झाबुआ। पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले से भी शिशु मृत्यु के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. पिछले एक साल में जिला अस्पताल में 160 से अधिक नवजात बच्चों की मौत हो चुकी है. ऐसे में सरकार के शिशु मृत्यु दर रोकने के दावे कहीं न कहीं खोखले दिखाई दे रहे हैं.
झाबुआ जिले में अधिकांश नवजात बच्चों की मौत का कारण कुपोषण और जरूरी स्वास्थ्य सुविधाएं न मिल पाना सबसे बड़ी वजह सामने आयी है. जिले में सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर और महिला विशेषज्ञों की कमी के चलते गर्भवती महिलाओं की जांच समय रहते नहीं हो पाती. जबकि संसाधनों की कमी भी एक बड़ा कारण है. यही वजह है कि कई बच्चों मौत पैदा होते ही हो जाती है. जिससे जिले में तेजी से शिशु मृत्यु दर का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है.
झाबुआ जिला में अशिक्षा और सुविधाओं के अभाव में अधिकांश माता-पिता जन्मजात विकृति वाले बच्चों का उपचार ही नहीं कराते. जिले में स्वास्थ्य सुविधाए ठीक न होना इसका सबसे बड़ा कारण है. शिशु रोग विशेषज्ञ एलएस चौहान का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र में शिशु मृत्यु दर ज्यादा है. जिसका सबसे बड़ा कारण यहां के लोगों में जागरुकता की कमी है.
बच्चों को नहीं मिल पाती पर्याप्त सुविधाएं
बच्चे के पैदा होते ही उसे पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिलती जिससे बच्चें बीमारी से ग्रसित होते है और उनकी मौत हो जाती है. डॉक्टर की बात पर अमल किया जाए तो यही कहा जा सकता है कि नवजात शिशुओं की मृत्यु दर कम करने के लिए ग्रामीण इलाकों में सरकार को स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार की जरूरत है.