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खरीफ फसल की तैयारी: कोरोना संकट के बीच लाखों लोगों का पेट भरने खेतों में उतरे किसान

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Published : Jun 1, 2020, 10:06 AM IST

Updated : Jun 1, 2020, 9:09 PM IST

कोरोना महामारी के बीच देश के अन्नदाता पूरी तरह से अपनी जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं. इसका अंदाजा ये तस्वीर देखकर लगाया जा सकता है कि तपती दोपहरी और 43 डिग्री तापमान के बावजूद लाखों लोगों के पेट की चिंता करने वाला अन्नदाता खेतों में पसीना बहाते दिख रहा है.

Preparation of Kharif crop
खरीफ फसल की तैयारी

झाबुआ। पूरी दुनिया में कोरोना महामारी का दौर जारी है. लेकिन देश के अन्नदाता पूरी तरह से अपनी जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं. इसका अंदाजा ये तस्वीर देखकर लगाया जा सकता है कि तपती दोपहरी और 43 डिग्री तापमान के बावजूद लाखों लोगों के पेट की चिंता करने वाला अन्नदाता खेतों में पसीना बहाते दिख रहा है. कोरोना कहर के बीच किसान देश की जनता का पेट भरने के लिए खेतों में उतर गए हैं. महामारी की इस घड़ी में अन्नदाता खरीब फसल की तैयारी करने में लगा है.

खरीफ फसल की तैयारी

इस साल ज्यादा खेती का लक्ष्य

कोरोना संकट के बाद जिले में खरीफ की फसल का रकबा बढ़ा दिया है. इस बार एक लाख 89 हजार 000 हेक्टेयर में खेती की जाएगी. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा सके. झाबुआ में मक्का प्रमुख फसल है. इसके चलते जिले में 64 हजार 500 हेक्टेयर रकबे में मक्का की बुवाई की होगी जबकि 59 हजार हेक्टेयर में सोयाबीन की और 32 हजार हेक्टेयर में कपास की खेती करने का लक्ष्य रखा गया है.

तैयारी में जुटे किसान

वहीं इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए जिले के किसान अपने-अपने खेतों में जुताई के साथ देसी खाद डालकर भूमि को उपजाऊ बनाने में जुट गए हैं. ग्रामीण इलाकों में तालाबों से काली मिट्टी निकालकर पथरीली भूमि को उपजाऊ बनाने का काम भी जोर-शोर से शुरू हो गया है, ताकि उत्पादन को बढ़ाया जा सके.

किसानों को नहीं मिलता ज्यादा लाभ

खरीफ सीजन में 4 महीनों तक खेतों में काम करने के बाद किसानों को ज्यादा लाभ नहीं होता है. अगर इन किसानों की मानें तो 1 एकड़ में 7 से 10 क्विंटल सोयाबीन का उत्पादन अच्छी स्थिति में होता है, और इस उत्पादन में खर्चा काटकर किसानों को महज 7 से 10 हजार का मुनाफा ही होता है. और इसमें अगर किसानों को सही कीमत नहीं मिलती है तो इन्हें आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है.

किसानों की जरूरत

जिले में खरीफ की फसल के लिए 32 हजार क्विंटल बीज की जरूरत पड़ेगी. वहीं जिले में किसानों के लिए कृषि विभाग ने 7500 हजार मैट्रिक टन फर्टिलाइजर यूरिया ,डीएपी के साथ कॉन्प्लेक्स और पोटाश की जरूरत है ताकि किसानों को खरीफ की फसल में दिक्कत ना हो. इधर किसान संकटों ओर खतरों के बीच खेतों में खरीफ की फसल की तैयारी करता दिख रहा है ताकि कोरोना संकटकाल से देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अन्न पहुंचाया जा सके

महंगाई का डर और चिंता

लिहाजा वैश्विक महामारी के चलते इन दिनों जिले के बाजार पूरी तरह से नहीं खुल रहा है. जिसके चलते खेती किसानी करने वाले किसानों को कीटनाशक और बीज के भाव में महंगाई का अंदेशा सताने लगा है. इधर कृषि विभाग ने किसानों के लिए पर्याप्त खाद और बीज की उपलब्धता का दावा तो किया है लेकिन किसान की चिंता जायज है क्योंकि बीते 2 महीनों में किसान को काफी नुकसान उठाना पड़ा है.

