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लोकायुक्त और EOW के खिलाफ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर, शिकायतों को सार्वजनिक करने की मांग - Demand to make complaints public

लोकायुक्त और EOW की शिकायतें सार्वजनिक करवाने की मांग को लेकर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है.

हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर
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Published : Nov 20, 2019, 8:10 AM IST

जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में मंगलवार को एक जनहित याचिका लगाई गई, जिसमें लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) की शिकायतों को सार्वजनिक करने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार दर्ज शिकायतों और FIR को 24 घंटे बाद सार्वजनिक किया जाना चाहिए, लेकिन लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा EOW ऐसा नहीं कर रही हैं.

शिवराज सरकार ने किया था आरटीआई से बाहर

इन दोनों जांच एजेंसियों के खिलाफ जबलपुर के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका पेश की. याचिका की सुनवाई के दौरान लोकायुक्त की ओर से वकील ने तर्क रखा कि मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू को आरटीआई से बाहर कर दिया था. इसके बाद से ही यह नियम लागू है. नियम के तहत कोई भी शख्स इन दोनों संस्थाओं के कागजात जन सूचना अधिकार कानून के तहत नहीं ले सकता था. अब जब तक राज्य सरकार कानून नहीं बदलती है, तब तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं कर पाएंगे.

हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर

शिवराज सिंह पर आ सकता है संकट!

दरअसल अगर लोकायुक्त और EOW के दरवाजे आरटीआई के लिए खुल गए, तो सबसे बड़ा संकट पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सामने ही खड़ा होगा, क्योंकि डंपर घोटाले के बाद उन्होंने ही लोकायुक्त को आरटीआई से बाहर करवा दिया था और अपने व्यक्तिगत हित के लिए इस कानून को परिवर्तित कर दिया था. यदि लोकायुक्त आरटीआई के दायरे में आ गई, तो इस बात की जानकारी सार्वजनिक हो जाएगी कि आखिर शिवराज सिंह को डंपर मामले में क्लीन चिट कैसे मिली थी.

फिर सुर्खियों में आ सकता है डंपर घोटाला

याचिकाकर्ता ने कोर्ट के सामने अपनी बात रखने के बाद जवाब देने के लिए समय मांगा है और एक नई याचिका भी इस मामले में दायर करने की तैयारी की जा रही है, क्योंकि पूरे देश में केवल सेना और गोपनीय मुद्दे ही आरटीआई से बाहर हैं. बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने खुद के दरवाजे भी राइट टू इंफॉर्मेशन के लिए खोल दिए हैं,
ऐसे में मध्यप्रदेश अकेला अलग से कानून कैसे बना सकता है. हालांकि याचिकाकर्ता किसी और मुद्दे को लेकर लोकायुक्त को आरटीआई के दायरे में लाने की कोशिश में है, लेकिन इसका सियासी परिणाम डंपर घोटाले को दोबारा चर्चा में ला सकता है.

जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में मंगलवार को एक जनहित याचिका लगाई गई, जिसमें लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) की शिकायतों को सार्वजनिक करने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार दर्ज शिकायतों और FIR को 24 घंटे बाद सार्वजनिक किया जाना चाहिए, लेकिन लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा EOW ऐसा नहीं कर रही हैं.

शिवराज सरकार ने किया था आरटीआई से बाहर

इन दोनों जांच एजेंसियों के खिलाफ जबलपुर के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका पेश की. याचिका की सुनवाई के दौरान लोकायुक्त की ओर से वकील ने तर्क रखा कि मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू को आरटीआई से बाहर कर दिया था. इसके बाद से ही यह नियम लागू है. नियम के तहत कोई भी शख्स इन दोनों संस्थाओं के कागजात जन सूचना अधिकार कानून के तहत नहीं ले सकता था. अब जब तक राज्य सरकार कानून नहीं बदलती है, तब तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं कर पाएंगे.

हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर

शिवराज सिंह पर आ सकता है संकट!

