जबलपुर। मध्यप्रदेश में बिजली बेचने और खरीदने का काम पावर ट्रेडिंग कंपनी करती है. यही बिजली निर्माताओं से बिजली खरीदती है और यही जनता को बिजली बेचती है. बिजली बेचने के लिए अभी तक जो सिस्टम काम करता है वह खुदरा टैरिफ अधिनियम 2021 में बनाए नियमों के अनुसार चलता है. इस अधिनियम के तहत पावर ट्रेडिंग कंपनी हर 3 माह में नियामक आयोग को बिजली की दरों को संशोधित करने के लिए प्रस्ताव भेजता है. दरअसल, मध्यप्रदेश में कुल जरूरत का केबल 20% उत्पादन सरकारी बिजली कंपनियां कर पाती हैं. बाकी बिजली निजी कंपनियों से खरीदी जाती है और निजी कंपनियां लगातार बिजली की दरों में बदलाव करती रहती हैं.
बिजली दरों में 3 माह में बदलाव : खुदरा टैरिफ अधिनियम के तहत हर 3 माह में बिजली कंपनियों को फ्यूल कॉस्ट एडजेस्टमेंट (इंधन प्रभार समायोजन )कर सकती हैं. इसके साथ ही विद्युत खरीदी लागत और पारेषण का खर्चा के नाम पर भी उपभोक्ताओं से वसूली की जाती है. इसमें यदि बिजली कंपनी ज्यादा महंगी बिजली खरीद लेती है तो घाटा इन मदों से पूरा कर लिया जाता है. अभी तक बिजली की दरों में बदलाव हर 3 महीने में किया जाता था. इसके लिए मध्य प्रदेश विद्युत नियामक आयोग नाम की संस्था जनता से आपत्तियां आमंत्रित करती थी और सही दरों पर बिजली की कीमत तय की जाती थी. इसमें कोशिश यह होती थी कि कंपनी और जनता दोनों को नुकसान ना हो.
खुदरा टैरिफ अधिनियम 2021 में बदलाव : बिजली कंपनियां अब खुद को स्वतंत्र करना चाहती हैं. इसलिए उन्होंने खुदरा टैरिफ अधिनियम 2021 के हर 3 माह में बिजली दरों को तय करने के नियम को बदलने की सिफारिश की है और बिजली कंपनियां चाहती हैं कि वह हर माह बिजली की दरों में परिवर्तन करने के लिए स्वतंत्र रहे. इसी कानून को बदलने के लिए नियामक आयोग ने जनता से आपत्तियां आमंत्रित की गई थीं. आज इसकी सुनवाई हुई जबलपुर के रिटायर्ड बिजली इंजीनियर राजेंद्र अग्रवाल ने इस नियम को बदलने पर आपत्ति दर्ज करवाई है.
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बिजली खरीदी में गोलमाल : बिजली मामलों के जानकार इंजीनियर का कहना है कि यदि पुराना नियम बदला जाता है तो बिजली कंपनियों को पेट्रोल डीजल के रेट की तरह हर महीने बिजली की कीमत बढ़ाने और घटाने की आजादी मिल जाएगी जो जनता के लिए नुकसान का सौदा साबित होगी. बिजली खरीदी में अभी भी बड़े पैमाने पर सांठगांठ और भ्रष्टाचार का खेल चलता है लेकिन नियामक आयोग की जनसुनवाई की वजह से इस पर नकेल कसी रहती है. यदि बिजली कंपनियों को पूरी स्वतंत्रता दे दी गई तो वे साल में 12 बार बिजली की दरों को बढ़ाएंगे और नियामक आयोग केवल एक बार ही बिजली लागत और वितरण में आने वाले खर्चे का सत्यापन कर पाएगा. इससे विद्युत नियामक आयोग की शक्ति पूरी तरह से खत्म हो जाएगी.