचलित हैं. मां तुलजा भवानी के इस स्थान को रामायण काल के पावन समय से जोड़ा जाता है.
भगवान श्रीराम ने की थी अराधना
इस मंदिर से जुड़ी ऐसी मान्यता है कि 14 साल के वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ खांडव वन (वर्तमान खंडवा) आए थे. भगवान श्रीराम ने इस मंदिर में 9 दिनों तक मां तुलजा भवानी की आराधना की थी और मां से अस्त्र-शस्त्र का वरदान लेकर दक्षिण की ओर प्रस्थान किया था.
छत्रपति शिवाजी ने की थी मां की पूजा
महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने धनुर्धर अर्जुन के साथ यहीं पर अग्निदेव का अजीर्ण रोग का उपचार किया था और देवी की शक्ति से इंद्र को वर्षा करने से रोका था. वहीं मराठा नायक छत्रपति शिवाजी मां तुलजा भवानी को अपनी आराध्य देवी मानते थे. किवंदती है कि शिवाजी को मां भवानी ने शमशीर प्रदान की थी, उसी शमशीर के तेज से उन्होंने मुगलों के दांत खट्टे कर दिए थे.
ऐसे पड़ा था तुलजा भवानी नाम
कहा जाता है कि पहले भवानी माता को स्थानीय लोग नकटी माता कहते थे. वहीं धूनीवाले दादाजी ने इन्हें तुलजा भवानी नाम दिया था. तभी से इन्हें इस नाम से जाना जाता है. तुलजा भवानी की यह प्रतिमा जमीन से प्रकट हुई थी. तुलजा भवानी के दरबार में नवरात्रि के 9 दिनों में खंडवा और आसपास के क्षेत्रों से मां के भक्तों दर्शनों के लिए आते हैं. ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि के दिनों में यहां भक्तों के द्वारा जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वह पूरी होती है इसलिए इस स्थान की महिमा बेहद प्राचीन है. यहीं वजह है कि सालों से यहां मां के भक्त दर्शनों के लिए आ रहे हैं.
भव्य और आकर्षक हैं मंदिर
इस मंदिर का निर्माण बेहद ही आकर्षक रूप तरीके से किया गया है. इसकी भव्यता का एहसास मंदिर के गर्भ गृह में चांदी का उपयोग से होता हैं. दीवारों पर चांदी से नक्काशी की गई है, जो देखने में अनूठी प्रतीत होती है. देवी पर चांदी का छत्र सुशोभित किया गया है. वहीं माता के मुकुट को चांदी व मीनाकारी से सजाया गया है. मंदिर में होने वाले भक्ति पाठ व धूप दीप द्वारा मंदिर का वातावरण सुशोभित रहता है.