ETV Bharat / state

हलषष्ठी पर्व पर भी सूने पड़े बाजार, बांस का सामान बनाने वालों के सामने रोजी-रोटी का संकट

author img

By

Published : Aug 9, 2020, 1:56 PM IST

कोरोना महामारी के चलते हलषष्ठी पर्व पर भी बाजारों में भीड़ नहीं है. ऐसे में मिट्टी और बांस का सामान बनाकर बेचने वाले कामगार अपनी लागत वसूल करने के लिए भी परेशान हैं.

jabalpur
हलषष्ठी पर्व पर भी सूने पड़े बाजार

जबलपुर। कोरोना महामारी की वजह से ऐसा शायद ही कोई व्यवसाय हो जो प्रभावित न हुआ हो. आम दिनों में होने वाले व्यवसाय के साथ ही त्योहारों पर होने वाले व्यवसाय भी कोरोना के चलते बुरी तरह चौपट हो रहे हैं. ऐसा ही नजारा रक्षाबंधन के बाद आने वाले हलषष्ठी पर भी देखने को मिला.

उमा वंशकार, बांस कारीगर

रक्षाबंधन के त्योहार में भी बाजार सूने रहे और हलषष्ठी के पर्व पर भी बाजारों में होने वाली भीड़ गायब है. मिट्टी एवं बांस का सामान बनाकर बेचने वाले कामगार अपनी लागत वसूल करने के लिए भी परेशान हैं.

jabalpur
बांस का सामान

हलषष्ठी कई सदियों से सनातन धर्म का मुख्य पर्व रहा है. परिवार की सुख समृद्धि और बच्चों की दीर्घायु के लिए महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं. बांस और मिट्टी से बनीं सामग्रियों का पूजन में महत्व होता है, लेकिन इनकी बिक्री तेजी से घट रही है और इन्हें बनाने वाले कारीगर दो वक्त की रोटी के लिए भी मोहताज हैं.

संक्रमण का खतरा और लोगों की आय में आई कमी के कारण लोग सीमित वस्तुओं से ही त्योहार मना रहे हैं. यही वजह है कि लोग पारंपरिक पर्व पर भी घरों से निकलकर बाजार तक नहीं पहुंच रहे. ग्रामीण क्षेत्रों में हालात और भी ज्यादा खराब हैं, जो परिवार मिलकर बांस और मिट्टी की चीजें बनाते थे, वहां अब एक या दो सदस्य ही अपने पारंपरिक व्यवसाय को संभाल रहे हैं.

उमाबाई वंशकार का परिवार भी बांस की टोकनी और अन्य सामग्रियां बनाता है, लेकिन इन दिनों बिक्री कम हो गई है, यही वजह है कि डिमांड के अनुसार अब वो अकेले ही बांस की टोकनी बना लेती हैं और इसी से उनका परिवार चल रहा है.

उमा का कहना है कि कोरोना के कारण उनके व्यवसाय पर भी बुरा असर पड़ा है. एक बांस की कीमत करीब 200 रूपए है, जिससे 5 से 7 टोकनी बनती हैं. एक टोकनी 20 से 30 रूपए की बिकती है. जिससे कम ही लागत निकलती है और उनकी मेहनत भी वसूल नहीं हो पाती, लेकिन इसके अलावा उनके पास और कोई काम नहीं है. जिससे वो इसी काम को करती हैं.

जबलपुर। कोरोना महामारी की वजह से ऐसा शायद ही कोई व्यवसाय हो जो प्रभावित न हुआ हो. आम दिनों में होने वाले व्यवसाय के साथ ही त्योहारों पर होने वाले व्यवसाय भी कोरोना के चलते बुरी तरह चौपट हो रहे हैं. ऐसा ही नजारा रक्षाबंधन के बाद आने वाले हलषष्ठी पर भी देखने को मिला.

उमा वंशकार, बांस कारीगर

रक्षाबंधन के त्योहार में भी बाजार सूने रहे और हलषष्ठी के पर्व पर भी बाजारों में होने वाली भीड़ गायब है. मिट्टी एवं बांस का सामान बनाकर बेचने वाले कामगार अपनी लागत वसूल करने के लिए भी परेशान हैं.

jabalpur
बांस का सामान

हलषष्ठी कई सदियों से सनातन धर्म का मुख्य पर्व रहा है. परिवार की सुख समृद्धि और बच्चों की दीर्घायु के लिए महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं. बांस और मिट्टी से बनीं सामग्रियों का पूजन में महत्व होता है, लेकिन इनकी बिक्री तेजी से घट रही है और इन्हें बनाने वाले कारीगर दो वक्त की रोटी के लिए भी मोहताज हैं.

संक्रमण का खतरा और लोगों की आय में आई कमी के कारण लोग सीमित वस्तुओं से ही त्योहार मना रहे हैं. यही वजह है कि लोग पारंपरिक पर्व पर भी घरों से निकलकर बाजार तक नहीं पहुंच रहे. ग्रामीण क्षेत्रों में हालात और भी ज्यादा खराब हैं, जो परिवार मिलकर बांस और मिट्टी की चीजें बनाते थे, वहां अब एक या दो सदस्य ही अपने पारंपरिक व्यवसाय को संभाल रहे हैं.

उमाबाई वंशकार का परिवार भी बांस की टोकनी और अन्य सामग्रियां बनाता है, लेकिन इन दिनों बिक्री कम हो गई है, यही वजह है कि डिमांड के अनुसार अब वो अकेले ही बांस की टोकनी बना लेती हैं और इसी से उनका परिवार चल रहा है.

उमा का कहना है कि कोरोना के कारण उनके व्यवसाय पर भी बुरा असर पड़ा है. एक बांस की कीमत करीब 200 रूपए है, जिससे 5 से 7 टोकनी बनती हैं. एक टोकनी 20 से 30 रूपए की बिकती है. जिससे कम ही लागत निकलती है और उनकी मेहनत भी वसूल नहीं हो पाती, लेकिन इसके अलावा उनके पास और कोई काम नहीं है. जिससे वो इसी काम को करती हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.