झाबुआ। पूरी दुनिया में कोरोना महामारी का दौर जारी है. लेकिन देश के अन्नदाता पूरी तरह से अपनी जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं. इसका अंदाजा ये तस्वीर देखकर लगाया जा सकता है कि तपती दोपहरी और 43 डिग्री तापमान के बावजूद लाखों लोगों के पेट की चिंता करने वाला अन्नदाता खेतों में पसीना बहाते दिख रहा है. कोरोना कहर के बीच किसान देश की जनता का पेट भरने के लिए खेतों में उतर गए हैं. महामारी की इस घड़ी में अन्नदाता खरीब फसल की तैयारी करने में लगा है.

खरीफ फसल की तैयारी

इस साल ज्यादा खेती का लक्ष्य

कोरोना संकट के बाद जिले में खरीफ की फसल का रकबा बढ़ा दिया है. इस बार एक लाख 89 हजार 000 हेक्टेयर में खेती की जाएगी. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा सके. झाबुआ में मक्का प्रमुख फसल है. इसके चलते जिले में 64 हजार 500 हेक्टेयर रकबे में मक्का की बुवाई की होगी जबकि 59 हजार हेक्टेयर में सोयाबीन की और 32 हजार हेक्टेयर में कपास की खेती करने का लक्ष्य रखा गया है.

तैयारी में जुटे किसान

वहीं इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए जिले के किसान अपने-अपने खेतों में जुताई के साथ देसी खाद डालकर भूमि को उपजाऊ बनाने में जुट गए हैं. ग्रामीण इलाकों में तालाबों से काली मिट्टी निकालकर पथरीली भूमि को उपजाऊ बनाने का काम भी जोर-शोर से शुरू हो गया है, ताकि उत्पादन को बढ़ाया जा सके.

किसानों को नहीं मिलता ज्यादा लाभ

खरीफ सीजन में 4 महीनों तक खेतों में काम करने के बाद किसानों को ज्यादा लाभ नहीं होता है. अगर इन किसानों की मानें तो 1 एकड़ में 7 से 10 क्विंटल सोयाबीन का उत्पादन अच्छी स्थिति में होता है, और इस उत्पादन में खर्चा काटकर किसानों को महज 7 से 10 हजार का मुनाफा ही होता है. और इसमें अगर किसानों को सही कीमत नहीं मिलती है तो इन्हें आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है.

किसानों की जरूरत

जिले में खरीफ की फसल के लिए 32 हजार क्विंटल बीज की जरूरत पड़ेगी. वहीं जिले में किसानों के लिए कृषि विभाग ने 7500 हजार मैट्रिक टन फर्टिलाइजर यूरिया ,डीएपी के साथ कॉन्प्लेक्स और पोटाश की जरूरत है ताकि किसानों को खरीफ की फसल में दिक्कत ना हो. इधर किसान संकटों ओर खतरों के बीच खेतों में खरीफ की फसल की तैयारी करता दिख रहा है ताकि कोरोना संकटकाल से देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अन्न पहुंचाया जा सके

महंगाई का डर और चिंता

लिहाजा वैश्विक महामारी के चलते इन दिनों जिले के बाजार पूरी तरह से नहीं खुल रहा है. जिसके चलते खेती किसानी करने वाले किसानों को कीटनाशक और बीज के भाव में महंगाई का अंदेशा सताने लगा है. इधर कृषि विभाग ने किसानों के लिए पर्याप्त खाद और बीज की उपलब्धता का दावा तो किया है लेकिन किसान की चिंता जायज है क्योंकि बीते 2 महीनों में किसान को काफी नुकसान उठाना पड़ा है.

Last Updated : Jun 1, 2020, 9:09 PM IST
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