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दिव्यांगों के लिए है मसीहा है ये युवा, 25 हजार लोगों को राकेश दे चुका है 'नई जिंदगी' - 25 वर्ष, 25 हजार लोग

जबलपुर के राकेश कुमार पिछले 25 साल से लाचार और बेबसों के लिए मसीहा बना हुआ है. राकेश कुमार अभी तक 25 हजार लोगों के लिए कृत्रिम पैर बना चुके है.

राकेश के हुनर से लोगों को मिल रही नई जिंदगी
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Published : May 3, 2019, 11:55 PM IST

जबलपुर। राकेश कुमार उन लोगों के लिए मसीहा है, जो किसी हादसे में अपने पैर गंवा चुके हैं. उसके पास ऐसा हुनर है जो इंसान ही नहीं जानवरों को भी अपने पैरों पर खड़ा कर देता है. राकेश ने इस हुनर को आज नहीं बल्कि 25 साल पहले सीख लिया था.राकेश के हुनर का नतीजा ही रहा कि अपने पैर गंवाकर बेबस हो चुके करीब 25 हजार लोग दोबारा अपने पैर पर चल फिर पा रहे हैं. खास बात यह है कि दिव्यांगों को यह सेवा नि:शुल्क दी जाती.

राकेश के हुनर से लोगों को मिल रही नई जिंदगी
दरअसल, राकेश सिंह कृत्रिम पैर बनाता है. धार्मिक संस्थाएं सामान्य तौर पर धार्मिक आयोजन ही करती हैं. लेकिन राकेश एक ऐसे धार्मिक संस्था से जुड़ा हैं, जो आर्टिफिशियल लिंब्स बनाने में राकेश की पूरी मदद करती है. राकेश अब तक लगभग 25 हजार लोगों को चलने फिरने लायक बना चुके हैं. राकेश ने ना सिर्फ इंसानों को बल्कि कई जानवरों के भी पैर बनाए हैं. राकेश ने यह हुनर आज से लगभग 25 साल पहले राजस्थान में सीखा था. इसके बाद इस पर प्रयोग करते हुए कई नए नए प्रयोग किए और लाचार ओं की मदद की.

राकेश ने कृत्रिम पैर बनाकर कई जिंदगियों में रंग भरे है. उन्ही में से एक है जबलपुर के घमापुर इलाके में रहने वाले लखनलाल. लखन का एक एक्सीडेंट में पैर कट गया. पैर कटने के बाद लखन की जिंदगी लाचार और बेबस हो गई. लखन मजदूरी करता था. लेकिन समाज विकलांग लोगों को काम नहीं देता है. ऐसी स्थिति में लखन के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया. तब राकेश ने इन्हें एक पैर बना कर दिया. उसी पैर को लगाकर लखन न सिर्फ चल फिर पाते हैं. बल्कि रोजी रोटी भी कमा रहे लखन फल बेचने का काम करता हैं. लखन का कहना है कि यदि राकेश ने उनकी मदद नहीं की होती तो वे भीख मांगते नजर आते. लखन कहते हैं कि राकेश की वजह से उन्हें दूसरा जीवन मिला है.

जबलपुर। राकेश कुमार उन लोगों के लिए मसीहा है, जो किसी हादसे में अपने पैर गंवा चुके हैं. उसके पास ऐसा हुनर है जो इंसान ही नहीं जानवरों को भी अपने पैरों पर खड़ा कर देता है. राकेश ने इस हुनर को आज नहीं बल्कि 25 साल पहले सीख लिया था.राकेश के हुनर का नतीजा ही रहा कि अपने पैर गंवाकर बेबस हो चुके करीब 25 हजार लोग दोबारा अपने पैर पर चल फिर पा रहे हैं. खास बात यह है कि दिव्यांगों को यह सेवा नि:शुल्क दी जाती.

