जबलपुर । अधिवक्ताओं की नियुक्ति में आरक्षण प्रक्रिया के पालन को लेकर हाईकोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई हुई. जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा है सरकार के पॉलिसी मैटर में हाईकोर्ट हस्ताक्षेप नहीं कर सकता है. ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन के सचिव, रामभजन सिंह लोधी की तरफ से दायर याचिका में मध्य प्रदेश (लोकसेवा आरक्षण ) अधिनियम 1994 के प्रावधानों के अनुसार शासकीय अधिवक्ताओ की नियुक्तियों मे आरक्षण लागू करने की मांग की गयी थी.
पहले आरक्षण की बात की थी : याचिका में कहा गया था कि इस संबंध में पूर्व में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देशित किया था कि उक्त नियुक्तियों मे आरक्षण नियम लागू करने पर विचार किया जाए. प्रदेश शासन के विधि विभाग ने शासकीय अधिवक्ता का पद ‘लोक सेवक’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं बताते हुए आरक्षण देने से इंकार कर दिया, इस कारण कारण उक्त याचिका दायर की गयी है. याचिका में कहा गया कि आरक्षण अधिनियम की धारा में स्पष्ट रूप से शासकीय सेवक एवं स्थापना को परिभाषित किया गया है. जिसके तहत प्रदेश का एडवोकेट् जनरल आफिस सहित जिला न्यायालयों मे शासकीय अधिवक्ताओ के आफिस धारा 2 (एफ़) के तहत कवर है.
याचिका में कई दलीलें दीं : याचिका में यह भी कहा गया था कि प्रदेश के समस्त प्रकार के शासकीय अधिवक्ताओ के पद स्वीकृत है एवं उन्हें प्रदेश की संचित निधि से भुगतान किया जाता है. जिससे अधिनियम की धारा 4(2) के प्रावधान लागू करने सरकार बाध्य है. याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से मांग की गयी कि शासकीय अधिवक्ताओ की नियुक्ति मे आरक्षण अधिनियम 1994 के प्रावधान पूर्णत लागू होना चाहिए. निविदा के आधार पर हुई नियुक्ति में भी यह नियम लागू होना चाहिए. याचिका की सुनवाई के बाद एकलपीठ ने फैसला सुरक्षित रखने के निर्देश जारी किए. याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवकता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक शाह, उदय कुमार, अशोक कुमार चोरसिया, परमानंद साहू, ओमप्रकाश पटेल, प्रशांत चौरसिया, नरेश कोरी, रूप सिंह मरावी ने पक्ष रखा.