जबलपुर। मध्यप्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों के फर्जीवाड़े को लेकर हाईकोर्ट सख्त है. ये मामला मध्य प्रदेश के लगभग 50 हजार नर्सिंग छात्र-छात्राओं से जुड़ा हुआ है. जिनकी बीते 4 सालों से परीक्षा नहीं हो पाई है. बता दें कि कोरोना महामारी के बाद 2020 में प्रदेश में अचानक ढाई सौ से ज्यादा नए नर्सिंग कॉलेज खुल गए. इनमें कोई सुविधाएं नहीं थीं और कई तो केवल कागजों पर चल रहे थे. इन्हीं कॉलेजों में पैसे लेकर पास करवाने के लिए नर्सिंग छात्र-छात्राओं का एडमिशन करवा दिया गया. फर्जीवाड़े की शिकायत हाईकोर्ट में एक याचिका के माध्यम से की गई थी.
फर्जीवाड़े पर हाईकोर्ट सख्त : इसके बाद हाईकोर्ट के आदेश पर कई कॉलेजों की मान्यता रद्द की गई. लेकिन अभी तक इस मामले का फैसला नहीं हो पाया है. वहीं, परीक्षाएं अधर में लटकी हैं. राज्य सरकार इस मामले को बिल्कुल भी गंभीरता नहीं ले रही है. पहले नर्सिंग काउंसिल के रजिस्ट्रार के पद पर सुनीता शिजू नाम की एक नर्स को पदोन्नत कर दिया गया. इनकी नियुक्ति पर सवाल खड़े हुए तो आनन-फानन में हटाया गया. कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने इन पर आरोप लगाया था कि ये खुद फर्जी नर्सिंग कॉलेज को मान्यता देने के मामले में दोषी हैं. सुनीता पर सरकार कितनी मेहरबान है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाईकोर्ट की आपत्ति के बाद इन्हें हटाया गया.
इनका रसूख देखिए : सुनीता का ट्रांसफर विदिशा मेडिकल कॉलेज कर दिया गया था. इन्होंने मात्र एक पत्र अधिकारियों को लिखा तो ट्रांसफर कैंसिल करके दोबारा उन्हें सतपुड़ा भवन बुला लिया. हाईकोर्ट में सुनीता की पोस्टिंग पर आपत्ति जताई गई तब शुक्रवार रात उनका ट्रांसफर दतिया किया गया. इसके बाद नई रजिस्ट्रार बनाई स्टेला पीटर पर भी आरोप लगाए गए कि ये भी फर्जी नर्सिंग कॉलेज को मान्यता देने में शामिल थीं. इसलिए उन्हें भी पद से हटाया जाए. सरकार ने स्टेला पीटर को भी हटाकर उन्हें वापस जबलपुर भेज दिया है.
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हाईकोर्ट रोज लगा रहा है फटकार : हाईकोर्ट में चल रहे नर्सिंग फर्जीवाड़े के मामले की सुनवाई में डीएमई को जैसे ही तलब किया तो सरकार सकते में आ गई. लगातार तीन दिन तक हुई सुनवाई में कोर्ट के सवालों का संतोषजनक जवाब सरकार नहीं दे सकी. जिसके चलते शुक्रवार को हुई सुनवाई में डीएमई ने शपथ पत्र में पूर्व रजिस्ट्रार सुनीता पर कार्रवाई में हीलाहवाली और देरी के लिए हाईकोर्ट से माफी मांगी. यहां सवाल स्टेला पीटर या सुनीता का नहीं है बल्कि सवाल प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग पर उठ रहा है कि जब कोर्ट लगातार इस मामले में सरकार को कठघरे में खड़ी कर रही है तो मंत्री और सरकार इसे गंभीरता से क्यों नहीं ले रही.