झाबुआ। प्रख्यात उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद द्वारा स्थापित प्रसिद्ध हंस पत्रिका के अप्रैल माह के अंक का सम्पादन आईएएस अफसर कैलाश वानखेड़े करेंगे. झाबुआ में संयुक्त कलेक्टर रहते हुए यहां के परिदृश्य पर उनकी लिखी कहानी जस्ट डांस के लिए उन्हें राजेंद्र यादव हंस कथा सम्मान-2017 से सम्मानित भी किया जा चुका है. वर्तमान में वह अपर आयुक्त नगरीय प्रशासन विभाग में तैनात हैं. दरअसल, इस साल राजेंद्र यादव हंस कथा सम्मान से सम्मानित चार रचनाकारों को हंस पत्रिका के संपादन के लिए चुना गया है. इनमे से एक आईएएस अफसर कैलाश वानखेड़े हैं. वे सामाजिक विद्रूपता और मनुष्य जीवन की आपधापी पर कहानियां लिखने के लिए जाने जाते हैं. ऐसे में हंस पत्रिका के अप्रैल माह का अंक काफी रोचक होने की उम्मीद की जा रही है.
दो कहानी संग्रह का प्रकाशन : आईएएस अफसर कैलाश वानखेड़े के दो कहानी संग्रह सत्यापन (आधार प्रकाशन) और सुलगन (राजकुमार प्रकाशन) का पूर्व में प्रकाशन हो चुका है. इन दोनों कहानी संग्रह में आदिवासी अंचल झाबुआ के साथ ही मालवा-निमाड़ के जन जीवन की पृष्ठभूमि पर लिखी उनकी कहानियां शामिल हैं. आईएएस अफसर कैलाश वानखेड़े द्वारा आदिवासी अंचल झाबुआ की पृष्ठभूमि पर लिखी जस्ट डांस कहानी पूरी तरह सामाजिक ताने-बाने में बुनी हुई है. ये कहानी फाइनेंस कंपनी में काम करने वाले एक आदिवासी युवक के इर्दगिर्द घूमती है. युवक की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है लेकिन सरकारी सर्वे में उसे गरीब नहीं माना जाता. किराये के कमरे में रहता है इसलिए आवासहीन नहीं है. उधर, उसका दोस्त उसे कहता है तेरी प्रेमिका तुझे अमीर नहीं मानती क्योंकि तू घर का खर्च ठीक ढंग से नहीं चला सकता.
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क्या है हंस पत्रिका का इतिहास : इन सबके बीच वह आदिवासी युवक जिंदगी जीने की कशमकश करता है. इसी ऊहापोह के बीच वह वह जस्ट डांस नामक टीवी सीरियल देखता है और उसे लगता है कि ये वाकई हकीकत है, जबकि वह रियलिटी शो रहता है, जिसकी पटकथा पहले से लिखी होती है. वानखेड़े ने कहानी लिखने के दौरान लोकपाल बिल को लेकर हुए आंदोलन और सामाजिक, आर्थिक व जातिगत जनगणना की घटनाओं को भी शामिल किया है और उससे युवक को जोड़ा है. बता दें कि हंस पत्रिका उपन्यास सम्राट प्रेमचंद द्वारा स्थापित और सम्पादित पत्रिका है. मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु के बाद हंस का सम्पादन उनके पुत्र कथाकार अमृतराय ने किया. अनेक वर्षों तक हंस का प्रकाशन बंद रहा. बाद में मुंशी प्रेमचंद की जन्मतिथि (31 जुलाई) को ही सन् 1986 से अक्षर प्रकाशन ने कथाकार राजेन्द्र यादव के सम्पादन में इस पत्रिका को एक कथा मासिक के रूप में फिर से प्रकाशित करना प्रारम्भ किया.