जबलपुर। मध्यप्रदेश में लगातार पानी की किल्लत सामने आ रही है. सबसे ज्यादा परेशानी आदिवासी इलाकों में हो रही है. आदिवासी क्षेत्र के लोग जल संकट से गुजर रहे हैं. इन इलाकों में किसी न किसी कारण से सरकार की योजनाएं नहीं पहुंच पाईं और कुछ पहुंची भी तो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई. जबलपुर के सिहोरा विधानसभा के रामहेपुरा गांव का ऐसा ही कुछ हाल है. ग्रामीणों को रोजाना पीने के पानी के लिए जद्दोजहद करना पड़ता है.
हर मौसम में पानी के लिए होती है जद्दोजहद
ऐसा नहीं है की सिहोरा विधानसभा के रामहेपुरा गांव में ऐसी समस्या मात्र गर्मी के दिनों में होती है, यहां जलसंकट हर मौसम में बना रहता है. कई सालों से ये आदिवासी सैकड़ों फीट गहरी घाटी में नीचे उतरकर पानी का जुगाड़ कर रहे हैं. गांव की महिलाएं, बच्चे सभी 40 डिग्री के तापमान में यह कई सालों से सैकड़ों फीट गहरी घाटी में जाकर झरने का पानी भरते हैं.
नेता नहीं दे रहे ध्यान
धीरु बाई बताती हैं कि दो बूंद पानी के लिए रोजाना यहां के ग्रामीण जान खतरे में डालते हैं और फिर पीने के लिए पानी भर कर लाते हैं. बच्चे हो या बुजुर्ग सभी को झरने से पानी भरना पड़ता है. बड़े-बड़े पत्थरों के बीच नंगे पैर चलने को यह आदिवासी ग्रामीण कई सालों से मजबूर हैं. स्थानीय नेताओं से इन आदिवासियों ने घाट बनाने की भी मांग की पर नतीजा कुछ नहीं निकला.
झरने के पानी को मोड़ा कुंए में
लगातार खतरों से जूझ रहे ग्रामीणों को जब सरकार और प्रशासन की ओर से कोई सहायता मिलती नजर नहीं आई तो उन्होंने झरने के पानी को एक कुएं में मोड़ दिया, जिससे इनकी समस्या का निजात तो नहीं हुआ पर काफी हद तक राहत मिल गई. अब इसी झरने से पानी आता है और कुएं में इकट्ठा हो जाती है, जहां से ग्रामीण रस्सी के सहारे पानी खींच लाते हैं.
गांव के मनोहर बैरागी ने किया यह खुलासा
36 वर्षीय मनोहर बैरागी बताते हैं कि बचपन से जवानी आ गई पर पानी की समस्या खत्म नहीं हुई. नेताओंं का गांव में सिर्फ चुनाव के समय ही जमावाड़ा लगता है. कई साल पहले पंचायत ने एक हैंडपंप लगवाया था पर आज उससे पानी नहीं हवा निकल रही है. ग्रामीणों ने कुछ समय लगातार विरोध किया तो आनन फानन में सरपंच ने पानी की टंकी स्थापित करवाई और बोरिंग भी करवाया पर ना ही बोरिंग से पानी निकला और ना ही ग्रामीणों के लिए पानी की समस्या का निदान हुआ.
एसडीएम का ग्रामीणों के प्रति गैर-जिम्मेदाराना रवैया
पानी की समस्या को लेकर आदिवासी कई सालों से परेशान हैं. जाहिर है इन्होंने अपनी समस्या जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों तक से बताई होगी पर न ही नेताओं ने इन आदिवासियों की बात मानी और ना ही अधिकारियों ने इनके लिए पानी की व्यवस्था करवाई. पूरे मामले में कुंडम एसडीएम विमलेश सिंह का जबाव भी गैर जिम्मेदाराना रहा, जिन्होंने पहले तो ऐसी समस्या के होने से ही इनकार किया फिर आश्वासन दिया की जल्द वहां की समस्या दूर होगी.
बहरहाल, अब आदिवासियों ने भी राजनीतिक लोगों के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का मन बना लिया है. ग्रामीणों का साफ तौर पर कहना है कि अब वोट उसी को मिलेगा जो कि हमारी पानी की समस्या का निदान करेगा. अब देखना यह होगा कि आदिवासियों का यह दाव उनकी सुविधा के लिए कितना कारगार साबित होता है.