जबलपुर। मध्य प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता और सबसे चर्चित चेहरे प्रहलाद पटेल का भविष्य क्या होगा. नरसिंहपुर से राजनीति शुरू करने वाले प्रहलाद पटेल एक बार फिर अपने ही गृह जिले से चुनाव मैदान में हैं. चुनाव जीतने और हारने की स्थिति में प्रहलाद पटेल का अगला कदम उन्हें कहां ले जाएगा. क्या वे दोबारा लोकसभा में वापस जाएंगे या फिर मध्य प्रदेश विधानसभा में ही आगे की राजनीति जारी रखेंगे.
किसान के बेटे की सफल कहानी: प्रहलाद सिंह पटेल के पिता एक किसान हैं और वह नरसिंहपुर के गोटेगांव नाम के कस्बे में रहते हैं. यहीं से प्रहलाद सिंह पटेल की प्राथमिक शिक्षा हुई थी. स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वे जबलपुर आ गए. जबलपुर में साइंस कॉलेज में उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई शुरू की. यहीं से उन्होंने राजनीति भी शुरू कर दी थी और वह रॉबर्ट सन साइंस कॉलेज की छात्र राजनीति में सुर्खियों में आने लगे थे. साइंस कॉलेज के बाद प्रहलाद सिंह पटेल रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में सक्रिय हुए. यहां प्रहलाद पटेल छात्र संघ के अध्यक्ष थे. इसी दौरान उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को भी ज्वाइन कर लिया था. प्रहलाद पटेल ने साइंस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. इसके बाद उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और दर्शनशास्त्र में एम ए भी किया है.
प्रहलाद पटेल का राजनीतिक करियर: प्रहलाद पटेल ने 1982 में ही प्रहलाद पटेल भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष बन गए थे. इसके बाद अलग-अलग पदों पर रहते हुए पहली बार उन्होंने 1989 में मात्र 29 साल की उम्र में भारतीय जनता पार्टी ने प्रहलाद सिंह पटेल को सिवनी लोकसभा से उम्मीदवार बनाया गया था. उन्होंने पहले ही चुनाव में जीत हासिल की थी. इसके बाद में 1996 में दूसरी बार सिवनी लोकसभा से ही चुनाव मैदान में उतरे और जीत हासिल की. लेकिन इसके बाद परिसीमन में सिवनी संसदीय क्षेत्र समाप्त हो गया था. 1999 में उन्होंने अपना क्षेत्र छोड़कर बालाघाट से लोकसभा चुनाव लड़ा और भी यहां से भी चुनाव जीतकर लोकसभा के सदस्य बने. इसी दौरान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में 24 में 2003 को प्रहलाद पटेल को पहली बार केंद्रीय कोयला राज्य मंत्री बनाया गया था.
कमलनाथ से चुनाव हारे: 2004 के लोकसभा चुनाव में प्रहलाद पटेल को छिंदवाड़ा लोकसभा से कमलनाथ के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार गया था, हालांकि वे इस चुनाव में जीते नहीं थे, लेकिन उन्होंने खूब सुर्खियां बटोरी थी.
भारतीय जनता पार्टी छोड़ी: इसके बाद मध्य प्रदेश की राजनीति में एक नया उलट फेर हुआ और उमा भारती को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था. प्रहलाद पटेल उमा भारती के करीबी माने जाते थे और उमा भारती की सरकार को बहुत कुछ प्रहलाद पटेल ही चला रहे थे, लेकिन इसी दौरान उमा भारती को एक केस के सिलसिले में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और पार्टी में अनुमान के चलते उन्होंने भारतीय जनता पार्टी छोड़ दी.
