जबलपुर। देश की अर्थ व्यवस्था को गति देने के लिए के लिए केंद्र सरकार लगभग सभी सेक्टरों में निजी करण करने जा रही है, जिसका समय-समय पर विरोध और समर्थन भी होता रहा है. अब सरकार ने देश के 41 केंद्रीय सुरक्षा संस्थानों को भी निगमीकरण के जरिए निजी हांथों में देने का फैसला लिया है, जिसमें जबलपुर की चारों मुख्य फैक्ट्रियां भी शामिल हैं. जिसके बाद सरकार के इस फैलसे का सुरक्षा संस्थानों में काम करने वाले कर्मचारियों ने विरोध शुरू कर दिया है.
तीनों फेडरेशन ने संभाली जिम्मेदारी
जबलपुर में सुरक्षा संस्थानों के तीनों फेडरेशन बीपीएमएस ( भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ) एआईडीईएफ( ऑल इंडिया डिफेंस एम्लाई फेडरेशन) और आईएनडीडब्ल्यूएफ ( इंडियन नेशनल डिफेंस वर्कर फेडरेशन) के कार्यकर्ताओं ने जबलपुर के जनप्रतिनिधियों और गणमान्य नागरिकों को निजीकरण की हकीकत से रूबरू कराने का जिम्मा उठाया है. इसके लिए फेडरेशन के सदस्यों ने पूर्व सांसद जय श्री बनर्जी से मुलाकात कर इसकी शुरुआत भी कर दी है.
जनप्रतिनिधियों को करेंगे जागरूक
फेडरेशन के सदस्य और रक्षा मंत्रालय के सलाहकार सदस्य अरुण दुबे का कहना है कि केंद्र सरकार देश की तमाम सुरक्षा संस्थानों को निजी हाथों में देने की तैयारी करने लगी है, जिसका शुरुआत निगमीकरण से होना है. केंद्र सरकार के इस फैसले से तमाम कर्मचारी और जबलपुर की जनता भी नाखुश है. इसके लिए वे जनप्रतिनिधियो तक अपनी बात पहुंचाने के लिए उनसे मिलना भी शुरू कर दिया. अरुण दुबे की मानें तो सरकार का निगमीकरण का कदम ना सिर्फ सुरक्षा संस्थानों के खिलाफ है बल्कि देश हित में भी नहीं है.
निगमीकरण के रास्ते निजी हाथों में सौंपना की तैयारी
भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेंद्र तिवारी की मानें तो केंद्र सरकार देश भर की तमाम सुरक्षा संस्थानों को निगमीकरण के रास्ते से निजी हाथों में सौंपना चाहती है. पहले फैक्ट्रियों का निगमीकरण होगा और फिर धीरे से यह फैक्ट्रियां निजी हाथों में चली जाएंगी, जिससे कि देश की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है. फैक्ट्रियों के निजी हाथों में जाने से यहां पदस्थ हजारों कर्मचारियों की नौकरी न सिर्फ खतरे में आएगी, बल्कि सेना को बना कर दिए जाने वाले गोला बारूद और हथियारों की गुणवत्ता पर भी फर्क पड़ेगा.
केंद्र सरकार की नीति मजदूर विरोधी
भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेंद्र तिवारी ने कहा कि निगमीकरण के रास्ते निजी हाथों में देश भर की तमाम 41 सुरक्षा संस्थानों को सौंपना केंद्र सरकार का पहले से ही प्लान था. सरकार की यह पूरी नीति मजदूर विरोधी है. अगर केंद्रीय सुरक्षा संस्थानों को निजी हाथों में सौंपा जाता है तो इससे जबलपुर का विकास पूरी तरह से प्रभावित हो जाएगा. यहां की अर्थव्यवस्था केंद्रीय सुरक्षा संस्थानों की दम पर ही चल रही है. ऐसे में अगर सुरक्षा संस्थान निजी हाथों में जाते हैं तो निश्चित रूप से जबलपुर का विकास पूरी तरह से खत्म हो जाएगा.
जबलपुर में हैं चार केंद्रीय सुरक्षा संस्थान
ऑर्डिनेंस फैक्ट्री खमरिया
यहां सेना के लिए तमाम बम गोला बारूद बनाए जाते हैं
गन कैरिज फैक्ट्री
यहां सेना के लिए तोप बनाए जाते हैं. मालूम हो की देश की सबसे ताकतवर "धनुष तोप" का निर्माण भी इसी फैक्ट्री में किया गया है.
व्हीकल फैक्ट्री
यहां सेना के लिए बड़े बड़े वाहनों का निर्माण किया जाता है.
ग्रे आयरन फाउंड्री फैक्ट्री
यहां वाहनों के पार्ट्स और औजारों की सामग्री बनाई जाती है.
वास्तव में निगमीकरण के रास्ते फैक्ट्रियां निजी हाथों में चली जाएंगी तो संभव है कि सेना के लिए बन रहे सामान की गुणवत्ता पर भी फर्क पड़े, जिससे देश की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती. ऐसे में सरकार को चाहिए कि सुरक्षा संस्थानों के निगमीकरण से पहले इन संस्थानों से जुड़े लोगों से इस बारे बातचीत करे और उन्हें संतुष्ट कर ही किसी फैसले पर पहुंचा जाए.