राकेश के हुनर से लोगों को मिल रही नई जिंदगी
दरअसल, राकेश सिंह कृत्रिम पैर बनाता है. धार्मिक संस्थाएं सामान्य तौर पर धार्मिक आयोजन ही करती हैं. लेकिन राकेश एक ऐसे धार्मिक संस्था से जुड़ा हैं, जो आर्टिफिशियल लिंब्स बनाने में राकेश की पूरी मदद करती है. राकेश अब तक लगभग 25 हजार लोगों को चलने फिरने लायक बना चुके हैं. राकेश ने ना सिर्फ इंसानों को बल्कि कई जानवरों के भी पैर बनाए हैं. राकेश ने यह हुनर आज से लगभग 25 साल पहले राजस्थान में सीखा था. इसके बाद इस पर प्रयोग करते हुए कई नए नए प्रयोग किए और लाचार ओं की मदद की.

राकेश ने कृत्रिम पैर बनाकर कई जिंदगियों में रंग भरे है. उन्ही में से एक है जबलपुर के घमापुर इलाके में रहने वाले लखनलाल. लखन का एक एक्सीडेंट में पैर कट गया. पैर कटने के बाद लखन की जिंदगी लाचार और बेबस हो गई. लखन मजदूरी करता था. लेकिन समाज विकलांग लोगों को काम नहीं देता है. ऐसी स्थिति में लखन के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया. तब राकेश ने इन्हें एक पैर बना कर दिया. उसी पैर को लगाकर लखन न सिर्फ चल फिर पाते हैं. बल्कि रोजी रोटी भी कमा रहे लखन फल बेचने का काम करता हैं. लखन का कहना है कि यदि राकेश ने उनकी मदद नहीं की होती तो वे भीख मांगते नजर आते. लखन कहते हैं कि राकेश की वजह से उन्हें दूसरा जीवन मिला है.

Intro:मदद का पैर जबलपुर के राकेश ने 25000 विकलांगों को दिए कृत्रिम हाथ और पैर लाचार और बेबस लोगों का सहारा बना राकेश


Body:जबलपुर भागदौड़ भरी जिंदगी में सड़कों पर रोज ही एक्सीडेंट हो रहे हैं और इन एक्सीडेंट की वजह से कई लोग अपनी जिंदगी गवा देते हैं वहीं कई लोगों को विकलांगता में जीवन जीना पड़ता है सबसे ज्यादा संकट तो उन लोगों के सामने खड़ा होता है जिनके हाथ या पैर कट जाते हैं ऐसे लोगों के लिए जबलपुर के राकेश कुमार याद आते हैं और राकेश की वजह से उनका जीवन दोबारा सामान्य हो पाता है

लखन लाल की कहानी
जबलपुर के घमापुर इलाके में रहने वाले लखन लाल का एक एक्सीडेंट में पैर कट गया पैर कटने के बाद लखन की जिंदगी लाचार और बेबस हो गई लखन मजदूरी करते थे लेकिन समाज विकलांग लोगों को काम नहीं देता है ऐसी स्थिति में लखन के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया तब राकेश ने इन्हें एक पैर बना कर दिया उसी पैर को लगाकर लखन न सिर्फ चल कर पाते हैं बल्कि रोजी रोटी भी कमा रहे लखन फलों को बेचने का काम करते हैं लखन का कहना है कि यदि राकेश ने उनकी मदद नहीं की होती तो वे भीख मांगते नजर आते लखन कहते हैं कि राकेश की वजह से उन्हें दूसरा जीवन मिला है

अब तक 25000 लोगों को भी मदद
धार्मिक संस्थाएं सामान्य तौर पर धार्मिक आयोजन ही करती हैं और इन धार्मिक आयोजनों से समाज को कोई फायदा नहीं होता लेकिन राकेश एक धार्मिक संस्था से जुड़े हुए हैं और यह धार्मिक संस्था यह आर्टिफिशियल लिंब्स बनाने में राकेश की पूरी मदद करती है राकेश अब तक लगभग 25000 लोगों को चलने फिरने लायक बना चुके हैं राकेश ने ना सिर्फ इंसानों को बल्कि कई लोग जानवरों के भी पैर बनाए हैं राकेश ने यह हुनर आज से लगभग 25 साल पहले राजस्थान में सीखा था इसके बाद इस पर प्रयोग करते हुए कई नए नए प्रयोग किए और लाचार ओं की मदद की


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