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अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले आजाद आखिरी सांस तक रहे 'आजाद'

अंग्रेजो से देश को आजाद कराने में महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की भूमिका महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. ईटीवी भारत से खास बातचीत में साहित्यकार केके त्रिवेदी ने चंद्रशेखर आजाद की जीवनी के बारे में बताया.

चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा
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Published : Aug 15, 2019, 12:11 AM IST

झाबुआ। मां भारती को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए वीर सपूतों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया. सैकड़ों सपूतों के बलिदान के बाद 15 अगस्त 1947 को देश को खुली हवा में सांस लेने का मौका मिला था. उन्हीं में से एक क्रांतिकारी वीर थे चंद्रशेखर आजाद. जिनका महज नाम लेने से ही इतिहास गौरवान्वित हो जाता है. 6 जुलाई 1906 को झाबुआ में जन्मे चंद्रशेखर आजाद पूरे जीवन आजाद ही रहे.


साहित्यकार केके त्रिवेदी ने बताया कि चंद्रेशखर का बचपन भील मित्रों के साथ गुजरा था, उनके साथ रहकर तीरंदाजी और गोफन जैसे हथियार चलाने का प्रशिक्षण लिया था. जो आजादी की लड़ाई में खूब काम आया. आजाद के पिता अकाल पड़ने के चलते झाबुआ छोड़कर अलीराजपुर रियासत के भाबरा गांव में रहने लगे थे.


चंद्रशेखर का नाम कैसे पड़ा आजाद चंद्रशेखर
पढ़ाई के दौरान अमृतसर के जलियावाला बाग हत्याकांड ने आजाद को अंदर से झकझोर दिया था. उनके मन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बदले की ज्वाला भड़क उठी और उसी समय महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया था. तब आजाद अपने साथियों के साथ इस आंदोलन में कूद पड़े. इस दौरान उनकी गिरफ्तारी भी हुई. गिरफ्तारी के दौरान उन्हें 15 बेतों की सजा मिली. इसी सजा ने चंद्रशेखर को आजाद के नाम से मशहूर कर दिया.

ऐसा रहा चंद्रशेखर आजाद का जीवन


हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का हुआ गठन
15 बेतों की सजा ने आजाद को और बड़ा क्रांतिकारी बना दिया, वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये. अगस्त 1925 को काकोरी में उन्होंने पैसा व हथियार लेकर जा रही ट्रेन को अपने साथियों के साथ लूट लिया था और 1927 में राम प्रसाद बिस्मिल के साथ उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रांतिकारी पार्टियों को मिलाकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया.


जब जवाहर लाल नेहरू से मिले आजाद
सुखदेव, राजगुरु, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, लाला लाजपत राय जैसे महान क्रांतिकारियों का दल देश की आजादी के लिए अंग्रेजी हुकूमत से लड़ रहे थे. इसी दौरान लाला लाजपत राय की मौत अंग्रेजों की पिटाई से हो गई. जिसने आजाद को विचलित कर दिया. इसका बदला लेने के लिए उन्होंने दिल्ली की असेंबली में बम फेंककर आजादी की आवाज और बुलंद की. इस धमाके के आरोप में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गई. उसके पहले आजाद अपने साथियों की सजा कम कराने के लिए 27 फरवरी 1931 को जवाहरलाल नेहरू से मिले थे. लेकिन बात नहीं बनी.

साहित्यकार से ईटीवी भारत ने की खास बातचीत


आखिरी गोली से आजाद ने दी प्राणों की आहुति
नेहरू से मिलकर लौटते समय आजाद अपनी साइकिल से अल्फ्रेड पार्क चले गए. जहां किसी भेदिये ने अंग्रेजों को आजाद के होने की सूचना दे दी और पुलिस आजाद और उनके साथियों को घेरकर गोलियां बरसाने लगी, आजाद ने भी दिलेरी के साथ मुकाबला किया. इस दौरान जब एक गोली बची तो उससे आजाद ने खुद को उड़ा लिया. आजाद हमेशा एक शेर कहा करते थे 'दुश्मनों की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे.


पीएम मोदी ने भी किया नमन
पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश सरकार ने शहीद चंद्रशेखर आजाद के जन्म स्थल को एक संग्रहालय के रूप में विकसित किया है. जिसे आजाद की कुटिया के नाम से जाना जाता है, जहां 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नमन करने पहुंचे थे.

झाबुआ। मां भारती को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए वीर सपूतों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया. सैकड़ों सपूतों के बलिदान के बाद 15 अगस्त 1947 को देश को खुली हवा में सांस लेने का मौका मिला था. उन्हीं में से एक क्रांतिकारी वीर थे चंद्रशेखर आजाद. जिनका महज नाम लेने से ही इतिहास गौरवान्वित हो जाता है. 6 जुलाई 1906 को झाबुआ में जन्मे चंद्रशेखर आजाद पूरे जीवन आजाद ही रहे.


