जबलपुर। किसी भी व्यक्ति के लिए खेलना उतना ही जरूरी है, जितना कि खाना. खेल से हमरा शरीर फिट रहता है और फैसला करने की क्षमता का विकास होता है, इसलिए हर एक शख्स को एक गेम जरूर खेलना चाहिए. बदलते परिवेश के साथ खेलों में भी काफी बदलाव हुए हैं. क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी के बीच अब एक नया खेल उभर रहा है, जिसका हर कोई दीवाना हो रहा है.
केंद्र और राज्य सरकार की कोई रुचि नहीं दिखाने के चलते इस खेल को आज तक वह ऊंचाई नहीं मिल पाई है, जिसका यह हकदार है. हम बात कर रहे हैं "मलखंब" की, जिसने ना सिर्फ भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपने झंडे गाड़े हैं. मलखंब दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है मल्ल-खंब, जिसका अर्थ है कि खिलाड़ी को खंबे के साथ मल्ल करना है. मलखंब में लकड़ी के खंभे पर कई योगासन, जिमनास्टिक और एक्रोबैटिक करतब भी किए जाते है, जो कि खंभे के साथ मलखंब करने जैसा प्रतीत होता है, यही वजह है कि इस खेल को मलखंब कहते हैं.
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जबलपुर में मलखंब के खेल को संवारने का काम युवा प्रशिक्षक विनोद कुमार कर रहे हैं. खेल-युवा कल्याण विभाग की तरफ से जबलपुर में पदस्थ विनोद कुमार आज बड़े और बच्चों को मलखंब की ट्रेनिंग दे रहे हैं. इनके प्रशिक्षित छात्र जिला एवं प्रदेश स्तर पर अपना कौशल प्रदर्शन कर जबलपुर और प्रदेश का नाम भी रोशन कर रहे हैं. जबलपुर की माही जिसकी उम्र महज 7 साल की है.
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इतनी छोटी उम्र में ही मलखंब की कला विद्या में इतनी परफेक्ट खिलाड़ी हो गई है, कि अब वह चाहे पोल मलखंब हो या फिर रोप मलखंब इन तमाम तरह के खेलों में निपुण हो गई है. रोप मलखंब और पोल मलखंब में जबलपुर के लिए 7 साल की माही ने उज्जैन, इंदौर, देवास में अपना जौहर दिखाया है और बाकायदा वह इसमें सफल भी हुई है. वहीं जबलपुर के ही 12 साल के सूर्यांश रजक स्टेडियम में बैडमिंटन खेलने के लिए आते थे, लेकिन उन्हें मलखंब इतना पसंद आया कि वह अब मलखंब के स्टेट खिलाड़ी बन गए हैं.
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राज्य खेल कर घोषित
भारत की अति प्राचीन खेल विद्या मलखंब को प्रदेश सरकार ने राज्यीय खेल घोषित कर दिया है. इस संबंध में 2013 में खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने निर्देश भी जारी कर दिए हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मार्च महीने में आयोजित मंत्रिपरिषद की बैठक में यह फैसला लिया था कि प्रदेश में मलखंब के 14 केंद्र बनाए जाएंगे. यह केंद्र इंदौर, खरगोन, उज्जैन, बैतूल, दतिया, पन्ना, रतलाम, शाजापुर, शिवपुरी, ग्वालियर, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर एवं जबलपुर में संचालित होंगे. भारत का एक पारंपरिक खेल है, जिसमें खिलाड़ी लकड़ी के ऊपर तरह-तरह के करतब दिखाते हैं.
कुछ इस तरह होते हैं मलखंब
शेफ मलखंब- यह मुख्य रूप से महिला खिलाड़ियों के लिए मलखंब का एक आधुनिक प्रकार है. इसमें रस्सी के सहारे कई यौगिक मुद्राओं को दर्शाया जाता है.
फिक्स्ड मलखंब- स्थाई मलखंब में जमीन पर स्थापित सागौन या शीशम की 10 से 12 फीट ऊंची और नीचे से 5 से 6 इंच और ऊपर से डेढ़ से 2 इंच व्यास की लकड़ी पर करतब दिखाया जाता है.
हैंगिंग मलखंब- यह फिक्स मलखंब का छोटा वर्जन कहा जाता है, इसमें आम तौर पर संतुलन अभ्यास का प्रयोग किया जाता है. लकड़ी के पोल पर हुक और चेन की मदद से जमीन से 3.5 से 4 फीट की ऊंचाई पर एक दूसरी लकड़ी को लटकाया जाता है और उस पर खिलाड़ी मलखंब करतब करता है.
मलखंब की पहचान 19वीं शताब्दी में पेशवा बाजीराव के गुरु श्री बालम भट्ट दादा देवधर ने इस विद्या को एक नई पहचान दी थी. सन 1958 में पहली बार नेशनल जिम्नास्टिक चैंपियनशिप के तहत मलखंब को राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में शामिल भी किया गया था.
कोच की राज्य सरकार से उम्मीद
कोच विनोद कुमार का कहना है कि प्रदेश में 15 से 16 मलखंब कोच हैं, जो बीते 10 सालों से संविदा में ही काम कर रहे हैं. मलखंब कोचों को आज राज्य सरकार से उम्मीद है कि वह इनकी मांगों को मानते हुए जल्द ही उन्हें स्थाई करेंगे.
देशज खेलों में तेजी से अंतरराष्ट्रीय पटल पर उभरता मलखंब
खेल प्रतियोगिता के शारीरिक पहलू से आचगे जाकर मानसिक या मनोवज्ञानिक पहलू को बढ़ावा दे रहे हैं. खेल में आप जीते या हारे यह महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि आपने कैसा खेले यह ज्यादा जरूरी है. वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक खेलों की भरमार है, जिनसे ना सिर्फ बच्चे अवसाद और तनाव का शिकार हो रहे हैं, बल्कि उनको कई बीमारियों से भी गुजरना पड़ रहा है. यदि बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक की बजाय ग्राउंड में जाकर खेलने के लिए प्ररित किया जाए तो इससे बच्चों की मानसिक क्षमता में विकास होगा और वह स्वस्थ भी होंगे.