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MP के इस गांव में निमोनिया से पीड़ित मासूमों को गर्म सलाखों से दागा, अस्पताल की जगह तांत्रिक के पास ले गए

झाबुआ में बच्चे को निमोनिया होने पर उसे डॉक्टर की जगह माता-पिता तांत्रिक के पास ले जाते हैं और वहां बच्चे को उनसे दगवाते हैं. दागने की प्रथा बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो रही है, कई बच्चे इस हालात में अस्पताल में एडमिट हैं तो कई बच्चों की मौत हो गई है.

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Published : Apr 21, 2023, 2:00 PM IST

jhabua pneumonia affect child burn with heat rods
दागने की प्रथा जानलेवा
झाबुआ में दागना प्रथा बनी जानलेवा

झाबुआ। जिला अस्पताल के पीआईसीयू में निमोनिया पीड़ित 4 ऐसे बच्चे भर्ती हैं, जिनके सीने और पेट पर गर्म सलाखों से दागा गया है. इनमें से 2 बच्चों की हालत गंभीर है उन्हें ऑक्सीजन पर रखा गया है. आदिवासी बहुल जिले झाबुआ का यह पहला मामला नहीं है, हर महीने 20 से 25 ऐसे बच्चे यहां अस्पताल में भर्ती होते हैं, जिनके शरीर पर दागने के निशान होते हैं. आखिरकार माता-पिता इतने निर्दयी कैसे हो जाते हैं जो अपने नवजात के शरीर पर गर्म सलाखों से दाग लगवा लेते हैं. इस मामले को समझने के लिए हमने जिला अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ और PICU प्रभारी डॉक्टर संदीप चोपड़ा से बात की, उन्होंने हर पहलू को बारीकी से समझाया.

दागने की प्रथा जानलेवा: डॉ. संदीप चोपड़ा के मुताबिक हर महीने करीब 150 बच्चे हॉस्पिटल में भर्ती होते हैं, इसमें से 50 से 60 निमोनिया पीड़ित रहते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले निमोनिया पीड़ित अधिकांश बच्चों के शरीर पर दागने के निशान होते हैं. जब बच्चे को निमोनिया होता है तो संक्रमण की वजह से वह तेज-तेज सांस लेने लगता है. आम बोल चाल की भाषा में ग्रामीण इसे हापलिया कहते हैं. ऐसे में अंधविश्वास के चलते गांव के ही किसी तांत्रिक के पास लेकर चले जाते है, जो बच्चे के सीने और पेट पर लोहे की गर्म सलाखों से दाग लगा देता है. दर्द की वजह से बच्चे की सांस धीमी हो जाती है और माता पिता समझते हैं कि दागने से उनका बच्चा स्वस्थ्य हो गया. मेरी सबसे यही अपील है कि निमोनिया होने पर बच्चे को अस्पताल लेकर जाएं और उनका उचित उपचार कराएं.

गुजरात से सटे गांवों में दागने की प्रथा: डॉक्टर संदीप चोपड़ा के अनुसार अभी तक जितने भी केस आए हैं उसमें एक बात सामने आई है कि गुजरात से सटे गांवों में बच्चों को दागने का काम होता है. इसके अलावा कल्याणपुरा क्षेत्र और रानापुर के कुछ इलाके में भी इस तरह से किया जाता है. जिन बच्चों को दागा गया है उनकी रिपोर्ट तैयार कर बाल कल्याण समिति अध्यक्ष को भेजा जा रहा है साथ ही माता पिता को भी समझाइश दी गई है.

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बच्चे जिनका उपचार जिला अस्पताल में चल रहा:

  1. गांव पीलिया खदान के 7 माह के बच्चे अजय भाबर को 20 अप्रैल को जिला अस्पताल के पीआईसीयू में भर्ती किया गया था. उसके शरीर पर दागने के निशान थे, अजय को ऑक्सीजन पर रखा गया है, उसकी हालत गंभीर है.
  2. 2 माह की मेसरा निनामा निवासी हड़मतिया को निमोनिया हुआ था. घर वाले उसे तांत्रिक के पास ले गए, जहां उसके शरीर पर भी दागने के निशान डलवाए, जिसकी वजह से मेसरा की हालत गंभीर है उसे भी ऑक्सीजन पर रखा गया है.
  3. 6 माह के कृष्णा मांगीलाल निवासी समोई को भी 18 अप्रैल को भर्ती कराया गया था, उसके शरीर पर भी दागने के निशान बने हुए हैं.
  4. 2 माह के राजवीर पिता जामसिंह को 16 अप्रैल को पीआईसीयू में भर्ती किया गया था. उसके दागने के निशान हट गए हैं और हालत भी स्थिर है.