साहित्यकार केके त्रिवेदी ने बताया कि चंद्रेशखर का बचपन भील मित्रों के साथ गुजरा था, उनके साथ रहकर तीरंदाजी और गोफन जैसे हथियार चलाने का प्रशिक्षण लिया था. जो आजादी की लड़ाई में खूब काम आया. आजाद के पिता अकाल पड़ने के चलते झाबुआ छोड़कर अलीराजपुर रियासत के भाबरा गांव में रहने लगे थे.


चंद्रशेखर का नाम कैसे पड़ा आजाद चंद्रशेखर
पढ़ाई के दौरान अमृतसर के जलियावाला बाग हत्याकांड ने आजाद को अंदर से झकझोर दिया था. उनके मन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बदले की ज्वाला भड़क उठी और उसी समय महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया था. तब आजाद अपने साथियों के साथ इस आंदोलन में कूद पड़े. इस दौरान उनकी गिरफ्तारी भी हुई. गिरफ्तारी के दौरान उन्हें 15 बेतों की सजा मिली. इसी सजा ने चंद्रशेखर को आजाद के नाम से मशहूर कर दिया.

ऐसा रहा चंद्रशेखर आजाद का जीवन


हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का हुआ गठन
15 बेतों की सजा ने आजाद को और बड़ा क्रांतिकारी बना दिया, वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये. अगस्त 1925 को काकोरी में उन्होंने पैसा व हथियार लेकर जा रही ट्रेन को अपने साथियों के साथ लूट लिया था और 1927 में राम प्रसाद बिस्मिल के साथ उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रांतिकारी पार्टियों को मिलाकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया.


जब जवाहर लाल नेहरू से मिले आजाद
सुखदेव, राजगुरु, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, लाला लाजपत राय जैसे महान क्रांतिकारियों का दल देश की आजादी के लिए अंग्रेजी हुकूमत से लड़ रहे थे. इसी दौरान लाला लाजपत राय की मौत अंग्रेजों की पिटाई से हो गई. जिसने आजाद को विचलित कर दिया. इसका बदला लेने के लिए उन्होंने दिल्ली की असेंबली में बम फेंककर आजादी की आवाज और बुलंद की. इस धमाके के आरोप में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गई. उसके पहले आजाद अपने साथियों की सजा कम कराने के लिए 27 फरवरी 1931 को जवाहरलाल नेहरू से मिले थे. लेकिन बात नहीं बनी.

साहित्यकार से ईटीवी भारत ने की खास बातचीत


आखिरी गोली से आजाद ने दी प्राणों की आहुति
नेहरू से मिलकर लौटते समय आजाद अपनी साइकिल से अल्फ्रेड पार्क चले गए. जहां किसी भेदिये ने अंग्रेजों को आजाद के होने की सूचना दे दी और पुलिस आजाद और उनके साथियों को घेरकर गोलियां बरसाने लगी, आजाद ने भी दिलेरी के साथ मुकाबला किया. इस दौरान जब एक गोली बची तो उससे आजाद ने खुद को उड़ा लिया. आजाद हमेशा एक शेर कहा करते थे 'दुश्मनों की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे.


पीएम मोदी ने भी किया नमन
पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश सरकार ने शहीद चंद्रशेखर आजाद के जन्म स्थल को एक संग्रहालय के रूप में विकसित किया है. जिसे आजाद की कुटिया के नाम से जाना जाता है, जहां 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नमन करने पहुंचे थे.

Intro:झाबुआ: भारत मां को अंग्रेजों के जुल्म से आजाद कराने के लिए मुस्कुराते हुए चंद्रशेखर आजाद आदिवासी बहुल अविभाजित में झाबुआ(जो अब अलीराजपुर) में 6 जुलाई 1906 को जन्मे थे। अपने प्रारंभिक जीवनकाल में चंद्रशेखर आजाद ने भाभरा (जो अब चंद्रशेखर आजाद नगर) के भील मित्रों के साथ अपना बचपन गुजारा साथ उनके साथ रहकर तीरंदाजी और गोफन जैसे हथियार चलाना भी सीखे, जो देश की आज़ादी कि लड़ाई में आज़ाद के खूब काम आए । चंद्रशेखर आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी देश मे अकाल पड़ने के दौरान अपना गांव छोड़कर मध्य प्रदेश के अलीराजपुर रियासत के ग्राम भाबरा में रहने लगे और अलीराजपुर रियासत में काम करने लगे । पंडित सीताराम तिवारी के बुलावे पर उनकी पत्नी जगरानी देवी भी बाद में भाभरा अपने पति के साथ रहने लगी यहीं पर 6 जुलाई 1996 को चंद्रशेखर आजाद का जन्म एक झोपड़ी लूंगा मकान में हुआ था। जो देश की आजादी के 60 साल बाद भी जस की तस अवस्था में रहा।


