जबलपुर। एम्स भोपाल में हुई नियुक्तियों को लेकर याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई थी. इसमें 91 प्राध्यापकों, अतिरिक्त प्राध्यापकों और सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति को कठघरे में खड़ा किया गया था. याचिकाकर्ता का आरोप है कि एम्स भोपाल में सभी नियुक्तियां एक दर्शाए गए मापदंड से की थी लेकिन परिणाम निकालने से पहले उन्होंने सारे मापदंड बदल दिए. इसलिए सारी नियुक्तियां गलत हैं.
याचिका में नियुक्तयों को अवैध बताया : याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता नरिंदरपाल सिंह रूपराह ने सर्वोच्च न्यायालय की नजीर पेश करते हुए तर्क दिया है कि खेल खेलने के बाद खेल के नियम नहीं बदले जा सकते. लिहाजा सारी नियुक्तियां अवैध हैं. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बताया कि विज्ञापन के अनुसार आकलन के 50 अंक थे, जिसमें से परिणाम निकलने से पहले सिर्फ 35 ही कर दिए गए और 15 अंक जो अध्यापन एवं शोध अनुभव इत्यादि के थे वे हटा दिए गए, जो कि गैरकानूनी है. हाई कोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल की अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 23 जून 2023 निर्धारित की है. इस मामले में एम्स प्रबंधन घिरता नजर आ रहा है.
6 साल बाद भी नियुक्ति क्यों नहीं : मेडिकल पीजी कोर्स करने के बाद तीन माह में नियुक्ति देनी थी.तीन माह की बजाये 6 साल का समय गुजर गया है परंतु नियुक्ति नहीं दी गयी. बांड भरने के कारण शिक्षा संबंधित दस्तावेज भी नहीं लौटाये जा रहे हैं. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. डॉ.भीमराव रूप सिंह पवार की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया कि उनसे इन सर्विस कैटेगरी में पीजी मेडिकल कोर्स में दाखिला लिया था.
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10 लाख का बांड भरवाया था : पीजी मेडिकल कोर्स में दाखिले के दौरान दस लाख रुपये का एक बांड भरवाया गया था. बांड की शर्त अनुसार कोर्स पूरा करने के बाद उसे एक साल तक ग्रामीण क्षेत्र में सेवाएं देने थीं. उसने पीसी कोर्स अप्रैल 2017 में उत्तीर्ण कर लिया था. याचिका में कहा गया था कि कोर्स उत्तीर्ण करने के तीन माह की समय अवधि में उसे नियुक्ति प्रदान करनी थी. तीन माह की बजाये 6 साल से अधिक का समय गुजर गया है. याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता आदित्य संघी ने युगलपीठ को बताया कि शिक्षा संबंधित दस्तावेज छात्र की पूंजी होती है. निर्धारित समय अवधि में नियुक्ति नहीं देना शासन की गलती है.