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MP Seat Scan Thandla: थांदला सीट में 7 बार जीती कांग्रेस, बीजेपी को मिली महज 2 बार जीत, जानिए क्या कहते हैं समीकरण

थांदला विधानसभा क्षेत्र मध्य प्रदेश राज्य के 230 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है और यह रतलाम लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का एक खंड है. यह सीट परंपरागत रूप से कांग्रेस या निर्दलीय के पास रही है. इस बार बीजेपी ने अपनी योजनाओं के जरिए पूरा दम लगा दिया है. ईटीवी भारत ने सीट का एनालिसिस किया तो कई रोचक तथ्य सामने आए.

MP Seat Scan Thandla
एमपी सीट स्कैन थांदला
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 28, 2023, 11:01 PM IST

झाबुआ। झाबुआ जिले की थांदला विधानसभा सीट कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है. कांग्रेस के लिए सीट बचाने तो बीजेपी को पाने की जिद है. अभी यहां कांग्रेस के वीर सिंह भूरिया विधायक हैं. उन्हाेंने 2018 में बीजेपी के कल सिंह भाबर को 31151 वोटों से हराया था. यह बड़ी जीत थी, इसलिए बीजेपी की पेशानी पर बल पड़े हुए हैं. यह निमाड़ मालवा से जुड़ी सीट होने के बाद भी हिंदुत्व की लहर से दूर है. 1957 में अस्तित्व में आई थांदला विधानसभा में अब तक 14 चुनाव हो चुके हैं. इन 14 में से 7 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. वहीं 3 बार थर्ड पार्टी, 2 बार निर्दलीय और 2 बार ही बीजेपी यहां से जीत सकी है.

थांदला सीट के जुड़े मुद्दे: इस सीट के मूल मुद्दे बेरोजगार, स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, लेकिन जाति और धर्म के आधार पर यहां जीत हार तय होती है. इस सीट पर कांतिलाल भूरिया परिवार का खासा असर है. यहां की जनता कृषि या मजदूरी पर निर्भर है. रोजगार के लिए पलायन करते हैं. औद्योगिक क्षेत्र के नाम पर मेघनगर में कुछ बड़े उद्योग लगे हुए हैं, लेकिन इससे पलायन नहीं रुक रहा है. कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी विकास नहीं होने दे रही है. जबकि बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस वोटर्स को बरगलाकर जीतती आई है. इस इलाके में सड़क, बिजली और पानी भी एक बड़ी समस्या है. आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है, लेकिन आदिवासियों के लिए कोई बड़ी विकास परियोजना नहीं है. थांदला विधानसभा में कुल मतदाताओं की संख्या 2 लाख 60 हजार 335 है. इसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 30 हजार 6 और महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 30 हजार 332 है. जबकि थर्ड जेंडर की संख्या 7 है.

MP Seat Scan Thandla
थांदला सीट के मतदाता

थांदला में पहले पांच चुनाव में निर्दलीय या थर्ड पार्टी के प्रत्याशियों का रहा वर्चस्व: वर्ष 1957 में सीट बनने के बाद पहले चुनाव में चार निर्दलीय और एक कांग्रेस प्रत्याशी मैदान में था. इनमें से निर्दलीय नाथूलाल ने 5562 वोट से यह चुनाव जीता. दूसरे नंबर पर कांग्रेस के जेताजी रहे. 1962 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से फिर पांच प्रत्याशी मैदान में उतरे. इसमें कांग्रेस के अलावा एसओसी, एसडब्ल्यूए, जेएस और पीएसपी के उम्मीदवार थे. जीत 7763 वोट से एसओसी के प्रताप सिंह की हुई और दूसरे नंबर पर कांग्रेस के बहादुर सिंह भाभर रहे. तीसरे चुनाव यानी वर्ष 1967 में चार केंडीडेट मैदान में थे. फिर से जीत थर्ड फ्रंट एसएसपी के प्रत्याशी रादु सिंह की हुई और उन्होंने कांग्रेस के नाथुलाल को 2280 वोट से हराया.

1972 में एसएसपी यानी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी/सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार ने फिर से जीत दर्ज की विधायक बने. उन्हें कुल 12948 वोट मिले और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार गब्बू उर्फ ​​गबरीलाल को कुल 593 वोटों से हराया. 1977 में थांदला विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस ने पहली बार कांतिलाल भूरिया को मैदान में उतारा, लेकिन इस बार जीत जनता पार्टी के उम्मीदवार मन्नाजी की हुई. उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया को 4906 वोटों से चुनाव हराया.

