जबलपुर। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश में शराब ठेकेदारों की याचिका खारिज कर दी है. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अब्दुल नाजीर और जस्टिस बीआर गवई की युगलपीठ ने हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश को ठहराया है. सुप्रीम कोर्ट ने शराब ठेकेदारों को जमा सुरक्षा कोष सहित अन्य मुद्दों पर सरकार के समक्ष प्रतिनिधित्व करने की स्वतंत्रता दी है.
प्रदेश शराब ठेकेदारों ने वर्ष 2020-2021 के लिए टेंडर प्रक्रिया को अपनाते हुए मप्र उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. याचिकाओं में कहा गया था कि शराब की दुकानों की टेंडर प्रक्रिया पिछले फरवरी में जारी की गई थी. जब राज्य सरकार ने टेंडर आमंत्रित करके वर्ष 2020-2021 के लिए शराब के ठेके दिए, तब परिस्थितियां अलग थी. याचिकाकर्ता ने टेंडर के माध्यम से ठेके लिए थे, जिसके अनुसार ठेके की अवधि 1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2021 तक थी, इसके अलावा वे 14 घंटे तक दुकानें संचालित कर सकते थे.
जब उन्हें टेंडर आवंटित किया गया था उस दौरान उन्होंने निर्धारित राशि भी जमा कर दी थी. जिसके बाद कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन लागू कर दिया गया. जहां अब कई क्षेत्रों में दुकान कुछ घंटों के लिए संचालित की जा रही है, लेकिन पूरी लाइसेंस फीस वसूली जा रही है. ठेकेदारों ने याचिका दायर करते हुए सरकार से जमा की गई राशि को लौटाकर फिर से टेंडर कराने या फिर राशि घटाने की मांग की थी. ठेकेदारों द्वारा यह भी दावा किया गया था कि उन्होंने अनुबंध पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, इसलिए वे लाइसेंस की परिभाषा के दायरे में नहीं आते हैं.
सरकार का कहना है कि एक बार टेंडर स्वीकार हो जाने के बाद ठेकेदार पीछे नहीं हट सकते, क्योंकि वे लाईसेन्सी की परिभाषा में आ जाते हैं. साथ ही, नई नीति के तहत, सरकार को किसी भी समय टेंडर की शर्तों को बदलने का अधिकार है. 135 पन्नों के फैसले में, युगलपीठ ने कहा कि आबकारी नीति में कोई प्रावधान नहीं है कि प्राकृतिक आपदा के समय ठेकेदारों को कोई राहत दी जाए. सरकार ने अनुबंध प्रक्रिया में नियमों का पूरी तरह से पालन किया है. प्रावधानों के तहत, ठेकेदार राहत के लिए सरकार को आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं.