झाबुआ। गुजरात से पलायन कर सड़क मार्ग से लाखों श्रमिकों की घर वापसी जारी है. कोरोना वायरस को लेकर लॉकडाउन को चौथे चरण में भी प्रवासी मजदूरों का पलायन थमा नहीं है.
रोजगार संकट और खाने-पीने की हो रही दिक्कतों के चलते मजदूर ट्रकों में लदकर हजारों किलोमीटर का खतरनाक सफर तय करने को मजबूर हैं.
गुजरात के शहरों से ट्रकों में लदकर आ रहे मजदूर
जिस गुजरात मॉडल की तारीफ पीएम नरेंद्र मोदी देश-विदेशों में करने से नहीं थकते थे, आज उसी गुजरात मॉडल की कड़वी सच्चाई लाखों श्रमिक मध्य प्रदेश-गुजरात सीमा पर बता रहे हैं.
गुजरात को समृद्ध बनाने वाले इन श्रमिकों की समुचित घर वापसी की उचित व्यवस्था ना कर पाने के चलते गुजरात की रुपाणी सरकार से श्रमिक खफा हैं. गुजरात के राजकोट, मोरबी, कच्छ, जामनगर, सूरत, अहमदाबाद आदि शहरों से ट्रको में लदकर मध्य प्रदेश की सीमा तक हजारों रुपए खर्च कर पहुंचने वाले इन श्रमिकों को मध्य प्रदेश सरकार नि:शुल्क रूप से प्रदेश के विभिन्न जिलों तक पहुंचा रही है.
रूपाणी सरकार के दावे की खुली पोल
सवाल ये उठता है कि गुजरात की उजली तस्वीर के ये शिल्पकार श्रमिक क्या गैर प्रवासी गुजराती होने का दंश झेल रहे हैं. गुजरात को समृद्ध और विकासशील बनाने में इन मजदूरों ने अपना खून-पसीना बहा दिया. मगर गुजरात सरकार आज इन श्रमिकों से मुंह मोड़े हुए नजर आ रही है.
देश में हो रही दुर्घटनाओं के बावजूद इन श्रमिकों को भेड़-बकरियों की तरह ट्रकों में लादकर इनके शहर या जिले तक भिजवाया जा रहा है, वह भी भारी-भरकम किराया लेकर. ये तस्वीरें सरकार के उन तमाम दावों की पोल खोलती हैं, जो खुद को श्रमिक हितैषी कहने का ढोंग करती है.