थांदला में शुरू हुआ कांग्रेस का समय, पांच बार लगातार जीत मिली: थांदला विधानसभा क्षेत्र में 1980 में कांग्रेस ने फिर से कांतिलाल भूरिया को उम्मीदवार बनाया. उन्होंने जनता पार्टी (सेक्युलर) प्रत्याशी चौ. चरण सिंह नानजीभाई को कुल 5704 वोटों से हराया. यहीं से कांग्रेस का खाता खुला. 1985 में कांग्रेस ने कांतिलाल नानू काे उम्मीदवार बनाया और उन्होंने इस बार लोकदल प्रत्याशी नानजी कालिया को 11041 वोटों से हराया. 1990 में कांग्रेस के उम्मीदवार फिर से कांतिलाल बने और इस बार फिर से जनता दल प्रत्याशी नानजी भाई को उन्होंने कुल 4107 वोटों से चुनाव हराया. 1993 में भी कांग्रेस के उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया जीते और विधायक बने. इस बार उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार दिलीप कटारा को 17666 वोटों से मात दी. 1998 में कांग्रेस ने यहां से रतन सिंह भाबर को टिकट दिया और वे भी जीतकर विधायक बने. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार दिलीप सिंह कटारा को 20115 वोटों से हराया.

MP Seat Scan Thandla
थांदला सीट का रिपोर्ट कार्ड

कुछ और सीट स्कैन यहां पढ़ें...

MP Seat Scan Thandla
साल 2018 का रिजल्ट

बीजेपी का खाता खुला, लेकिन जीत का सिलसिला नहीं बना पाई पार्टी: 2003 में थांदला विधानसभा क्षेत्र में पहली बार यानी 11 चुनाव के बाद बीजेपी का सूखापन इस सीट पर खत्म हुआ. इस बार यहां से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार कल सिंह चुनाव जीते और विधायक बने. उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार रतन सिंह भाबोर को 9548 वोटों से हराया, लेकिन बीजेपी इस जीत को आगे नहीं ले जा पाई. 2008 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार भूरिया वीरसिंह ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार कलसिंह फुलजी भाभर को 8102 वोटों से हराकर, यह सीट वापस कांग्रेस को दिला दी. 2013 में एक बड़ा उलटफेर हुआ. थांदला विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी की टिकट से चुनाव लड़ चुके कल सिंह भाबर का बीजेपी ने टिकट काट दिया, तो वे निर्दलीय उम्मीदवार बनकर मैदान में उतर गए. नतीजा कलसिंह भाबर जीते और विधायक बने. उन्होंने बीजेपी को तीसरे नंबर पर धकेल दिया. भाबर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार गेंदल डामोर 5116 वोटों से हराया. इस जीत के चलते बीजेपी को फिर से 2018 में थांदला विधानसभा क्षेत्र से कल सिंह भाबर को टिकट देना पड़ी, लेकिन इस बार फिर से कांग्रेस के उम्मीदवार भूरिया वीरसिंह जीते और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार कलसिंह भाबर को 31151 वोटों के बड़े अंतर से मात दी.

झाबुआ। झाबुआ जिले की थांदला विधानसभा सीट कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है. कांग्रेस के लिए सीट बचाने तो बीजेपी को पाने की जिद है. अभी यहां कांग्रेस के वीर सिंह भूरिया विधायक हैं. उन्हाेंने 2018 में बीजेपी के कल सिंह भाबर को 31151 वोटों से हराया था. यह बड़ी जीत थी, इसलिए बीजेपी की पेशानी पर बल पड़े हुए हैं. यह निमाड़ मालवा से जुड़ी सीट होने के बाद भी हिंदुत्व की लहर से दूर है. 1957 में अस्तित्व में आई थांदला विधानसभा में अब तक 14 चुनाव हो चुके हैं. इन 14 में से 7 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. वहीं 3 बार थर्ड पार्टी, 2 बार निर्दलीय और 2 बार ही बीजेपी यहां से जीत सकी है.

थांदला सीट के जुड़े मुद्दे: इस सीट के मूल मुद्दे बेरोजगार, स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, लेकिन जाति और धर्म के आधार पर यहां जीत हार तय होती है. इस सीट पर कांतिलाल भूरिया परिवार का खासा असर है. यहां की जनता कृषि या मजदूरी पर निर्भर है. रोजगार के लिए पलायन करते हैं. औद्योगिक क्षेत्र के नाम पर मेघनगर में कुछ बड़े उद्योग लगे हुए हैं, लेकिन इससे पलायन नहीं रुक रहा है. कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी विकास नहीं होने दे रही है. जबकि बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस वोटर्स को बरगलाकर जीतती आई है. इस इलाके में सड़क, बिजली और पानी भी एक बड़ी समस्या है. आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है, लेकिन आदिवासियों के लिए कोई बड़ी विकास परियोजना नहीं है. थांदला विधानसभा में कुल मतदाताओं की संख्या 2 लाख 60 हजार 335 है. इसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 30 हजार 6 और महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 30 हजार 332 है. जबकि थर्ड जेंडर की संख्या 7 है.

