जबलपुर। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की एकलपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता के साथ ना केवल भेदभाव किया गया है, बल्कि पदोन्नति नहीं देकर नियमों का उल्लंघन किया है. एकलपीठ ने 15 दिन के भीतर आवेदक को पदोन्नति के साथ समस्त लाभ प्रदान करने के निर्देश दिये हैं. इसके साथ ही गुम हुए रिकार्ड पर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए.
नगर निगम कर्मी की याचिका पर सुनवाई : मामले के अनुसार नगर निगम कर्मचारी लक्ष्मण बरुआ की तरफ से वर्ष 2004 में दायर याचिका में कहा गया था कि उसे प्रमोशन से वंचित रखा जा रहा है. वह तृतीय श्रेणी में पदोन्नति का पात्र है, लेकिन पदोन्नति प्रदान नहीं की गयी. उसे 2003 में चतुर्थ श्रेणी के पद से चतुर्थ श्रेणी के पद पर पदोन्नति प्रदान कर दी गयी, जोकि नियमानुसार नहीं है. क्योंकि चतुर्थ श्रेणी के पद से तृतीय श्रेणी के पद पर पदोन्नति दी जाती है. नगर निगम जबलपुर में याचिकाकर्ता के सामान्य अन्य चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को तृतीय श्रेणी के पद पर पदोन्नति प्रदान की गयी है.
कोर्ट में रिकॉर्ड पेश नहीं किया : याचिका की सुनवाई करते हुए पूर्व में न्यायालय ने याचिकाकर्ता की नियुक्ति व प्रमोशन से संबंधित दस्तावेज पेश करने के निर्देश जारी किये थे. कई अवसर देने के बावजूद भी रिकॉर्ड पेश नहीं किये जाने को न्यायालय ने गंभीरता से लेते हुए 31 जनवरी को निर्देश जारी किये थे कि यदि रिकॉर्ड पेश नहीं किया गया तो निगमायुक्त को हाजिर होना पड़ेगा. निगमायुक्त स्वाप्निल वानखेड़े 28 फरवरी को न्यायालय में उपस्थित हुए थे. पिछली सुनवाई पर न्यायालय के पूछने पर नगर निगम की तरफ से बताया गया था कि रिकॉर्ड गुम हो गए हैं और एफआईआर दर्ज कराई जा रही है.
नगर निगम आयुक्त पर नाराजगी जताई : याचिका की सुनवाई दौरान पूर्व में पारित आदेश के बावजूद मूल दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किये गए. नगर निगम के आयुक्त व स्थापना अधिकारी एवं अधिवक्ता के कथन में न्यायालय ने विरोधाभास पूर्ण पाये थे, जिसे गंभीरता से लेते हुए न्यायालय ने उक्त तल्ख टिप्पणी की. एकलपीठ ने याचिकाकर्ता को तृतीय श्रेणी के पद पर 15 दिन के अंदर पदोन्नति आदेश जारी करते हुए सभी लाभ दिए जाने के निर्देश दिए हैं. न्यायालय ने आदेश में नगर निगम आयुक्त एवं स्थापना अधीक्षक के कार्य व्यवहार पर प्रश्नचिह्न लगाते कहा कि दस्तावेज गुमने की एफआईआर के साथ नगर निगम अपने स्तर पर कार्रवाई करे. एकलपीठ ने रिकार्ड गुमने के दोषी कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश निगामायुक्त को दिए.
छेड़छाड़ की सजा से राहत : घर में घुसकर युवती से छेड़छाड़ करने के आरोप में सजा से दंडित युवक को हाईकोर्ट से राहत मिली है. जस्टिस डीके पालीवाल की एकलपीठ ने पाया कि कमरे में पीड़िता के अलावा उसके तीन भाई सो रहे थे. पीड़िता द्वारा शोर मचाने पर भी उसके भाई नहीं उठे और प्रकरण में वह गवाह तक नहीं हैं. एकलपीठ ने युवक को रिहा करने के आदेश जारी करते हुए दंडात्मक आदेश को निरस्त कर दिया है. बता दें कि भोपाल जिला न्यायालय ने धारा 456 तथा 354 के तहत आरोपी विनोद अहिरवार को अधिकतम एक साल की सजा तथा 15 सौ रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी.