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जूडो में कई राष्ट्रीय पदक अपने नाम कर चुकी है दिव्यांग सुदामा चक्रवर्ती, पढ़ें उनके हौंसले की कहानी - सुदामा चक्रवर्ती ने अंधे जूडो में जीते कई मेडल

आज हम आपको दिल को छू लेने वाली खबर बताने जा रहे है. एक दिव्यांग बालिका मध्यप्रदेश के कटनी जिले की कलेक्टर बनेगी. (sudama chakraborty won many medals in blind judo) दोनों आंखो से नहीं दिखने के बाद भी ब्लाइंड जूडो में राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतियोगिताओं में मेडल जीतने वाली सुदामा चक्रवर्ती की कहानी सुनकर उनके हौसले को सलाम करने का जी चाहता है.

katni daughter sudama chakraborty
दिव्यांग सुदामा चक्रवर्ती
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Published : Dec 24, 2022, 11:10 PM IST

दिव्यांग सुदामा चक्रवर्ती

कटनी। अपने पिता के साथ ढीमरखेड़ा क्षेत्र दशरमन गांव की निवासी दृष्टिबाधित सुदामा चक्रवर्ती जब पहली बार स्कूल गई थी तो उसे स्कूल में सिर्फ इसलिए प्रवेश नहीं दिया गया था क्योंकि वह देख नहीं सकती तो पढ़ाई कैसे करेगी. उसकी रूचि को देखकर जबलपुर की एक संस्था ने उसे पढ़ाने का बीड़ा उठाया. फिर होना क्या था बालिका अपने हौंसलों के कारण जहां आज जूडो में कई राष्ट्रीय स्तर के पदक अपने नाम कर चुकी है तो अपने साथ अपने गांव व जिले का नाम भी रोशन कर रही है. बालिका के हौंसलों को देखकर जिला प्रशासन ने उसे बालिका दिवस पर एक दिन का कलेक्टर बनाकर भी सम्मानित किया था.

जीवन की कहानी: सुदामा के पिता सिकमी में जमीन लेकर खेती करते हैं और उसी से उनका परिवार का गुजारा चलता है. सुदामा तीन भाई व दो बहनों में सबसे छोटी है. समाजसेवी संस्था के सहयोग से सुदामा को दशरमन गांव के ही महात्मा गांधी शासकीय स्कूल में प्रवेश मिला. जिसमें संस्था की ओर से शिक्षक मुकेश ठाकुर उसे सप्ताह में दो दिन पढ़ाने आते थे. इसके अलावा बाकी समय में सुदामा के पिता छोटेलाल और बड़े भाई किताब पढ़कर सुनाते थे. उसी से वह याद करती थी. कक्षा दसवीं में उसे स्मार्ट फोन उपलब्ध कराया गया. जिसके माध्यम से वह आडियो आदि से पढ़ाई करने लगी. उसने महात्मा गांधी स्कूल से ही 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की. इसके अलावा इस साल ही उसने सिहोरा के श्यामसुंदर कालेज से बीए संकाय से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की है.

प्रशिक्षकों ने प्रतिभा को परखा: सुदामा की पढ़ाई कराने के साथ तरूण संस्था के सदस्य उसे वर्ष 2014 में भोपाल में जूडो के दस दिन के प्रशिक्षण में लेकर गए थे. जहां पर प्रशिक्षकों ने उसकी प्रतिभा को परखा और वहीं से उसकी ट्रेनिंग शुरू हो गई. वर्ष 2015 में सुदामा को गोवा में आयोजित राष्ट्रीय ब्लाइंड जूडाे प्रतियोगिता के लिए चुना गया और पहली बार में उसने अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया. उसके बाद से सुदामा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. वर्ष 2016 में लखनऊ में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कांस्य पदक,वर्ष 2017 में गुड़गांव में स्वर्ण पदक,वर्ष 2018 में दिल्ली में कांस्य, वर्ष 2019 में गोरखपुर में सिल्वर और उसके बाद वर्ष 2021 में लखनऊ में आयोजित राष्ट्रीय ब्लाइंड प्रतियोगिता में कांस्य पदक अपने नाम किया.

एक दिन के लिए बनीं कलेक्टर: सुदामा के दिव्यांगता को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने के हौंसलों को देखते हुए वर्ष 2022 में बालिका दिवस पर जिला प्रशासन ने उसे एक दिन का सांकेतिक कलेक्टर बनाकर सम्मानित किया. जिसमें वह तत्कालीन कलेक्टर प्रियंक मिश्रा के साथ दिनभर आयोजित कार्यक्रमों व बैठकों में भी शामिल हुई. एक दिन का कलेक्टर बनने के बाद उसने अब यह ठाना है कि वह आईएएस की तैयारी करेगी. सेवा में आकर अपने जैसे ही दिव्यांग भाई बहनों के लिए काम करेगी.

