जबलपुर। आपने विषकन्या की कहानी तो पढ़ी होगी, लेकिन आज हम आपको विषकन्या बावड़ी की कहानी बताने जा रहे हैं, जो आज से दो सौ साल पहले एक रानी का जहर उतारने की वजह से जानी जाती है. सैकड़ों साल पुरानी इस बावड़ी को नया जीवन देने का काम एक पहलवान द्वारा किया जा रहा है, ताकि शहर की धरोहर बची रहे.
बावड़ी के संरक्षक किशोरी लाल लोधी ने बताया कि, करीब 200 साल पहले जबलपुर के गढ़ा इलाके में एक राजा हुआ करते थे, जिनकी शादी सागर की एक कन्या से हुई थी, लेकिन सागर से जिस कन्या को वो विवाह करके जबलपुर लाए, उसे एक गंभीर रोग था. तत्कालीन वैद्य ने बताया कि, महिला एक विषकन्या है और इसके शरीर में विष हैं और यदि राजा इसके संपर्क में आते हैं, तो उनकी भी मृत्यु हो जाएगी. इसलिए रानी के शरीर के विष को खत्म करना होगा. तब लोगों ने बताया कि, यही पास में दो झरने हैं, जिनके पानी से बीमारियां ठीक होती हैं. जिसके बाद राजा ने के झरने पास एक बावड़ी का निर्माण करवाया.
उस बावड़ी को तब शिवनाथ की बावड़ी कहते हैं. ऐसा कहा जाता था कि, उसका पानी दवा का काम करता है, रानी को पहले औषधियों का लेप लगाया जाता था. उसके बाद वे इस बावड़ी में नहाती थीं. जिसके बाद धीरे-धीरे रानी के शरीर का सारा जहर उतर गया. तब से इस बावड़ी को विषकन्या बावड़ी नाम से पहचाना जाने लगा. उस समय यहां पर पानी के दूसरे स्रोत नहीं थे, इसलिए लोग रोजमर्रा के काम के लिए इसी पानी का इस्तेमाल करते थे. समय बदलता गया नई तकनीक आई, पहले हैंडपंप, फिर सरकारी पानी की सप्लाई ने इस ऐतिहासिक बावड़ी को वीरान कर दिया.
पहलवान ने सुधारी बावड़ी की तस्वीर
शहर के मेडिकल रोड बाजनामठ मोड़ पर स्थित विषकन्या बावड़ी के ठीक बाजू में है एक अखाड़ा है. इसी अखाड़े के पहलवान किशोरी सिंह लोधी ने बावड़ी को पुनर्जीवित करने के लिए अपने स्तर पर कोशिशें शुरू की. किशोरी की कोशिशों के बाद आज यह ऐतिहासिक स्थल दर्शनीय स्थल भी बन गया है. हालांकि अब लोग बावड़ी के पानी का इस्तेमाल नहीं करते हैं.