प्रहलाद पटेल भी उमा भारती के साथ ही भारतीय जनता पार्टी छोड़ चुके थे. उमा भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाई, लेकिन इसकी राजनीति ज्यादा नहीं चल पाई. फिर प्रहलाद पटेल और उमा भारती में ही आपस में टकराव हुआ और प्रहलाद पटेल ने खुद एक नई पार्टी का गठन किया, लेकिन भारतीय जनता पार्टी से अलग प्रहलाद पटेल ज्यादा दिनों तक राजनीतिक जमीन तैयार नहीं कर पाए.
दोबारा भारतीय जनता पार्टी में: 2010 में उन्होंने दोबारा भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन कर ली. शुरुआत में उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने भारतीय मजदूर संघ और असंगठित क्षेत्र के मजदूर संगठन का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया. धीरे-धीरे प्रहलाद पटेल की राजनीति दोबारा पटरी पर आ रही थी और 2014 में एक बार फिर लोकसभा के लिए एकदम नए क्षेत्र दमोह से चुनाव मैदान में थे. यहां पर भी उन्होंने लोकसभा चुनाव जीता और 2019 में भी दोबारा चुनाव मैदान में उतरे. इसमें भी उन्होंने जीत हासिल की. इस दौरान प्रहलाद पटेल को दूसरी बार केंद्र सरकार में मंत्री बनाया गया. पहले उन्हें संस्कृति एवं पर्यटन विभाग का राज्य मंत्री बनने का मौका मिला. इसके बाद में भारतीय जल शक्ति और खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री के रूप में अभी भी मोदी सरकार का हिस्सा हैं.
बाबा श्री बाबा के शिष्य: प्रहलाद पटेल बेहद धार्मिक किस्म के इंसान हैं. वे बाबा श्री बाबा के शिष्य हैं. उन्होंने कई बार पैदल नर्मदा परिक्रमा की है. आज भी वे शुद्ध शाकाहारी बिना लहसुन और प्याज का भोजन करते हैं और जब मौका मिलता है, तब बाबा श्री बाबा के भक्तों के साथ भजन कीर्तन करने निकल जाते हैं.
2023 का विधानसभा चुनाव: 2023 का विधानसभा चुनाव प्रहलाद पटेल की अब तक के राजनीतिक सफर का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट है, क्योंकि इस बार लोकसभा के लिए नहीं बल्कि विधानसभा के लिए चुनाव लड़ रहे हैं. इस बार उनका चुनाव क्षेत्र भी कोई दूसरा इलाका नहीं, बल्कि उनका खुद का जिला है. हालांकि इस विधानसभा क्षेत्र से उनके छोटे भाई जालम सिंह पटेल विधायक रहे हैं, लेकिन फिर भी यह चुनाव उनके लिए कठिन था, क्योंकि कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी लाखन सिंह पटेल भी बीते 5 साल से लगातार जनता के बीच आते जाते रहे हैं. वहीं प्रहलाद पटेल लंबे समय बाद नरसिंहपुर की जनता के बीच में पहुंचे थे.
अब सवाल यह खड़ा होता है की विधानसभा चुनाव के बाद प्रहलाद पटेल क्या करेंगे. उनके सामने एक विकल्प दोबारा से लोकसभा चुनाव लड़ने का होगा. यदि वे जीत कर आते हैं और राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती है, तो ऐसी स्थिति में उन्हें मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री भी बनाया जा सकता है, क्योंकि वे लोधी जाति से हैं और लोधी समाज मध्य प्रदेश में बड़े पैमाने पर रहता है. एक दूसरी संभावना भी है कि यदि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को बहुमत नहीं मिला, तब फिर प्रहलाद पटेल क्या करेंगे. उस स्थिति में उनके पास दोबारा लोकसभा चुनाव लड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा और एक अंतिम संभावना भी है, यदि प्रहलाद पटेल विधानसभा चुनाव हार गए, ऐसी स्थिति में राजनीति के इस माहिर खिलाड़ी की अगली चाल क्या होगी .उस पर सबकी नजर होगी, क्योंकि जिसे पूरा जीवन राजनीति के लिए दिया है वह शांत तो नहीं रहेगा.