जबलपुर। महाकौशल अंचल की जबलपुर लोकसभा सीट के नतीजों पर सबकी निगाहें टिकी हैं क्योंकि यहां बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह का मुकाबला कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा से है. जिससे ये सीट प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीट मानी जा रही है. हालांकि, जबलपुर के राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मोदी फैक्टर के चलते इस बार इस सीट पर बीजेपी का पलड़ा कांग्रेस से भारी नजर आ रहा है.
बीजेपी प्रत्याशी राकेश सिंह इस सीट से जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं, 2014 के चुनाव में भी उन्होंने कांग्रेस के विवेक तन्खा को हराया था, जबकि इस बार भी उनका सामना तन्खा से ही है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जबलपुर की आठ सीटों में से चार पर जीत दर्ज की थी. यही वजह है कि इस बार यहां कांग्रेस उत्साहित नजर आई है.
विधानसभा चुनाव में एंटी इनकंबेसी खत्म
पिछले विधानसभा चुनाव में जो वोट पड़े थे, यदि उस पर नजर डालें तो 2014 के चुनाव में हार-जीत का अंतर ढाई लाख वोटों का था, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में ये अंतर घटकर लगभग 40000 रह गया और पहले जहां जबलपुर में भारतीय जनता पार्टी के 6 विधायक थे. वह घटकर चार हो गये. हालांकि, विधानसभा चुनाव से इतर लोकसभा चुनाव के मुद्दे अलग थे.
मुद्दों की लड़ाई
बीजेपी-कांग्रेस में इस बार जबलपुर के मुद्दों की लड़ाई भी दिखी. यही एक फैक्टर है जहां कांग्रेस मजबूत नजर आती है, चुनाव के दौरान कांग्रेस जनता तक अपनी बात पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, फिर भी बीजेपी की अपेक्षा अपनी बातें जनता तक नहीं पहुंचा पायी.
योजनाओं का असर
केंद्र की प्रधानमंत्री आवास योजना का ग्रामीण इलाके में खासा असर दिखा, इसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों का बड़ा तबका बीजेपी के पक्ष में खड़ा नजर आया. वहीं किसानों की कर्ज माफी की वजह से किसान कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाते नजर आए, लेकिन लोकसभा चुनाव के चलते कर्ज माफी सही ढंग से लागू नहीं हो पाई, इसलिए इसका असर कम नजर आया. भले ही माहौल बीजेपी के पक्ष में नजर आ रहा है, लेकिन चुनाव के परिणाम केवल गणित के आधार पर हल नहीं किये जा सकते.