झाबुआ में दागना प्रथा बनी जानलेवा

झाबुआ। जिला अस्पताल के पीआईसीयू में निमोनिया पीड़ित 4 ऐसे बच्चे भर्ती हैं, जिनके सीने और पेट पर गर्म सलाखों से दागा गया है. इनमें से 2 बच्चों की हालत गंभीर है उन्हें ऑक्सीजन पर रखा गया है. आदिवासी बहुल जिले झाबुआ का यह पहला मामला नहीं है, हर महीने 20 से 25 ऐसे बच्चे यहां अस्पताल में भर्ती होते हैं, जिनके शरीर पर दागने के निशान होते हैं. आखिरकार माता-पिता इतने निर्दयी कैसे हो जाते हैं जो अपने नवजात के शरीर पर गर्म सलाखों से दाग लगवा लेते हैं. इस मामले को समझने के लिए हमने जिला अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ और PICU प्रभारी डॉक्टर संदीप चोपड़ा से बात की, उन्होंने हर पहलू को बारीकी से समझाया.

दागने की प्रथा जानलेवा: डॉ. संदीप चोपड़ा के मुताबिक हर महीने करीब 150 बच्चे हॉस्पिटल में भर्ती होते हैं, इसमें से 50 से 60 निमोनिया पीड़ित रहते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले निमोनिया पीड़ित अधिकांश बच्चों के शरीर पर दागने के निशान होते हैं. जब बच्चे को निमोनिया होता है तो संक्रमण की वजह से वह तेज-तेज सांस लेने लगता है. आम बोल चाल की भाषा में ग्रामीण इसे हापलिया कहते हैं. ऐसे में अंधविश्वास के चलते गांव के ही किसी तांत्रिक के पास लेकर चले जाते है, जो बच्चे के सीने और पेट पर लोहे की गर्म सलाखों से दाग लगा देता है. दर्द की वजह से बच्चे की सांस धीमी हो जाती है और माता पिता समझते हैं कि दागने से उनका बच्चा स्वस्थ्य हो गया. मेरी सबसे यही अपील है कि निमोनिया होने पर बच्चे को अस्पताल लेकर जाएं और उनका उचित उपचार कराएं.

गुजरात से सटे गांवों में दागने की प्रथा: डॉक्टर संदीप चोपड़ा के अनुसार अभी तक जितने भी केस आए हैं उसमें एक बात सामने आई है कि गुजरात से सटे गांवों में बच्चों को दागने का काम होता है. इसके अलावा कल्याणपुरा क्षेत्र और रानापुर के कुछ इलाके में भी इस तरह से किया जाता है. जिन बच्चों को दागा गया है उनकी रिपोर्ट तैयार कर बाल कल्याण समिति अध्यक्ष को भेजा जा रहा है साथ ही माता पिता को भी समझाइश दी गई है.

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बच्चे जिनका उपचार जिला अस्पताल में चल रहा:

  1. गांव पीलिया खदान के 7 माह के बच्चे अजय भाबर को 20 अप्रैल को जिला अस्पताल के पीआईसीयू में भर्ती किया गया था. उसके शरीर पर दागने के निशान थे, अजय को ऑक्सीजन पर रखा गया है, उसकी हालत गंभीर है.
  2. 2 माह की मेसरा निनामा निवासी हड़मतिया को निमोनिया हुआ था. घर वाले उसे तांत्रिक के पास ले गए, जहां उसके शरीर पर भी दागने के निशान डलवाए, जिसकी वजह से मेसरा की हालत गंभीर है उसे भी ऑक्सीजन पर रखा गया है.
  3. 6 माह के कृष्णा मांगीलाल निवासी समोई को भी 18 अप्रैल को भर्ती कराया गया था, उसके शरीर पर भी दागने के निशान बने हुए हैं.
  4. 2 माह के राजवीर पिता जामसिंह को 16 अप्रैल को पीआईसीयू में भर्ती किया गया था. उसके दागने के निशान हट गए हैं और हालत भी स्थिर है.
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