दरअसल अगर लोकायुक्त और EOW के दरवाजे आरटीआई के लिए खुल गए, तो सबसे बड़ा संकट पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सामने ही खड़ा होगा, क्योंकि डंपर घोटाले के बाद उन्होंने ही लोकायुक्त को आरटीआई से बाहर करवा दिया था और अपने व्यक्तिगत हित के लिए इस कानून को परिवर्तित कर दिया था. यदि लोकायुक्त आरटीआई के दायरे में आ गई, तो इस बात की जानकारी सार्वजनिक हो जाएगी कि आखिर शिवराज सिंह को डंपर मामले में क्लीन चिट कैसे मिली थी.

फिर सुर्खियों में आ सकता है डंपर घोटाला

याचिकाकर्ता ने कोर्ट के सामने अपनी बात रखने के बाद जवाब देने के लिए समय मांगा है और एक नई याचिका भी इस मामले में दायर करने की तैयारी की जा रही है, क्योंकि पूरे देश में केवल सेना और गोपनीय मुद्दे ही आरटीआई से बाहर हैं. बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने खुद के दरवाजे भी राइट टू इंफॉर्मेशन के लिए खोल दिए हैं,
ऐसे में मध्यप्रदेश अकेला अलग से कानून कैसे बना सकता है. हालांकि याचिकाकर्ता किसी और मुद्दे को लेकर लोकायुक्त को आरटीआई के दायरे में लाने की कोशिश में है, लेकिन इसका सियासी परिणाम डंपर घोटाले को दोबारा चर्चा में ला सकता है.

Intro:लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू की शिकायतें सार्वजनिक करवाने की मांग को लेकर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर पूरे देश में अकेले मध्य प्रदेश मैं ही लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू मैं लागू नहीं होता सूचना अधिकार कानून इसे बदलने के लिए दायर की गई याचिका


Body:जबलपुर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में आज एक याचिका लगाई गई जिसमें लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा की शिकायतों को सार्वजनिक करने की मांग रखी गई थी सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद कोई भी एफ आई आर जो थाने में दर्ज की गई है वह 24 घंटे के बाद सार्वजनिक की जा सकती है लेकिन लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं कर रही है इन दोनों जांच एजेंसियों के खिलाफ जबलपुर के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका पेश की याचिका की सुनवाई के दौरान लोकायुक्त की ओर से वकील ने तर्क रखा की मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू को आरटीआई से बाहर कर दिया था और कोई भी शख्स इन दोनों संस्थाओं के कागजात जन सूचना अधिकार कानून के तहत नहीं ले सकता था और इसके बाद से ही यह नियम लागू है इसलिए जब तक राज्य सरकार कानून नहीं बदलती है तब तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं कर पाएंगे

दरअसल यदि लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा कि दरवाजे आरटीआई के लिए खुल गए तो सबसे बड़ा संकट पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सामने ही खड़ा होगा क्योंकि डंफर घोटाले के बाद उन्होंने ही लोकायुक्त को आरटीआई से बाहर करवा दिया था और अपनी व्यक्तिगत हित के लिए इस कानून को परिवर्तित कर दिया था यदि लोकायुक्त आरटीआई के दायरे में आ गया तो इस बात की जानकारी सार्वजनिक हो जाएगी कि आखिर शिवराज सिंह को डंपर मामले में क्लीन चिट कैसे मिली थी

याचिकाकर्ता ने कोर्ट के सामने अपनी बात रखने के बाद जवाब देने के लिए समय मांगा है और एक नई याचिका भी इस मामले में दायर करने की तैयारी की जा रही है क्योंकि पूरे देश में केवल सेना और गोपनीय मुद्दे ही आरटीआई से बाहर है बाकी बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने खुद के दरवाजे भी राइट टू इंफॉर्मेशन के लिए खोल दिए हैं ऐसे में मध्य प्रदेश अकेला अलग से कानून कैसे बना सकता है


Conclusion:हालांकि याचिकाकर्ता किसी और मुद्दे को लेकर लोकायुक्त को आरटीआई के दायरे में लाने की कोशिश कर रहा है लेकिन इसका सियासी परिणाम यह होगा कि शिवराज सिंह का डंपर घोटाला दोबारा चर्चाओं में आ जाएगा

byte विशाल बागरी जनहित याचिकाकर्ता
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