MP Seat Scan Thandla
थांदला सीट के मतदाता

थांदला में पहले पांच चुनाव में निर्दलीय या थर्ड पार्टी के प्रत्याशियों का रहा वर्चस्व: वर्ष 1957 में सीट बनने के बाद पहले चुनाव में चार निर्दलीय और एक कांग्रेस प्रत्याशी मैदान में था. इनमें से निर्दलीय नाथूलाल ने 5562 वोट से यह चुनाव जीता. दूसरे नंबर पर कांग्रेस के जेताजी रहे. 1962 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से फिर पांच प्रत्याशी मैदान में उतरे. इसमें कांग्रेस के अलावा एसओसी, एसडब्ल्यूए, जेएस और पीएसपी के उम्मीदवार थे. जीत 7763 वोट से एसओसी के प्रताप सिंह की हुई और दूसरे नंबर पर कांग्रेस के बहादुर सिंह भाभर रहे. तीसरे चुनाव यानी वर्ष 1967 में चार केंडीडेट मैदान में थे. फिर से जीत थर्ड फ्रंट एसएसपी के प्रत्याशी रादु सिंह की हुई और उन्होंने कांग्रेस के नाथुलाल को 2280 वोट से हराया.

1972 में एसएसपी यानी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी/सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार ने फिर से जीत दर्ज की विधायक बने. उन्हें कुल 12948 वोट मिले और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार गब्बू उर्फ ​​गबरीलाल को कुल 593 वोटों से हराया. 1977 में थांदला विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस ने पहली बार कांतिलाल भूरिया को मैदान में उतारा, लेकिन इस बार जीत जनता पार्टी के उम्मीदवार मन्नाजी की हुई. उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया को 4906 वोटों से चुनाव हराया.

थांदला में शुरू हुआ कांग्रेस का समय, पांच बार लगातार जीत मिली: थांदला विधानसभा क्षेत्र में 1980 में कांग्रेस ने फिर से कांतिलाल भूरिया को उम्मीदवार बनाया. उन्होंने जनता पार्टी (सेक्युलर) प्रत्याशी चौ. चरण सिंह नानजीभाई को कुल 5704 वोटों से हराया. यहीं से कांग्रेस का खाता खुला. 1985 में कांग्रेस ने कांतिलाल नानू काे उम्मीदवार बनाया और उन्होंने इस बार लोकदल प्रत्याशी नानजी कालिया को 11041 वोटों से हराया. 1990 में कांग्रेस के उम्मीदवार फिर से कांतिलाल बने और इस बार फिर से जनता दल प्रत्याशी नानजी भाई को उन्होंने कुल 4107 वोटों से चुनाव हराया. 1993 में भी कांग्रेस के उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया जीते और विधायक बने. इस बार उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार दिलीप कटारा को 17666 वोटों से मात दी. 1998 में कांग्रेस ने यहां से रतन सिंह भाबर को टिकट दिया और वे भी जीतकर विधायक बने. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार दिलीप सिंह कटारा को 20115 वोटों से हराया.

MP Seat Scan Thandla
थांदला सीट का रिपोर्ट कार्ड

कुछ और सीट स्कैन यहां पढ़ें...

MP Seat Scan Thandla
साल 2018 का रिजल्ट

बीजेपी का खाता खुला, लेकिन जीत का सिलसिला नहीं बना पाई पार्टी: 2003 में थांदला विधानसभा क्षेत्र में पहली बार यानी 11 चुनाव के बाद बीजेपी का सूखापन इस सीट पर खत्म हुआ. इस बार यहां से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार कल सिंह चुनाव जीते और विधायक बने. उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार रतन सिंह भाबोर को 9548 वोटों से हराया, लेकिन बीजेपी इस जीत को आगे नहीं ले जा पाई. 2008 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार भूरिया वीरसिंह ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार कलसिंह फुलजी भाभर को 8102 वोटों से हराकर, यह सीट वापस कांग्रेस को दिला दी. 2013 में एक बड़ा उलटफेर हुआ. थांदला विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी की टिकट से चुनाव लड़ चुके कल सिंह भाबर का बीजेपी ने टिकट काट दिया, तो वे निर्दलीय उम्मीदवार बनकर मैदान में उतर गए. नतीजा कलसिंह भाबर जीते और विधायक बने. उन्होंने बीजेपी को तीसरे नंबर पर धकेल दिया. भाबर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार गेंदल डामोर 5116 वोटों से हराया. इस जीत के चलते बीजेपी को फिर से 2018 में थांदला विधानसभा क्षेत्र से कल सिंह भाबर को टिकट देना पड़ी, लेकिन इस बार फिर से कांग्रेस के उम्मीदवार भूरिया वीरसिंह जीते और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार कलसिंह भाबर को 31151 वोटों के बड़े अंतर से मात दी.

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