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शार्ट फिल्म का निर्माण: सुदामा के हौंसलों को देखते हुए जर्मनी की एक संस्था ने उसके जीवन और सफलता को लेकर शार्ट फिल्म का निर्माण भी प्रारंभ किया है. जिसके एक हिस्से की शूटिंग का कार्य पूरा किया जा चुका है. जर्मनी की संस्था फरवरी माह में एक बार फिर से दशरमन गांव पहुंचेगी और बाकी हिस्से की शूटिंग की जाएगी. सुदामा पर आधारित फिल्म को आजादी नाम दिया गया है. इसके अलावा सुदामा और जिले के अन्य दिव्यांगों ने दिशा दिव्यांग संगठन का भी एक साल पूर्व गठन किया है,जो दिव्यांगों को आगे लाने और शासन की योजनाओं को उनतक पहुंचाने का कार्य कर रही है.

दिव्यांग सुदामा चक्रवर्ती

कटनी। अपने पिता के साथ ढीमरखेड़ा क्षेत्र दशरमन गांव की निवासी दृष्टिबाधित सुदामा चक्रवर्ती जब पहली बार स्कूल गई थी तो उसे स्कूल में सिर्फ इसलिए प्रवेश नहीं दिया गया था क्योंकि वह देख नहीं सकती तो पढ़ाई कैसे करेगी. उसकी रूचि को देखकर जबलपुर की एक संस्था ने उसे पढ़ाने का बीड़ा उठाया. फिर होना क्या था बालिका अपने हौंसलों के कारण जहां आज जूडो में कई राष्ट्रीय स्तर के पदक अपने नाम कर चुकी है तो अपने साथ अपने गांव व जिले का नाम भी रोशन कर रही है. बालिका के हौंसलों को देखकर जिला प्रशासन ने उसे बालिका दिवस पर एक दिन का कलेक्टर बनाकर भी सम्मानित किया था.

जीवन की कहानी: सुदामा के पिता सिकमी में जमीन लेकर खेती करते हैं और उसी से उनका परिवार का गुजारा चलता है. सुदामा तीन भाई व दो बहनों में सबसे छोटी है. समाजसेवी संस्था के सहयोग से सुदामा को दशरमन गांव के ही महात्मा गांधी शासकीय स्कूल में प्रवेश मिला. जिसमें संस्था की ओर से शिक्षक मुकेश ठाकुर उसे सप्ताह में दो दिन पढ़ाने आते थे. इसके अलावा बाकी समय में सुदामा के पिता छोटेलाल और बड़े भाई किताब पढ़कर सुनाते थे. उसी से वह याद करती थी. कक्षा दसवीं में उसे स्मार्ट फोन उपलब्ध कराया गया. जिसके माध्यम से वह आडियो आदि से पढ़ाई करने लगी. उसने महात्मा गांधी स्कूल से ही 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की. इसके अलावा इस साल ही उसने सिहोरा के श्यामसुंदर कालेज से बीए संकाय से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की है.

प्रशिक्षकों ने प्रतिभा को परखा: सुदामा की पढ़ाई कराने के साथ तरूण संस्था के सदस्य उसे वर्ष 2014 में भोपाल में जूडो के दस दिन के प्रशिक्षण में लेकर गए थे. जहां पर प्रशिक्षकों ने उसकी प्रतिभा को परखा और वहीं से उसकी ट्रेनिंग शुरू हो गई. वर्ष 2015 में सुदामा को गोवा में आयोजित राष्ट्रीय ब्लाइंड जूडाे प्रतियोगिता के लिए चुना गया और पहली बार में उसने अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया. उसके बाद से सुदामा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. वर्ष 2016 में लखनऊ में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कांस्य पदक,वर्ष 2017 में गुड़गांव में स्वर्ण पदक,वर्ष 2018 में दिल्ली में कांस्य, वर्ष 2019 में गोरखपुर में सिल्वर और उसके बाद वर्ष 2021 में लखनऊ में आयोजित राष्ट्रीय ब्लाइंड प्रतियोगिता में कांस्य पदक अपने नाम किया.

एक दिन के लिए बनीं कलेक्टर: सुदामा के दिव्यांगता को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने के हौंसलों को देखते हुए वर्ष 2022 में बालिका दिवस पर जिला प्रशासन ने उसे एक दिन का सांकेतिक कलेक्टर बनाकर सम्मानित किया. जिसमें वह तत्कालीन कलेक्टर प्रियंक मिश्रा के साथ दिनभर आयोजित कार्यक्रमों व बैठकों में भी शामिल हुई. एक दिन का कलेक्टर बनने के बाद उसने अब यह ठाना है कि वह आईएएस की तैयारी करेगी. सेवा में आकर अपने जैसे ही दिव्यांग भाई बहनों के लिए काम करेगी.

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शार्ट फिल्म का निर्माण: सुदामा के हौंसलों को देखते हुए जर्मनी की एक संस्था ने उसके जीवन और सफलता को लेकर शार्ट फिल्म का निर्माण भी प्रारंभ किया है. जिसके एक हिस्से की शूटिंग का कार्य पूरा किया जा चुका है. जर्मनी की संस्था फरवरी माह में एक बार फिर से दशरमन गांव पहुंचेगी और बाकी हिस्से की शूटिंग की जाएगी. सुदामा पर आधारित फिल्म को आजादी नाम दिया गया है. इसके अलावा सुदामा और जिले के अन्य दिव्यांगों ने दिशा दिव्यांग संगठन का भी एक साल पूर्व गठन किया है,जो दिव्यांगों को आगे लाने और शासन की योजनाओं को उनतक पहुंचाने का कार्य कर रही है.

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