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अस्पतालों में नहीं बेड का इंतजाम, जमीन पर सोने को मजबूर मरीज

कोरोना के साथ-साथ ठंड की बीमारियों से लड़ना लोगों के लिए चुनौती बन गई है. लेकिन सरकारी अस्पतालों में मरीजों के लिए बेड ही उपलब्ध नहीं है. ऐसे मरीजों को इस कड़कड़ाती ठंड में जमीन पर सोना पड़ रहा है. तो वहीं अस्पताल प्रबंधन और प्रशासन का कहना है कि आपातकालीन स्थिति के लिए अस्पताल में पर्याप्त बेड है. लेकिन हकीकत तो कुछ और ही है. पढ़िए पूरी खबर...

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अस्पतालों में नहीं आपातकालीन स्थिति के लिए पर्याप्त बेड
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Published : Jan 1, 2021, 11:45 AM IST

जबलपुर। ठंड बढ़ते ही लोगों के सामने अब दोगुनी चुनौती आ गई है. कोरोना संक्रमण जैसी घातक बीमारी के साथ-साथ लोगों को ठंड में आने वाली बीमारियों से भी लड़ना पड़ रहा है. इस कड़ाके की ठंड में हार्टअटैक-पैरालाइसिस जैसी बीमारियों से लोगों को जूझना पड़ रहा है. निजी अस्पतालों में तो आकस्मिक ईलाज की व्यवस्थाएं पर्याप्त रहती है, लेकिन सरकारी अस्पतालों में यह सुविधाएं ना के बराबर देखी जा रही है.

अस्पतालों में नहीं आपातकालीन स्थिति के लिए पर्याप्त बेड

सरकारी अस्पताल की बिल्डिंग बन गई कोरोना सेंटर

सरकारी अस्पताल की बिल्डिंग में करीब छह वार्ड है, उनको कोरोना सेंटर बना दिया है. ऐसे में अब आकस्मिक इलाज करवाने वाले और अस्पताल में भर्ती होने वालों के सामने न सिर्फ इलाज की बल्कि बेड की समस्या भी आ गई है. लिहाजा इस कड़कड़ाती ठंड में मरीज जमीन पर सोने को मजबूर हैं. पाटन से जबलपुर आए रामदास का कहना है कि वह अपने बेटे का इलाज करवाने जबलपुर जिला अस्पताल आए हुए हैं और बीते 2 दिनों से भर्ती हैं पर उन्हें बेड नहीं मिला.

आकस्मिक चिकित्सा केंद्र में 3 बेड पर डॉक्टर नदारद

जबलपुर जिला अस्पताल में जहां रोजाना प्रतिदिन 100 से 150 मरीज आकस्मिक चिकित्सा केंद्र में अपना इलाज करवाने आते हैं, उन मरीजों को प्राथमिक इलाज के लिए आकस्मिक केंद्र में रखे तीन बड़ों का सहारा होता है. डॉक्टर उनका इलाज करने के बाद फिर वार्ड में भर्ती कर देते हैं, जिला अस्पताल के आकस्मिक केंद्र का निरीक्षण किया तो वहां से डॉक्टर नदारद थे, डॉक्टर की जो कुर्सी थी वह भी खाली थी. हालांकि केंद्र में नर्स जरूर मौजूद थी पर वह भी अपने दूसरे कामों में लगी हुई थी. इधर सरकारी अस्पताल सहित स्वास्थ्य केंद्रों में आकस्मिक चिकित्सा या आपातकालीन बेड की व्यवस्था को लेकर अस्पताल प्रबंधन की दलील है कि आपातकालीन स्थिति में जिला अस्पताल सहित सभी सरकारी केंद्रों में बेड की पर्याप्त व्यवस्था है.

मेडिकल में 744 तो जिला अस्पताल में 165 बेड है खाली

जबलपुर कलेक्टर कर्मवीर शर्मा का कहना है कि आपातकालीन स्थिति में अगर कोरोनावायरस य अन्य बीमारियों से संबंधित मरीज बढ़ते हैं तो मेडिकल कॉलेज में वर्तमान के समय 744 और जिला अस्पताल में 165 बेड खाली पड़े हुए हैं. कलेक्टर ने यह भी कहा कि जबलपुर के चाहे सरकारी अस्पताल हो या फिर निजी आकस्मिक बीमारी से निपटने के लिए पर्याप्त बिस्तरों की व्यवस्था प्रशासन ने पहले से ही कर रखा है.

बेड है तो मरीज क्यों पड़े हैं जमीन में?

