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शिशु मृत्यु दर के मामले में झाबुआ से सामने आए चौकाने वाले आंकड़े, एक साल में 160 बच्चों की मौत

झाबुआ जिले में शिशु मृत्यु दर तेजी से बढ़ रही है. जिससे जिले के स्वास्थ्य महकमे पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं. पिछले एक साल में जिला अस्पताल में 160 से अधिक नवजात बच्चों की मौत हो चुकी है. जिसे रोकने में सरकार की योजनाएं फिलहाल नाकामयाब नजर आ रही है.

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झाबुआ
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Published : Jan 8, 2020, 1:17 PM IST

झाबुआ। पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले से भी शिशु मृत्यु के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. पिछले एक साल में जिला अस्पताल में 160 से अधिक नवजात बच्चों की मौत हो चुकी है. ऐसे में सरकार के शिशु मृत्यु दर रोकने के दावे कहीं न कहीं खोखले दिखाई दे रहे हैं.


झाबुआ जिले में अधिकांश नवजात बच्चों की मौत का कारण कुपोषण और जरूरी स्वास्थ्य सुविधाएं न मिल पाना सबसे बड़ी वजह सामने आयी है. जिले में सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर और महिला विशेषज्ञों की कमी के चलते गर्भवती महिलाओं की जांच समय रहते नहीं हो पाती. जबकि संसाधनों की कमी भी एक बड़ा कारण है. यही वजह है कि कई बच्चों मौत पैदा होते ही हो जाती है. जिससे जिले में तेजी से शिशु मृत्यु दर का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है.

झाबुआ में तेजी से बढ़ रहे शिशु मृत्यु दर के आंकड़े


झाबुआ जिला में अशिक्षा और सुविधाओं के अभाव में अधिकांश माता-पिता जन्मजात विकृति वाले बच्चों का उपचार ही नहीं कराते. जिले में स्वास्थ्य सुविधाए ठीक न होना इसका सबसे बड़ा कारण है. शिशु रोग विशेषज्ञ एलएस चौहान का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र में शिशु मृत्यु दर ज्यादा है. जिसका सबसे बड़ा कारण यहां के लोगों में जागरुकता की कमी है.


बच्चों को नहीं मिल पाती पर्याप्त सुविधाएं
बच्चे के पैदा होते ही उसे पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिलती जिससे बच्चें बीमारी से ग्रसित होते है और उनकी मौत हो जाती है. डॉक्टर की बात पर अमल किया जाए तो यही कहा जा सकता है कि नवजात शिशुओं की मृत्यु दर कम करने के लिए ग्रामीण इलाकों में सरकार को स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार की जरूरत है.

झाबुआ। पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले से भी शिशु मृत्यु के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. पिछले एक साल में जिला अस्पताल में 160 से अधिक नवजात बच्चों की मौत हो चुकी है. ऐसे में सरकार के शिशु मृत्यु दर रोकने के दावे कहीं न कहीं खोखले दिखाई दे रहे हैं.


झाबुआ जिले में अधिकांश नवजात बच्चों की मौत का कारण कुपोषण और जरूरी स्वास्थ्य सुविधाएं न मिल पाना सबसे बड़ी वजह सामने आयी है. जिले में सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर और महिला विशेषज्ञों की कमी के चलते गर्भवती महिलाओं की जांच समय रहते नहीं हो पाती. जबकि संसाधनों की कमी भी एक बड़ा कारण है. यही वजह है कि कई बच्चों मौत पैदा होते ही हो जाती है. जिससे जिले में तेजी से शिशु मृत्यु दर का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है.

झाबुआ में तेजी से बढ़ रहे शिशु मृत्यु दर के आंकड़े


झाबुआ जिला में अशिक्षा और सुविधाओं के अभाव में अधिकांश माता-पिता जन्मजात विकृति वाले बच्चों का उपचार ही नहीं कराते. जिले में स्वास्थ्य सुविधाए ठीक न होना इसका सबसे बड़ा कारण है. शिशु रोग विशेषज्ञ एलएस चौहान का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र में शिशु मृत्यु दर ज्यादा है. जिसका सबसे बड़ा कारण यहां के लोगों में जागरुकता की कमी है.


बच्चों को नहीं मिल पाती पर्याप्त सुविधाएं
बच्चे के पैदा होते ही उसे पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिलती जिससे बच्चें बीमारी से ग्रसित होते है और उनकी मौत हो जाती है. डॉक्टर की बात पर अमल किया जाए तो यही कहा जा सकता है कि नवजात शिशुओं की मृत्यु दर कम करने के लिए ग्रामीण इलाकों में सरकार को स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार की जरूरत है.

Intro:झाबुआ : राजस्थान, बिहार और गुजरात के बाद पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में भी शिशु मृत्यु दर का आंकड़ा चौंकाने वाला सामने आया है। बीते 1 साल में जिला अस्पताल के केवल नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) में 160 से अधिक नवजात बच्चों की मौत हो चुकी है , ऐसे में सरकार के शिशु मृत्यु दर रोकने के दावे कहीं न कहीं खोखले दिखाई दे रहे हैं ।


Body:पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में अधिकांश नवजात बच्चों की मौत का कारण कुपोषण और जरूरी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी होना सामने आया है। जिले में सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर और महिला विशेषज्ञों, ओर संसाधनों की कमी के चलते गर्भवती महिलाओं की जांच समय रहते नहीं हो पाती। जांच और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में प्रीमेच्योर डिलीवरी से जन्म लेने वाले नवजात बच्चों की मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है । बीते 2019 में जिला मुख्यालय के एसएनसीयू वार्ड में एक हजार के लगभग बच्चों को उपचार के लिए भर्ती कराया गया था उसमें से 160 बच्चों की मौत हो गई या नहीं यह आंकड़ा 15 फ़ीसदी के ऊपर रहा इस दौरान कई बच्चे गंभीर अवस्था में भी अन्यत्र हॉस्पिटल में रेफर किए गए।


Conclusion:आदिवासी बहुल झाबुआ जिला में अशिक्षा और सुविधाओं के अभाव में अधिकांश माता-पिता जन्मजात विकृति वाले बच्चों का उपचार ही नहीं कराते। जिले के सीमा से छूती गुजरात में स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से अच्छी स्थिति होने से कई लोग वह उपचार के लिए जाते हैं, ऐसे में घर और अन्यत्र होने वाली शिशु मृत्यु का आंकड़ा और भी ज्यादा रहता है। प्रदेश में नवजात शिशुओं की मृत्यु दर कम करने के लिए ग्रामीण इलाकों में सरकार को स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार की जरूरत है।
बाइट : एल एस चौहान , प्रभारी एसएनसीयू , शिशु रोग विशेषज्ञ
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