जबलपुर। मध्यप्रदेश के शिक्षा विभाग के राज्य शिक्षा केंद्र ने सितंबर 2022 में एक आदेश जारी किया था. जिसमें इस बात का उल्लेख था कि पांचवीं और आठवीं की परीक्षाएं इस साल राज्य शिक्षा बोर्ड लेगा. इसका पाठ्यक्रम SCERT के पाठ्यक्रम के अनुसार होगा. जबकि ज्यादातर निजी स्कूल NCERT के पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाई करवाई जा रही है. इसलिए स्कूल परेशान हो गए थे और उनके सामने बीच सत्र में नई चुनौती आ गई थी.
हाईकोर्ट में दी थी चुनौतीः निजी स्कूलों की एक संगठन अशासकीय विद्यालय परिवार ने सरकार के इस आदेश को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. इनका कहना है कि आधा सत्र बीतने के बाद पाठ्यक्रम को बदलकर बच्चों को तैयार करना कठिन होगा. वहीं एनसीईआरटी और एससीईआरटी का पाठ्यक्रम अलग-अलग है. दोनों की पुस्तकें आपस में मेल नहीं खाती इसलिए बच्चे SCERT के पाठ्यक्रम के अनुसार परीक्षा नहीं दे पाएंगे. हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए कहा है कि जिन स्कूलों ने हाईकोर्ट में याचिका लगाकर राज्य शासन के आदेश को चुनौती दी है. वह राज्य सरकार का आदेश नहीं मानेंगे और उनकी परीक्षा NCERT के पाठ्यक्रम के अनुसार ही होगी. हालांकि परीक्षा राज्य सरकार का बोर्ड ही लेगा.
सभी के लिए आदेश नहींः राज्य सरकार के इस नए नियम की वजह से प्रदेशभर के प्राइवेट स्कूलों को परेशानी हो रही है. उन्हें राज्य सरकार के पाठ्यक्रम के अनुसार बच्चों को परीक्षा में बैठना पड़ेगा. हाईकोर्ट ने आदेश को सार्वजनिक नहीं किया है. मतलब यह आदेश केवल उन्हीं स्कूलों के लिए किया गया है. जिन लोगों ने हाईकोर्ट में राज्य सरकार के आदेश को चुनौती दी थी.अशासकीय विद्यालय परिवार ने राज्य सरकार से मांग की है कि सरकार अपना आदेश वापस ले और 5वीं और 8वीं की परीक्षाओं में बोर्ड परीक्षा की बाध्यता को खत्म करे.
Must Read: शिक्षा से संबंधित खबरें यहां भी पढ़ें... |
8,50,000 बच्चे प्रभावितः मध्यप्रदेश में लगभग 30,000 निजी स्कूल हैं, और इनमें से केवल 500 स्कूलों का संगठन ही हाईकोर्ट गया था. यह सुविधा केवल इन्हीं स्कूलों को मिलेगी. इसके अलावा बाकी 29,500 स्कूलों को अभी भी राज्य सरकार के आदेश के अनुसार एससीईआरटी के पैटर्न से परीक्षा देनी होगी. मध्यप्रदेश में पांचवीं और आठवीं में लगभग 8,50,000 बच्चे पढ़ते हैं. एनसीईआरटी पाठ्यक्रम अच्छा पाठ्यक्रम है और इस पाठ्यक्रम के पढ़े हुए बच्चे देश की कई बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छा स्थान पाते हैं. जबकि मध्यप्रदेश शिक्षा बोर्ड का पाठ्यक्रम कमजोर है और उसमें इतना ज्ञान नहीं है कि जिससे राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाएं पास की जा सके. इसलिए राज्य सरकार को जबरन अपना पाठ्यक्रम निजी स्कूलों को नहीं थोपना चाहिए.