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रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट पर कायम है भील जाति का वर्चस्व, इस बार भी बीजेपी-कांग्रेस ने लगाया दांव - कांतिलाल भूरिया

मध्यप्रदेश की आरक्षित रतलाम लोकसभा सीट पर पिछले कई चुनावों से भील जाति का प्रत्याशी चुनाव जीतता आ रहा है. जमुना देवी, भागीरथ सिंह डामोर, दिलीप सिंह भूरिया और कांतिलाल भूरिया जैसे दिग्गज नेता भील जाति से ही आते हैं, जो इस सीट से सांसद चुने जाते रहे हैं. इस बार भी बीजेपी-कांग्रेस ने इस सीट पर भील जाति के समीकरणों को ध्यान में रखते हुए प्रत्याशियों का चयन किया है.

रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट
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Published : Apr 19, 2019, 9:58 PM IST

झाबुआ। सूबे की आरक्षित रतलाम लोकसभा सीट पर पिछले कई चुनावों से भील जाति का प्रत्याशी चुनाव जीतता आ रहा है. इस बार भी बीजेपी-कांग्रेस ने इस सीट पर भील जाति के समीकरणों को ध्यान में रखते हुए प्रत्याशियों का चयन किया है. रतलाम-झाबुआ संसदीय क्षेत्र में आने वाली आठों विधानसभा सीटों पर इस जाति का वर्चस्व माना जाता है.

रतलाम संसदीय सीट पर 1951 से लेकर 2015 के उपचुनाव तक भील जाति का प्रत्याशी ही जीतता रहा है. लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटें सैलाना, झाबुआ, थांदला, पेटलावद, जोबट और अलीराजपुर आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. जिनमें भील जाति के मतदाता सर्वाधिक हैं. पूरे संसदीय क्षेत्र में इस जाति का वर्चस्व होने के चलते सियासी पार्टियां इसी जाति के प्रत्याशी पर दांव लगाती है. वर्तमान में रतलाम झाबुआ सीट से सांसद और कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया इसी जाति से आते है. जबकि बीजेपी प्रत्याशी जीएस डामोर भी भील जाति का ही प्रतिनिधित्व करते हैं.

रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर भील जाति का वर्चस्व

वरिष्ठ पत्रकार चंद्रभान सिंह भदोरिया कहते हैं कि जमुना देवी, भागीरथ सिंह डामोर, दिलीप सिंह भूरिया और कांतिलाल भूरिया जैसे दिग्गज नेता भील जाति से ही आते हैं, जो इस सीट से सांसद चुने जाते रहे हैं. रतलाम सिटी विधानसभा सीट को छोड़कर सभी सीटों पर सामान्य और ओबीसी वर्ग के मतदाताओं के वोटरों की संख्या 10 फ़ीसदी के आसपास है. पूरे रतलाम संसदीय क्षेत्र में लगभग 25 फ़ीसदी वोटर सामान्य और ओबीसी जाती का प्रतिनिधित्व करते है जो किसी भी दल के उम्मीदवार की हार और जीत की भूमिका में अहम किरदार निभाते है, लिहाजा दोनों ही दल के नेता इन्हें मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते.

झाबुआ। सूबे की आरक्षित रतलाम लोकसभा सीट पर पिछले कई चुनावों से भील जाति का प्रत्याशी चुनाव जीतता आ रहा है. इस बार भी बीजेपी-कांग्रेस ने इस सीट पर भील जाति के समीकरणों को ध्यान में रखते हुए प्रत्याशियों का चयन किया है. रतलाम-झाबुआ संसदीय क्षेत्र में आने वाली आठों विधानसभा सीटों पर इस जाति का वर्चस्व माना जाता है.

रतलाम संसदीय सीट पर 1951 से लेकर 2015 के उपचुनाव तक भील जाति का प्रत्याशी ही जीतता रहा है. लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटें सैलाना, झाबुआ, थांदला, पेटलावद, जोबट और अलीराजपुर आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. जिनमें भील जाति के मतदाता सर्वाधिक हैं. पूरे संसदीय क्षेत्र में इस जाति का वर्चस्व होने के चलते सियासी पार्टियां इसी जाति के प्रत्याशी पर दांव लगाती है. वर्तमान में रतलाम झाबुआ सीट से सांसद और कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया इसी जाति से आते है. जबकि बीजेपी प्रत्याशी जीएस डामोर भी भील जाति का ही प्रतिनिधित्व करते हैं.

रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर भील जाति का वर्चस्व

वरिष्ठ पत्रकार चंद्रभान सिंह भदोरिया कहते हैं कि जमुना देवी, भागीरथ सिंह डामोर, दिलीप सिंह भूरिया और कांतिलाल भूरिया जैसे दिग्गज नेता भील जाति से ही आते हैं, जो इस सीट से सांसद चुने जाते रहे हैं. रतलाम सिटी विधानसभा सीट को छोड़कर सभी सीटों पर सामान्य और ओबीसी वर्ग के मतदाताओं के वोटरों की संख्या 10 फ़ीसदी के आसपास है. पूरे रतलाम संसदीय क्षेत्र में लगभग 25 फ़ीसदी वोटर सामान्य और ओबीसी जाती का प्रतिनिधित्व करते है जो किसी भी दल के उम्मीदवार की हार और जीत की भूमिका में अहम किरदार निभाते है, लिहाजा दोनों ही दल के नेता इन्हें मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते.

Intro:झाबुआ : अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रतलाम संसदीय सीट पर 1951 से लेकर 2015 के उपचुनाव तक भील जाति का कब्जा रहा । इस संसदीय सीट को पहले झाबुआ संसदीय सीट के नाम से जाना जाता था ,बाद में झाबुआ -रतलाम संसदीय सीट हुआ और अब इसे रतलाम संसदीय सीट के नाम से जाना जाता है। इस संसदीय क्षेत्र में 8 विधानसभाये आती है जिसमे से 7 विधानसभा आदिवासी बहुल है, जबकि केवल रतलाम शहर एकमात्र विधानसभा सीट है जहां सामान्य जाति ओर ओबीसी मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। सैलाना ,झाबुआ ,थांदला, पेटलावद ,जोबट ,अलीराजपुर विधानसभाओं में अनुसूचित जाति या यूं कहें की आदिवासी जाति की आबादी सर्वाधिक है। आदिवासी समुदाय में तीन प्रमुख जातिया शामिल है जिन्हें भील, भिलाला और पटलिया कहते है । इन तीन जातियों में भील जाति का वर्चस्व हमेशा से ही इस सीट पर देखा गया है ओर कायम है ।


Body:संसदीय क्षेत्र की अलीराजपुर और जोबट विधानसभा में भिलाला मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है जबकि थांदला, पेटलावद झाबुआ ,सैलाना और रतलाम ग्रामीण विधानसभाओं में भील बहुल मतदाताओं की संख्या 85 फ़ीसदी से ज्यादा है। थांदला और पेटलावद विधानसभा में पटेलिया समाज भी आता है मगर उनका वोट प्रतिशत बमुश्किल 3 से 4 फ़ीसदी से ज्यादा नहीं है। पूरे संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की सर्वाधिक संख्या होने के चलते यहां से चुने जाने वाले सांसद भी इसी जाति से आते हैं। कांग्रेस ने 1980 के बाद से भील जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा जबकि भाजपा ने कई बार भीलाला जाति को भी मौका दिया ।


Conclusion:1951 से लेकर 2015 के उपचुनाव तक केवल दो बार भिलाला जाति के सांसद इस संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए । सन 1962 में कुक्षी से झाबुआ आकर जमुना देवी और बाद में अलीराजपुर से भागीरथ भंवर 1971 से 1980 तक सांसद रहे । संसदीय क्षेत्र से पहली बार 1951 में अमर सिंह डामोर और आखरी बार उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया सांसद निर्वाचित हुए , इस बीच सुर सिंह डामोर ,दिलीप सिंह भूरिया ने भी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया जो भील जाति से आते रहे । इसलिए संसदीय क्षेत्र को भील बहुल संसदीय क्षेत्र भी कहा जाता है। रतलाम शहर विधानसभा को छोड़ दें तो बाकी संसदीय क्षेत्र में सामान्य और ओबीसी वर्ग के मतदाताओं की वोटर संख्या 10 फ़ीसदी के आसपास है, जिसमें मुस्लिम ,ब्राह्मण, राजपूत, पाटीदार जैसी तमाम जातियां शामिल है । पूरे रतलाम संसदीय क्षेत्र में लगभग 25 फ़ीसदी वोटर सामान्य और ओबीसी जाती का प्रतिनिधित्व करते है जो किसी भी दल के उम्मीदवार की हार और जीत की भूमिका में अहम किरदार निभाते है, लिहाजा दोनों ही दल के नेता इन्हें मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते ।
बाइट, चंद्रभान सिंह भदोरिया, वरिष्ठ पत्रकार
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