Body:पंडित चंद्रशेखर से चंद्रशेखर आजाद की कहानी

पढ़ाई के दौरान अमृतसर के जलियांवाला बाग हत्याकांड ने अमर शहिद को चंद्रशेखर को भीतर से झकझोर कर रख दिया। चंद्रशेखर के मन में अंग्रेज हुकमरानो के प्रति बदले की ज्वाला भड़क चुकी थी । इस समयकाल में महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन शुरू किया जिसने इस भावना को और भड़का दिया । चंद्रशेखर तिवारी अपने तमाम छात्र साथियो के साथ इस आंदोलन में देश की आज़ादी के लिये खुद पड़े। इसी दौरान उनकी गिरफ्तारी भी हुई ,गिरफ्तारी के दौरान उन्हें 15 बेतो की सजा मिली। इस सजा ने पण्डित चंद्रशेखर का नाम चंद्रशेखर आजाद कर दिया। इस सजा के बाद आजाद पूरे भारत में क्रांतिकारी के रूप में प्रसिद्धि पाने लगे। आजाद ने देश की आजादी के लिए कई बार अंग्रेजी हुकूमत के दांत खट्टे कर किये ।
महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन के बंद किए जाने के बाद चंद्रशेखर आजाद की विचारधारा में बदलाव आया और वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। आजाद ने क्रांतिकारी बनने के बाद अगस्त 1925 में काकोरी कांड को अंजाम दिया ,जिसके तहत उन्होंने अंग्रेजों का धन ले जा रही रेलगाड़ी धन लूटकर देश में अंग्रेजी हुकूमत की जड़े खोदना शुरू कर दी । 1927 में बिस्मिल के साथ उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रांतिकारी पार्टी को मिलाकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया ।


Conclusion:सुखदेव ,राजगुरु ,भगतसिंह ,चंद्रशेखर आजाद , सुभाष चंद्रबोस, बिस्मिल ,अशफाक उल्ला खां ,लाला लाजपत राय जैसे महान क्रांतिकारियों का दल देश की आजादी के लिए अंग्रेजी हुकूमत से लड़ रहा था इस दौरान लाला लाजपत राय की मौत अंग्रेजों के डंडो से हुई जिसने क्रांतिकारियों को अंदर से तोड़ दिया। लालाजी के निधन ने चंद्रशेखर आजाद को विचलित कर दिया जिसके बाद आजाद ने लालाजी की मौत का बदला संडर्स को मार कर लिया ।इस दौरान उन्होंने दिल्ली की असेंबली में बम धमाका कर देश की आज़ादी की आवाज और बुलंद किया । दिल्ली असेंबली बम धमाके के आरोप में में भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव को फांसी हो गई , आजाद इससे काफी दुखी हुए। आजाद ने मृत्युदंड मिले अपने साथियों की सजा कम कराने के लिए 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद जवाहरलाल नेहरू से मिले, ओर आग्रह किया है कि वे गांधीजी से लॉर्ड इरविन से उनके साथियों को मिली सजा को कम करने के लिए दबाव बनाए डाले मगर नेहरु ने आजाद की बात नहीं मानी। जिस पर आजाद वहां अपनी साइकिल से अल्फ्रेड पार्क चले गए जहा किसी भेदिये ने अंग्रेज सरकार को यह सूचना दे दी। ब्रिटिश सरकार की पुलिस ने आजाद और उनके साथियों पर ताबड़तोड़ फायरिंग की यहां आजाद दिलहरी के साथ ब्रिटिश पुलिस लड़ते रहे । लड़ाई के दौरान आजाद की नजर अपनी माउजर में बची सिर्फ एक ही गोली पर गई । ''"आजाद हमेशा अपने क्रांतिकारी साथियों से एक शेर कहां करते थे ""दुश्मनों की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे,"" और अपनी ही गोली से आजाद ने अपना आत्म बलिदान भारत की स्वाधीनता के लिए न्योछावर कर दिया ।
देश के अमर क्रांतिकारी का झाबुआ की भूमि से जुड़ाव न सिर्फ झाबुआ के लोगों को गौरान्वित करता है बल्कि आज विश्व पटल पर शहीद चंद्रशेखर आजाद के चलते झाबुआ को पूरे विश्व में पहचाना जाता है । आज भी आजाद के जन्म स्थल को संजोए रखा है । पूर्ववर्ती मध्य प्रदेश सरकार ने शहीद चंद्रशेखर आजाद के जन्म स्थल को एक संग्रहालय के रूप में विकसित किया है, जिसे आजाद की कुटिया कहा जाता है। 2016 में आजाद की कुटिया पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नमन करने के पहुचे ओर बलिदान याद किया। अब भाबरा शहर को शहीद चंद्रशेखर आजाद का नाम दिया गया है शहीद चंद्रशेखर आजाद के जन्म और निर्माण दिवस पर भाबरा में हर साल सरकार मेले का आयोजन करती है ।
चंद्रशेखर आजाद का जन्म अविभाजित झाबुआ जिले में होने के कारण झाबुआ के पहले महाविद्यालय का नाम भी शहीद चंद्रशेखर आजाद के नाम पर रखा गया।
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