जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में मंगलवार को एक जनहित याचिका लगाई गई, जिसमें लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) की शिकायतों को सार्वजनिक करने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार दर्ज शिकायतों और FIR को 24 घंटे बाद सार्वजनिक किया जाना चाहिए, लेकिन लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा EOW ऐसा नहीं कर रही हैं.
शिवराज सरकार ने किया था आरटीआई से बाहर
इन दोनों जांच एजेंसियों के खिलाफ जबलपुर के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका पेश की. याचिका की सुनवाई के दौरान लोकायुक्त की ओर से वकील ने तर्क रखा कि मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू को आरटीआई से बाहर कर दिया था. इसके बाद से ही यह नियम लागू है. नियम के तहत कोई भी शख्स इन दोनों संस्थाओं के कागजात जन सूचना अधिकार कानून के तहत नहीं ले सकता था. अब जब तक राज्य सरकार कानून नहीं बदलती है, तब तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं कर पाएंगे.
शिवराज सिंह पर आ सकता है संकट!
दरअसल अगर लोकायुक्त और EOW के दरवाजे आरटीआई के लिए खुल गए, तो सबसे बड़ा संकट पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सामने ही खड़ा होगा, क्योंकि डंपर घोटाले के बाद उन्होंने ही लोकायुक्त को आरटीआई से बाहर करवा दिया था और अपने व्यक्तिगत हित के लिए इस कानून को परिवर्तित कर दिया था. यदि लोकायुक्त आरटीआई के दायरे में आ गई, तो इस बात की जानकारी सार्वजनिक हो जाएगी कि आखिर शिवराज सिंह को डंपर मामले में क्लीन चिट कैसे मिली थी.
फिर सुर्खियों में आ सकता है डंपर घोटाला
याचिकाकर्ता ने कोर्ट के सामने अपनी बात रखने के बाद जवाब देने के लिए समय मांगा है और एक नई याचिका भी इस मामले में दायर करने की तैयारी की जा रही है, क्योंकि पूरे देश में केवल सेना और गोपनीय मुद्दे ही आरटीआई से बाहर हैं. बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने खुद के दरवाजे भी राइट टू इंफॉर्मेशन के लिए खोल दिए हैं,
ऐसे में मध्यप्रदेश अकेला अलग से कानून कैसे बना सकता है. हालांकि याचिकाकर्ता किसी और मुद्दे को लेकर लोकायुक्त को आरटीआई के दायरे में लाने की कोशिश में है, लेकिन इसका सियासी परिणाम डंपर घोटाले को दोबारा चर्चा में ला सकता है.