जिस तरह से स्वास्थ्य विभाग और कलेक्टर कर्मवीर शर्मा का कहना है कि आपातकाल की स्थिति में किसी भी गंभीर बीमारी से निपटने के लिए उनके पास पर्याप्त बेड उपलब्ध हैं. ऐसे में जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की यह तमाम दलीलें कटघरे में खड़ी हो रही हैं, क्योंकि अगर प्रशासन के पास पर्याप्त बेड उपलब्ध हैं तो फिर मरीज क्यों जमीन पर लेट कर अपना इलाज करवा रहे हैं. आखिर वह भी बीमार हैं और जब उन्हें ही बेड नहीं मिलेगा तो फिर कैसी आपातकालीन व्यवस्था?

जबलपुर। ठंड बढ़ते ही लोगों के सामने अब दोगुनी चुनौती आ गई है. कोरोना संक्रमण जैसी घातक बीमारी के साथ-साथ लोगों को ठंड में आने वाली बीमारियों से भी लड़ना पड़ रहा है. इस कड़ाके की ठंड में हार्टअटैक-पैरालाइसिस जैसी बीमारियों से लोगों को जूझना पड़ रहा है. निजी अस्पतालों में तो आकस्मिक ईलाज की व्यवस्थाएं पर्याप्त रहती है, लेकिन सरकारी अस्पतालों में यह सुविधाएं ना के बराबर देखी जा रही है.

अस्पतालों में नहीं आपातकालीन स्थिति के लिए पर्याप्त बेड

सरकारी अस्पताल की बिल्डिंग बन गई कोरोना सेंटर

सरकारी अस्पताल की बिल्डिंग में करीब छह वार्ड है, उनको कोरोना सेंटर बना दिया है. ऐसे में अब आकस्मिक इलाज करवाने वाले और अस्पताल में भर्ती होने वालों के सामने न सिर्फ इलाज की बल्कि बेड की समस्या भी आ गई है. लिहाजा इस कड़कड़ाती ठंड में मरीज जमीन पर सोने को मजबूर हैं. पाटन से जबलपुर आए रामदास का कहना है कि वह अपने बेटे का इलाज करवाने जबलपुर जिला अस्पताल आए हुए हैं और बीते 2 दिनों से भर्ती हैं पर उन्हें बेड नहीं मिला.

आकस्मिक चिकित्सा केंद्र में 3 बेड पर डॉक्टर नदारद

जबलपुर जिला अस्पताल में जहां रोजाना प्रतिदिन 100 से 150 मरीज आकस्मिक चिकित्सा केंद्र में अपना इलाज करवाने आते हैं, उन मरीजों को प्राथमिक इलाज के लिए आकस्मिक केंद्र में रखे तीन बड़ों का सहारा होता है. डॉक्टर उनका इलाज करने के बाद फिर वार्ड में भर्ती कर देते हैं, जिला अस्पताल के आकस्मिक केंद्र का निरीक्षण किया तो वहां से डॉक्टर नदारद थे, डॉक्टर की जो कुर्सी थी वह भी खाली थी. हालांकि केंद्र में नर्स जरूर मौजूद थी पर वह भी अपने दूसरे कामों में लगी हुई थी. इधर सरकारी अस्पताल सहित स्वास्थ्य केंद्रों में आकस्मिक चिकित्सा या आपातकालीन बेड की व्यवस्था को लेकर अस्पताल प्रबंधन की दलील है कि आपातकालीन स्थिति में जिला अस्पताल सहित सभी सरकारी केंद्रों में बेड की पर्याप्त व्यवस्था है.

मेडिकल में 744 तो जिला अस्पताल में 165 बेड है खाली

जबलपुर कलेक्टर कर्मवीर शर्मा का कहना है कि आपातकालीन स्थिति में अगर कोरोनावायरस य अन्य बीमारियों से संबंधित मरीज बढ़ते हैं तो मेडिकल कॉलेज में वर्तमान के समय 744 और जिला अस्पताल में 165 बेड खाली पड़े हुए हैं. कलेक्टर ने यह भी कहा कि जबलपुर के चाहे सरकारी अस्पताल हो या फिर निजी आकस्मिक बीमारी से निपटने के लिए पर्याप्त बिस्तरों की व्यवस्था प्रशासन ने पहले से ही कर रखा है.

बेड है तो मरीज क्यों पड़े हैं जमीन में?

जिस तरह से स्वास्थ्य विभाग और कलेक्टर कर्मवीर शर्मा का कहना है कि आपातकाल की स्थिति में किसी भी गंभीर बीमारी से निपटने के लिए उनके पास पर्याप्त बेड उपलब्ध हैं. ऐसे में जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की यह तमाम दलीलें कटघरे में खड़ी हो रही हैं, क्योंकि अगर प्रशासन के पास पर्याप्त बेड उपलब्ध हैं तो फिर मरीज क्यों जमीन पर लेट कर अपना इलाज करवा रहे हैं. आखिर वह भी बीमार हैं और जब उन्हें ही बेड नहीं मिलेगा तो फिर कैसी आपातकालीन व्यवस्था?

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